इंदौर
इंदौर में मां अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर आकार ले रहा है। 20 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाला मंदिर देश के छह राज्यों की संस्कृति का संगम है। एक और खास बात जो मंदिर को अलग बनाती है वो यह कि इसके निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं किया गया है। राजस्थान के मकराना से मंगवाए गए 40 हजार घनफीट मार्बल से आकार ले रहे मंदिर का मंदिर का 75% काम पूरा हो चुका है। 31 दिसंबर तक मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यहां पढ़िए कैसे छह राज्यों की संस्कृति का संगम है यह मंदिर…
6 राज्यों का कनेक्शन है इस मंदिर से
इस मंदिर की स्थापना करने वाले ब्रह्मलीन स्वामी प्रभानंद गिरी जी महाराज आंध्रप्रदेश में जन्मे थे। मंदिर की नई डिजाइन तैयार करने वाले गुजरात के अहमदाबाद के है। मंदिर को आकार देने वाले और नक्काशी करने वाले कारीगर उड़ीसा, राजस्थान और उप्र के आगरा से हैं। डिजाइन तैयार करने वाले आर्किटेक्ट इंदौर में 70 से 80 छोटे-बड़े मंदिरों के अलावा अमेरिका के न्यूजर्सी,आस्ट्रेलिया के मेलर्बन, फ्रेंकलिन, साउथ अफ्रिका के तनजानिया में जिनालय व अन्य मंदिर बना चुके हैं। अब पश्चिम बंगाल के डिगा में जगन्नाथपुरी की तर्ज पर मंदिर बनाएंगे। वे पिछले 35 सालों से ये काम करते आ रहे है और करीब साढ़े चार सौ मंदिर बना चुके है।
51 खंभों पर पुराने मंदिर के पीछे ही बन रहा नया मंदिर
अन्नपूर्णा मंदिर के ठीक पीछे 51 खंभों पर नया मंदिर आकार ले रहा है। इस मंदिर की भव्यता अभी से नजर आने लगी है। मंदिर के प्रबंधक व व्यवस्थापक स्वामी जयद्रानंद गिरी महाराज के मुताबिक 6600 वर्गफीट क्षेत्र में नया मंदिर बन रहा है। 40 हजार घनफीट सफेद मकराना मार्बल का इस्तेमाल मंदिर बनाने में हो रहा है। मंदिर 108 फीट लंबा, 54 फीट चौड़ा है और शिखर जमीन से 81 फीट ऊंचा रहेगा। सभा मंडप में नवदुर्गा, दस महाविद्या और 64 योगिनियों की मूर्ति उकेरी जा रही है। साथ ही अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति भी यहां उकेरी जा रही है। नागर शैली पर बन रहे इस मंदिर में सुंदर नक्काशियां देखने को मिलेगी। पुराना मंदिर 3200 वर्गफीट में बना है।
जयपुर से लाई गई थी प्रतिमाएं
स्वामी जयद्रानंद गिरी के मुताबिक मंदिर में मां अन्नपूर्णा, मां कालका और मां सरस्वती की प्रतिमाएं है। ये प्रतिमाएं जयपुर से यहां लाई गई थी। तीनों प्रतिमाओं की हाईट ढ़ाई फीट है। ये सभी प्रतिमाएं मार्बल की है। नया मंदिर बनने के बाद इन सभी प्रतिमाओं की विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। जहां अभी प्रतिमाएं है उस स्थान को कवर करके रखा जाएगा। नए मंदिर के साथ ही यहां फाउन्टेन, गार्डन और पार्किंग भी डेवलप किया जाएगा।
तीन बार होता है देवियों का श्रृंगार
अन्नपूर्णा मंदिर में विराजित तीनों देवियों का दिनभर में तीन बार श्रृंगार किया जाता है। सबसे पहला श्रृंगार सुबह 5 बजे किया जाता है। जिसके बाद 7 बजे आरती होती है। फिर 11 बजे श्रृंगार होता है और 12 बजे देवियों को भोग अर्पित किया जाता है। फिर शाम को 5 बजे श्रृंगार किया जाता है और 7 बजे आरती की जाती है। यहां देवियों का श्रृंगार कराने के लिए आपको नंबर लगाना पड़ता है। पिछले करीब चालीस साल से ज्यादा वक्त से यहां तीन बार देवियों का श्रृंगार हो रहा है। यहां देवियों का श्रृंगार कराने के लिए आपको मंदिर के पुजारी से या ऑफिस में संपर्क करना होता है। उनके द्वारा फिर दिन आपको बताया जाता है। जिस दिन श्रृंगार करना होता है उसके एक दिन पहले आपको श्रृंगार की सामग्री और साड़ी देना होती है। फिलहाल में सवा दो सौ भक्तों की वेटिंग है।
जानिए 63 साल पहले अन्नपूर्णा मंदिर की स्थापना करने वाले प्रभानंद गिरी महाराज के बारे में…
63 साल पहले यानी 1959 में अन्नपूर्णा मंदिर की स्थापना हुई। इसकी स्थापना ब्रह्मलीन स्वामी प्रभानंद गिरी महाराज ने की थी। मंदिर से मिली जानकारी के मुताबिक महाराज का जन्म 14 जनवरी 1911 को आंध्रप्रदेश के नंदी कुटकुट स्थान पर हुआ। 15 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ वैराग्य लिया। वे बेंगलुरु से मुंबई पहुंचे। वहां उल्हासनगर शिवालय में भजन-पूजन करते रहे। बाद में काशी जाकर अनंत श्रीविभूषित परहंस स्वामी आनामानंद गिरी से दीक्षा ली। देश के विभिन्न मार्गों में स्थित पुरातन शक्ति-पीठों के दर्शन आराधना पश्चात तीर्थ-क्षेत्र ओंकारेश्वर में साधना करते रहे। फिर स्वामी प्रभानंद गिरी जी उज्जैन आ गए और तीन सालों तक यहीं रहे। वे फिर गुजरात पहुंचे जहां प्रसिद्ध देव स्थल गिरनार पर्वत पर कठोर तपस्या की, वहीं आपको भगवती अम्बिका का दर्शन हुआ और वहां से आप इंदौर आ गए। 1955 में इंदौर आने के बाद वे रणजीत हनुमान मंदिर क्षेत्र में निवास करने लगे। अन्नपूर्णा मंदिर में वट वृक्ष के नीचे बैठकर मां अन्नपूर्णा की भक्ति-साधना में लग गए। यहीं आपने अन्नपूर्णा मंदिर बनाने का संकल्प लिया और भक्तों के सहयोग से 22 फरवरी 1959 को समारोहपूर्वक मां अन्नपूर्णा का श्री विग्रह स्थापित कर प्राण-प्रतिष्ठा की।
फरवरी में होगी प्राण-प्रतिष्ठा
स्वामी जयद्रानंद गिरी महाराज के मुताबिक फरवरी माह में पांच दिवसीय आयोजन मंदिर में किया जाएगा। इस पांच दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन मां की प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा नए मंदिर में की जाएगी। इसे लेकर तैयारियां की जा रही है। मां को जो पुराना स्थान रहेगा उसे कवर करके रखा जाएगा।