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भगत सिंह आज भी आतंकवादी?

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*अजय असुर*

देश के अधिकांश लोग आज भी ये सोचते हैं की शहीद ए आजम भगत सिंह अंग्रेजो के खिलाफ लड़ रहे थे और भगत सिंह और उनके साथियों का उद्देश्य भारत से अंग्रेजों को भगाना था। और यही हमें पढ़ाया भी जाता है और बताया भी जाता है।

असल में भगत सिंह और उनके बाकी साथी अंग्रेजो से नहीं बल्कि व्यवस्था से लड़ रहे थे, वो व्यवस्था जिसमे बहुसंख्यक जनता का शोषण होता था, वो व्यवस्था जिसमे पूंजीवाद के मुट्ठीभर धनपशुओं द्वारा खुली लूट चल रही थी और वो व्यवस्था जिसमे साम्राजयवाद को बढ़ावा मिलता था जिससे एक देश दूसरे देश का शोषण करता था… इन सब व्यवस्थाओं के खिलाफ भगत सिंह की लड़ाई थी ना कि अंग्रेजों के खिलाफ।

इस बात की तस्दीक भगत सिंह द्वारा लिखे अपनी माँ को आखिरी पत्र से कर सकते हैं। भगत सिंह अपने को संबोधित करते हुवे कहते हैं कि “… मुझे फांसी पर चढ़ा दिया जायेगा। 10-15 वर्षों में अंग्रेज हमारा देश छोड़कर चले जायेंगे, अंग्रेजों के चहेते इस देश की सत्ता संभालेंगे। लोगों की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी रह जाएंगी। कई साल अफरा-तफरी में बीतेंगे। इसके बाद लोगों को मेरी याद आयेगी।…”

23 साल के भगत सिंह को भारत का भविष्य साफ-साफ दिख रहा था कि भारत को किस तरह की आजादी मिलने वाली है। और शहीदे आजम भगत सिंह की एक-एक बात सत्य साबित हुई। यह आजादी भारत के बहुसंख्यक जनता के लिये सिर्फ एक धोखा है। 

शहीदे आजम भगत सिंह मौजूदा व्यवस्था को उखाड़कर एक समाजवादी व्यवस्था लाने के पछधर थे। इसलिए अंग्रजों ने भगत सिंह को अपने दस्तावेज में आतंकवादी करार दिया और जब अंग्रेज इस देश को छोड़कर गये तो भगत सिंह के कहे अनुसार ही भारत की सत्ता अपने चहेतों को छोड़कर गये। भारत का पहला आम चुनाव 1952 में होता है तो जनता देश का अपने द्वारा चुनी गया प्रधानमंत्री पहली बार 1952 में चुनती है तो 1947 में सरकार और नेहरू को कौन मान्यता देता है? 

14-15 अगस्त के आधी रात को आजादी तो नहीं सत्ता का हस्तांतरण होता है और कांग्रेस की सरकार तथाकथित स्वतंत्र भारत की पहली सरकार और पण्डित जवाहर लाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री बन जाते हैं। पर जनता तो चुनती नहीं तो कैसे बनते हैं? 

एक्चुअली यह कांग्रेस की नेहरू सरकार 15 अगस्त 1947 में नहीं बल्कि 1946 में ही बन जाती है। 1946 में भारतीय संविधान बनाने के लिये संविधान सभा का गठन होता है और इस संविधान सभा के मेम्बर के लिये खड़े होने और वोट देने के लिये आम आम आदमी को अधिकार नहीं था। इस संविधान सभा में जो खड़े हुवे और जिन्होने वोट दिया वो देश के राजे-रजवाड़े, नवाब, उच्च पदों पर तैनात अधिकारी, बहुत पढ़े-लिखे लोगों और जमींदारों को था। तो इस संविधानसभा में राजे-रजवाड़े, नवाब, जमींदार जो चुनकर आये थे वही लोग 1946 में ही भारत की अन्तरिम सरकार बना लेते हैं और उस सरकार में पण्डित जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया जाता है और इस अन्तरिम सरकार को अंग्रेज भी अपनी मोहर लगाकर मान्यता दे देते हैं और इसी अन्तरिम सरकार को 15 अगस्त 1947 को सत्ता हस्तांतरण करते हुए अंग्रेज मान्यता दे देते हैं। इस प्रकार अंग्रेज अपने चहेतों को सत्ता सौंपकर चले गये और भारत के बहुसंख्यक जनता पर अपनी सरकार को स्वतंत्र भारत की स्स्वतन्त्र सरकार कहकर थोप दिया गया। 

जब अंग्रेजी सरकार के दस्तावेज में भगत सिंह और उनके कुछ साथी आतंकवादी थे और इस अंग्रेजी हुकूमत के बाद सत्ता हस्तांतरण के साथ अंग्रेजों के सारे नियम-कानून भी हस्तांतरण हुए। इसी कारण आज भी अधिकतर सारे कानून अंग्रेजों के समय के ही हैं। इसीलिये आज भी भगत सिंह और उनके साथी इस भारत सरकार के दस्तावेज में आतंकवादी घोषित हैं। 

तथाकथित आजादी के बाद कई क्रन्तिकारियों को शहीद क्रान्तिकारी का दर्जा दिया गया। तो यदि भगत सिंह और उनके साथी सिर्फ अंग्रेजों को भगाना चाहते थे तो अंग्रेजों के जाने के बाद भी भगत सिंह और उनके कुछ साथियों को सरकारी दस्तावेजों से आतंकवादी का दर्जा हटा शहीद क्रान्तिकारी का दर्जा दे देती। 

आज भी आप शहीदे आजम भगत सिंह के नाम पर कोई कार्यक्रम करेंगे तो देखेंगे कि सरकार की सेना पुलिस मुस्तैद हो जाती है। यदि आप नक्सलवाद प्रभावित इलाकों जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड के जंगलों… में शहीदे आजम भगत सिंह के नाम पर कोई कार्यक्रम करते हैं तो निश्चित ही आपको नक्सली करार कर दिया जायेगा। भगत सिंह तो इनके दस्तावजों में आतंकवादी हैं ही और उनके विचारों को मानने वाले भी उनके दस्तावेजों में आतंकवादी करार दे दिये जाते हैं।

आपको क्या लगता है अगर आज भगत सिंह होते तो आज इस व्यवस्था से नहीं लड़ते? निश्चित ही वो आज भी लड़ रहे होते इस पूंजीवादी व्यवस्था से जिसमे मुट्ठीभर लोगों का ही बोलबाला है, जिसमें एक उद्योगपति/पूंजीपति लाखों करोड़ रुपये लोन लेकर विदेश भाग जाता है और वही दूसरी तरफ किसान/मजदूर कुछ हजार रुपयों के लिए आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। कुछ मुट्ठीभर लोग दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की कर अमीर पे अमीर बनते जा रहें हैं और वहीं देश की बहुसंख्यक जनता गरीब से गरीब बनती जा रही है और आम आदमी को अच्छे दिनों का सपना दिखाकर करोड़पतियों की तिजोरी खुले आम भरी जाती है। और इसके खिलाफ आवाज उठाने वाली आवाज को बेरहमी से कुचल दिया जाता है।

भगत सिंह कल भी लड़ रहा था, आज भी लड़ रहा है और जब तक शोषणकारी, दमनकारी व्यवस्था रहेगी, पूंजीवाद, सामंतवाद और साम्राज्यवाद रहेगा तब तक भगत सिंह लड़ता रहेगा! भगत सिंह आज भी हमारे विचारों में जिंदा है। भगत सिंह के आदर्शों को अपने जीवन में ढालना ही भगत सिंह को सच्चा नमन है।

*इंक़लाब जिंदाबाद!  साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!!*

*-ये नारे ही देशवासियों के नाम भगत सिंह के आखिरी संदेश थे।*

*अजय असुर*

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