( इसी विषय पर लिखी कुछ मार्मिक कविताएं,फूलन देवी और भारत की उन सभी बेटियों के चरणों में समर्पित,जो यहां के नरभक्षी दरिंदों और भेड़ियों के नाखूनी पंजे से अपनी अस्मिता को क्षत-विक्षत होने को अभिषापित हैं ! )राम किशोर मेहता, अहमदाबाद
जंगलराज
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बेटियों !
नाखून सौंदर्य के लिए नहीं
आत्मरक्षा के लिए बढ़ाओ
ताकि नोच सको
अत्याचारियों का मुँह
जो छोड़ जाये
उनके चेहर पर
न मिट सकने वाली
गहरी लकीर ,
न दिखा सके किसी को
अपना मुँह
और प्रमाण के रूप में
तुम्हारे नाखूनों में कैद रह जाए
उनका डी एन ए ।
याद रखो बेटियों !
कि प्रकृति ने तुम्हें
दाँत खाने के लिए ही नहीं
काटने के लिए भी दिए है
याद रखो
कि तुम अब सभ्य समाज में नहीं
भेड़ियों की माँद में हो !
आवश्यक शर्त
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यूँ ही नहीं बन जाती कोई फुल्लन
दलितों उत्पीडितों की नजर में देवी !
उसकी पहली शर्त है
फुल्लन अर्थात मादा होना !
दूसरी किसी दलित के यहाँ पैदा होना !
और तीसरी है गरीब होना !
कुल मिला कर यह
इस बात का प्रमाण भी है
कि तुमने चाहे कोई अपराध किया हो या नहीं
तुम जन्मना अपराधी हो !
और
वो जो तुम से इतर हैं !
उनके पास अधिकार हैं !
तुम्हे दण्डित करने के लिए !
तुमने खायी होती है
उन्हीं की जूठन !
जिससे निर्मित
तुम्हारे शरीर पर
वे समझते हैं
अपना पुश्तैनी हक !
तुम पहने होती है
उन्हीं की उतरन
जिसे उतारकर
वे तुम्हें गाँव में नंगा
नचवा सकते हैं !
और
कर सकते हैं तुम पर
सामूहिक बलात्कार !
फुल्लन से
फुल्लन देवी बनने की यात्रा में
रखना होता है
खुद को जिन्दा !
जिन्दा रहने के लिए जीवित रखनी होती है
अपने अंदर की आग
उतर जाना होता है
माँ चम्बल की गोद में !
भूखे प्यासे नंगे पाँव
निर्जन घाटियों में
तलाशते हुए
अपनी ही तरह के मनुष्यों को
जिनके दिल में भी
जल रही हो
ठीक वैसी ही आग !
जिसने बना दिया हो उन्हें डाकू !
डाकू हो जाना
सिर्फ डाकू हो जाना नहीं होता,
डाकू होने से पहले
होना होता है
अपमानित !
झेलना पड़ता है
कायर होने का कलंक !
कहलाना होता है
रणछोड़ !
उतर जाना होता है
कहीं दूर
नवद्वारका बनी
चम्बल की घाटियों में !
रचना होता है
अपना धर्म – युद्ध
कुरुक्षेत्र बेहमई में !
देवी होने के लिए
विजेता होना
एक आवश्यक शर्त है
जिसके लिए करनी होती है
शेर पर सवारी !
आह्वान
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बलात्कृता !
आत्मदाह मत करना !
किसी धृतराष्ट्र के
राजमहल के सामने !
मत आह्वान करना
किसी कृष्ण का !
कि वह अवतरित हो
और दिलाए तुमको न्याय !
बचा ले जाना स्वयं को
बाहें फैलाए बैठीं
चम्बल की घाटियों तक
जो आज भी
प्रतीक्षारत है
आगंतुक फूल्लन देवी के लिए !
साभार -सुप्रसिद्ध जनवादी और जनहितैषी विचारधारा के पोषक दार्शनिक कवि श्री राम किशोर मेहता, अहमदाबाद, संपर्क – 919408230881, ईमेल – ramkishoremehta9@gmail.com
संकलन – निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद उप्र संपर्क – 9910629632