अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

नए भारत की दर्दनाक तस्वीर

Share

अनुराग मिश्र

23 सितंबर 2022 को शायद आपने यह तस्वीर देखी हो। रामनामी पट्टा गले में पहने, बाएं हाथ में छड़ी और दाहिने हाथ में बिस्कुट का एक टुकड़ा लिए एक बुजुर्ग सामने बैठे पुलिस अधिकारी की तरफ देख रहे हैं। पुलिस अफसर बड़े भाव से उनकी तरफ बिस्कुट का पैकेट आगे किए हुए दिखाई देते हैं। अगर आपने, यह तस्वीर नहीं देखी है या इसके पीछे का दर्द महसूस नहीं किया है तो इसे अपने जेहन में बिठा लीजिए। यह आज के आधुनिक होते भारत के पिछड़ते सामाजिक ताने-बाने और दरकते पारिवारिक नींव की तस्वीर है। यह उस कुनबे के बिखरने की झलक है, जो कभी साथ रहने पर आबाद महसूस किया करता था। वह उल्लास, उत्साह और उमंग का भाव अब सूखता जा रहा है।

आज पति-पत्नी और बच्चे से मतलब रखने वाली सोच ने हमसे हमारा परिवार छीन लिया है। हां, बहुत हद तक परिवार की परिकल्पना ही बदल गई है। फैमिली में अब दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, नाना-नानी बाहर कर दिए हैं। दुखद है कि नई सदी के केवल 22 साल में ही काफी कुछ बदल गया। आज भले ही आप महसूस न कर पाते हों लेकिन जरा बेड पर लेटे-लेटे सोचिएगा कि आपके बच्चों को वो आनंद मिलता है जो आप घर में सबके एक साथ रहने पर महसूस किया करते थे। आज तो कमरे का परदा गिराकर लोगों ने परिवार को एक कमरे या फ्लैट तक सीमित कर दिया है।

वापस इस तस्वीर पर लौटते हैं। हिंदू हों या किसी दूसरे धर्म को मानने वाले 60 साल के बाद की उम्र नाती-पोतों को खिलाने, बागवानी करने, धर्म-कर्म करने, तीर्थयात्रा करने, किताबें पढ़ने, बच्चों को पढ़ाने या कोई भी वो काम करने के लिए होती है जो उस शख्स ने अब तक न किया हो और उसकी बड़ी रुचि हो। लेकिन ऊपर तस्वीर में जो बदनसीब बुजुर्ग दिख रहा है वह कुछ देर पहले ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या में सरयू नदी में कूद गया था। अगर आसपास के लोगों और पुलिसवालों की नजर न पड़ती तो वह डूब जाते। नाम है वंशराम चौधरी और नाम के मुताबिक इनका वंश भी चला। तीन बेटे हैं लेकिन उनके लिए वह अब आउटडेटेड हो गए हैं मतलब उनकी जरूरत नहीं है।

वंशराम लौकिहवा बस्ती थाना रुदौली गांव के हैं। उनकी पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है और तीनों बेटे उन्हें अपने पास रखने के लिए तैयार नहीं हुए। वह दो साल से जलालत भरी जिंदगी जी रहे थे। न खाना ठीक से था, न चैन से नींद का इंतजाम तो उन्होंने अपना जीवन ही व्यर्थ समझा और सरयू में छलांग लगा दी। वंशराम ने पुलिसवालों को बताया कि उन्होंने अपना घर, अपनी सारी खेती-बाड़ी बच्चों के नाम कर दी। अब उनके पास कुछ भी नहीं है। सभी बेटे अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन कोई अपने घर पर उन्हें रखना नहीं चाहता। क्षेत्राधिकारी डॉ. राजेश तिवारी ने उन्हें भोजन कराया, कपड़े पहनाए, परिवारवालों को बुलाया और घर भिजवाया।

लेकिन वंशराम अपने देश में एक नहीं हैं। यह परिपाटी सी बनती जा रही है। कई घरों की यही कहानी है। बच्चा बड़ा होता है, ग्रैजुएशन करता है, नौकरी लगती है, शादी होती है और उसकी गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगती है तो उसे सरपट भागती मेट्रोपॉलिटन जिंदगी इतनी भा जाती है कि गांव की बखरी भूल जाती है। उसे एक कमरा या फ्लैट इतना रास आता है कि वह उसे ही जिंदगी मान लेता है और माता-पिता उसे फालतू लगने लगते हैं। मतलब काम निकल गया तो पहचानते नहीं, टाइप। हां, काम ही तो निकल गया है यानी मां-बाप ने बच्चों को पैदा किया, पढ़ाया-लिखाया, नौकरी के काबिल बनाया, शादी कराई अब उनकी जरूरत ही क्या है। अगर मां-बाप कुछ और बोलेंगे तो उन्हें सुनने को भी मिल सकता है कि आपने हमारे लिए किया ही क्या है? यह एक ऐसा सवाल है कि जो आप भगवान से भी पूछ सकते हैं क्योंकि इच्छा और महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं है। आप जो हैं, आपको ज्यादा चाहिए तो ऐसे में मां-बाप आपकी कहां तक तमन्ना पूरी करते फिरेंगे, ये आपको कौन समझाएगा।

घर के बाहर चारपाई निकालकर दादा, चाचा, पापा, भाइयों का साथ सोना… आसमान की तरफ मुंह करके बच्चों का तारे गिनना… नानी या दादी का बच्चों को एक ही चारपाई पर लिटाकर, छोटकी को पेट पर थपकी देते हुए कहानी सुनाना… नहाते समय बच्चों का सिर पर लोटा उल्टा करके बुद्ध बनने की एक्टिंग करना… आम के बाग में धरपकड़ खेलना… मड़हे में गांववालों का घंटों गप्पे मारना यही सब तो था जो परिवार को, गांव को पूरे समाज को जोड़े रखता था। ये अनदेखा फेविकोल का जोड़ ही था कि गांव में रात को किसी के पेट में दर्द होता था तो 10 लोग चारपाई के पास तब तक खड़े रहते थे जबतक वह ठीक होकर खुद न कह दे कि सो जाओ भैया अब मैं ठीक हूं। आज बुजुर्ग माता-पिता को तकलीफ होती है तो उनका कमरा सूना रहता है क्योंकि बच्चे अपने-अपने कमरों में होते हैं। जब परिवार में ‘अपने से मतलब’ वाली सोच हावी हुई तो गांव-देश भी पीछे छूटता चला गया।

बचा लीजिए, आपका परिवार बिखर रहा है। हो सकता है आपको ये सब अर्थहीन लगे लेकिन कभी सोचिएगा कि आपके बच्चे कितना अकेला और उल्लासहीन जीवन जी रहे हैं। वे परिवार का महत्व नहीं जानते, या आपने उन्हें परिवार का महत्व समझाया ही नहीं। उन्हें समझने ही नहीं दिया कि फैमिली क्या होती है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि जब आप बूढ़े होंगे तो आपका भी वही हाल हो।

बुजुर्ग ये काम बिल्कुल न करें
आमतौर पर पति-पत्नी का रिश्ता बुजुर्गों की सबसे बड़ी ताकत होता है। वे बच्चों के घर से बाहर होने पर भी एक दूसरे का सहारा बन जाते हैं। ऐसे में जितनी जल्दी चेत जाइए उतना सही। पति अपनी पत्नी और पत्नी अपने पति का ख्याल रखे। अगर दोनों में खटपट चलेगी तो बच्चों के लिए आपको दुत्कारना आसान हो जाएगा। वे आपकी इस फूट का फायदा उठाएंगे। वे आपमें से किसी एक साथ होकर दूसरे की गलती निकालेंगे। इसके अलावा 60 साल के बाद थोड़ा स्वार्थी भी बनने की जरूरत है। 60 साल का मतलब आपके बच्चों की शादी हो चुकी होगी, नहीं तो नौकरी पर खड़े हो गए या इतनी उम्र तो हो गई होगी कि वे एडल्ट कहलाएं और अपना अच्छा-बुरा समझते हों। छोड़ दीजिए उन्हें, अपनी जिंदगी जीने दीजिए और आप अब थोड़ा खुद जिएं।

बुजुर्ग अपने लिए समय निकालना शुरू कर दें। बहुत किया जीवनभर, थोड़ा बूढ़ा-बूढ़ी अपने मन का खाइए, घूमिए और हां सबसे महत्वपूर्ण बात अपने लिए कुछ पैसा या संपत्ति बचाकर भी रखिए। बच्चे आपके हैं सब उन्हीं का है लेकिन इस भाव में आज ही उन्हें भेंट मत कीजिए। वैसे भी, दुनिया से जाने के बाद सब संपत्ति बच्चों के नाम अपनेआप आ जाती है। आज ही अपनी जेब खाली मत कर लीजिए। वंशराम की कहानी आपके साथ न दोहराई जाए इसके लिए सबक लेने की जरूरत है। वंशराम की पत्नी होतीं तो भी वह आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम न उठाते। कैसे भी करके वे एक दूसरे का सहारा बनते। इससे आप यह भी समझ सकते हैं कि जोड़े का साथ रहना कितना जरूरी है।

आखिर में आज के मॉडर्न सोच वाले लोगों से एक ही बात कहूंगा। भले ही आप अंबानी जितनी दौलत जुटा लें पर बॉलीवुड ऐक्टर जैकी श्रॉफ की वो बात याद रखिएगा- जब वह एक कमरे की खोली में रहते थे और मां खांसती थी तो पता चल जाता था कि मां खांस रही है। वे बड़े घर में रहने लगे तो पता ही नहीं चला कि उस रोज मां का निधन कब हो गया। इसमें पात्र बदल सकते हैं और वो आप भी हो सकते हैं। वैसे भी खुशी का असली पैमाना तो पारिवार के लोगों के चेहरों पर खुशी लाने में है। जरा सोचिए, आपने बड़ी उपलब्धि हासिल की है लेकिन इस खुशी में शरीक होने वाला कोई अपना नहीं है तो आप किसे बताएंगे कि मैंने क्या फतह किया है। अपने तो अपने होते हैं। गौर कीजिएगा।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें