अग्नि आलोक
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समय चिंतन : 5~G

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 जूली सचदेवा

     _टेक्नोलाजी जब शुरुआती दौर में होती है तो परिकल्पनाएं अनंत होती हैं. फिर धरातल पर आते आते आप यथार्थ से रूबरू होते हैं. पता चलता है कि जो सपना हमने देखा था वो सिर्फ एक फिक्शन था. रियलिटी सामने आती है तो एकदम अलग होती है._

         जब रिलायंस का सीडीएमए फोन लांच हुआ था तो कहा गया था कि करलो दुनिया मुट्टी में. एक मोटी कूपन बुक इनाम में मिली थी.

        21500 रुपये में एक छुटका सफेद फोन मिला था जो ऊंची ऊंची उस फोन को लेकर फेंकी गई थी. उसमें बताया गया था कि आप रिलायंस के स्टोर (कुछ और नाम दिया गया था) में जाकर अपने ऊपर कौन से बाल अच्छे लगेंगे ये भी चेक करवा सकते हैं. इसके अलावा भी बड़ा बडा महिमामंडन था.

5जी को लेकर बहुत आशाएं हैं (संभावनाएं कहना अति आशावादी होना है) लेकिन पुराना अनुभव बनाता है कि टेक्नोलाजी मनुष्य को गुलाम भी बनाती है. जैसे जैसे टेक्नोलाजी सशक्त होती जाती है राजसत्ता उसे अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करने को तड़प उठती है. इसलिए जन संघर्ष और जन  जागृति साथ ही रखनी चाहिए.

      _ये तथ्य नहीं भूलना चाहिए कि सत्ता नागरिक की सुविधा के लिए है, व्यापक जन हित के नाम पर व्यापक पैमाने पर गुलाम बनाने के लिए नहीं. हमें ऐसी सत्ता से बचना चाहिए जो व्यापक जनहित के नाम पर हमारी स्वतंत्रता को ही बैड़ियों में बदल दे. अब तक टैक्नोलाजी हमारी सारी मूवमेंट को अपने पास रखने में सक्षम है रेलवे स्टेशनों पर ऐसे कैमरे लग चुके हैं._

       दिल्ली के चौराहो गलियों और बसों में भी कैमरे हैं जो फेशियल रिकाग्निशन तकनीक से आपके चेहरे की पहचान कर सकते हैं. सिर्फ पहचान ही नहीं कर सकते एक फ्रेम में दिख रहे 50 लोगों की तक पहचान कर सकते हैं और ये संदेश भी एजेंसियों को दे सकते हैं कि जिसे उनकी तलाश है वो कहां है.

     हमें लगता है कि एजेंसियों को बुरे लोगों और आतंकवादियों की ही पहचान होती है. 

      सरकार अपराधियों से ज्यादा नहीं डरती. वो तो उसकी ताकत बढ़ाने का बहाना बनते हैं. सरकार आंदोलनकारियों से डरती है.

आप हांगकांग के बारे में जानें. वहा तकनीक का किस तरह दमन में उपयोग किया जा रहा है. उसके मुकाबले आंदोलनकारी भी कई तरीके अपना रहे हैं. ईरान का मामला देखें वहां आंदोलन कर रही महिलाओं की पहचान जो तकनीक भारत में उपलब्ध है उसके माध्यम से आसानी से की जा सकती है.

      आधार से उनकी आंखों की पुतलियों की पहचान से आसानी से उनका नाम पता हासिल किया जा सकता है. वो तकनीक ही थी जिसके जरिए ईरान के परमाणु वैज्ञानिक फख्रीजादेह की इस्रायल ने हजारों किलोमीटर दूर से गोली मारकर कर हत्या कर दी. एक ट्रक ऐसी जगह खड़ा किया गया जहां से परमाणु वैज्ञानिक को गुजरना था और एक स्पीड ब्रेकर था.

      गाड़ी धीमी होते ही फेशियल रिकाग्निनशन से फख्री जादेह की पहचान की जाती है और इजरायल में बैठा आदमी उस बंदूक से गोली चला देता है जो उस ट्रक में लगी हुई थी. मिशन कामयाब होने के बाद ट्रक ब्लास्ट से उड़ा दिया जाता है.

   5 जी के जरिये ये काम और आसान हो सकता है. इसलिए सजग रहें।

           (चेतना विकास मिशन)

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