सुधा सिंह
माधवी नहुष कुल के चंद्रवंशी राजा ययाति की पुत्री थी। वही ययाति जो और यौन सुख भोगने के लिए अपने पुत्र की जवानी ले लिए थे. ययाति ने उसे मुनि गालव को सिर्फ इसलिए सौंप दिया, ताकि वह माधवी को बाकी राजाओं को देकर उसके बदले में 800 श्वेत अश्व यानी सफे़द घोड़े पा सकें।
गालव, ऋषि विश्वामित्र के बड़े प्रिय शिष्य थे। अपनी दीक्षा पूरी करने के बाद गुरु विश्वामित्र को गुरु-दक्षिणा देना चाहते थे। ऋषि विश्वामित्र ने गालव को कई बार मना किया। कहा, ‘तुम 12 कलाओं में निपुण हुए हो, यही मेरी गुरु दक्षिणा है।’
लेकिन, गालव जिद पर अड़े रहे। तब गालव के हठ से नाराज ऋषि विश्वामित्र ने उसे 800 श्याम कर्णी श्वेत अश्व यानी ऐसे सफे़द घोड़े जिनके कान काले हों, दक्षिणा में देने को कहा।
वचन पूरा करने के लिए गालव निकल पड़े, पर उनको ऐसे घोड़े कहां मिलते। हारकर वह आत्महत्या करने का मन बना बैठे, तभी पक्षीराज गरुण उनकी मदद को आगे आए। उन्हें दानशीलता के लिए मशहूर राजा ययाति की शरण में जाने को कहा।
राजा ययाति के पास पहुंचकर गरुण और गालव ने सारा किस्सा कह सुनाया। लेकिन, उस वक़्त तक राजा ययाति की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। उनके पास ऐसे घोड़े भी नहीं थे, लेकिन दानी ययाति याचक को खाली हाथ जाने भी कैसे देते। तब उन्होंने अपनी बेटी, जिसे दिव्य कोख का वरदान मिला था, उसे गालव को दान कर दिया।
माधवी को यह वरदान मिला था कि उसकी कोख से चार यशस्वी चक्रवर्ती सम्राट उत्पन्न होंगे। इसके बावजूद उसका कौमार्य सुरक्षित रहेगा यानी वह सुंदर कुमारी कन्या बनी रहेगी। राजा ययाति ने गालव से कहा, ‘आप दैवीय गुणों वाली मेरी इस बेटी के बदले अन्य राजाओं से अपनी दक्षिणा के लिए घोड़े पा सकते हैं।
ऐसी गुणवान कन्या के लिए तो राजा अपना राजपाट छोड़ दें, घोड़े क्या चीज़ हैं। बाद में, गुरु दक्षिणा पूरी हो जाने पर मेरी बेटी को वापस मेरे यहां छोड़ जाएं।’ गालव ने ऐसा ही किया।
माधवी को लेकर गालव सबसे पहले पहुंचे अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास। राजा हर्यश्व ने गालव का प्रस्ताव और माधवी के गुणों का बखान सुना तो खुशी से फूले नहीं समाए। दिक्कत यह थी उनके पास वैसे घोड़े केवल 200 थे। ऐसे में, तय हुआ कि हर्यश्व 200 घोड़ों के बदले माधवी से सिर्फ एक पुत्र प्राप्त करके वापस लौटा देगा।
इस तरह, माधवी ने हर्यश्व के लिए वसुमना नामक सर्वगुण संपन्न पुत्र उत्पन्न किया, जो विख्यात राजा बना।
इसके बाद, माधवी को लेकर गालव काशी के राजा दिवोदास और भोजराज उशीनर के दरबार में पहुंचे। यहां भी माधवी से पुत्र उत्पन्न करने के बदले दोनों राजाओं ने गालव को 200-200 घोड़े दिए। बदले में माधवी ने दिवोदास के संयोग से प्रतर्दन और भोजराज उशीनर के तेजस्वी पुत्र शिवि को जन्म दिया, पर माधवी का रूप-यौवन पहले जैसा बना रहा।
मुश्किल यह थी कि गालव को अपनी गुरु-दक्षिणा की शर्त पूरी करने के लिए अब भी 200 घोड़े चाहिए थे, जबकि धरती पर अब कहीं भी ऐसे घोड़े नहीं बचे थे। तब गालव ने बचे हुए 200 घोड़ों के बदले माधवी को ही गुरु विश्वामित्र को सौंपने का फैसला किया।
गालव 600 घोड़े और माधवी को लेकर ऋषि विश्वामित्र के आश्रम पहुंचे। विडंबना देखिए, गुरु विश्वामित्र ने भी शिष्य गालव के इस प्रस्ताव पर कोई ऐतराज नहीं जताया, बल्कि दूसरे राजाओं की तरह माधवी से उन्होंने भी अष्टक नामक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया।
इस तरह, माधवी ने चार बेटों को जन्म देकर गालव की गुरु दक्षिणा पूरी करवा दी और पिता राजा ययाति के पास लौट आयी। घर लौटने पर पिता ने माधवी का स्वयंवर रचाना चाहा, तो उसने इनकार कर दिया।
अब वह न तो और किसी को अपने पति के रूप में स्वीकार करना चाहती थी, न गृहस्थ जीवन के प्रति उसे कोई मोह रह गया था। वह वन में चली गई और वानप्रस्थ जीवन जीने लगी।
क्यों गूंगी गुड़िया बनी रही माधवी?
माधवी कभी अपने पिता द्वारा एक पुरुष को सौंपी गई। फिर, उस पुरुष द्वारा कई और पुरुषों को। फिर भी वह गूंगी गुड़िया क्यों बनी रही? उसके मन में क्या चल रहा था? उसने विरोध क्यों नहीं जताया?
महाभारत की कई अन्य महिला पात्रों की तरह माधवी के नज़रिए को भी पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। उसका विद्रोह एकदम आखिर में बस तब दिखता है, जब वह अपने पिता को स्वयंवर के लिए मना कर देती है।
लेकिन, लगातार कई पुरुषों द्वारा बेदी पर चढ़ाई गई माधवी की वेदना, उसकी कुर्बानी, उसके दर्द ने कई सुधि साहित्यकारों को झकझोरा और उन्होंने अपनी तरह से उसके साथ न्याय करने की कोशिश की।
इसमें सबसे अहम नाम साहित्यकार भीष्म साहनी का है, जिन्होंने ‘माधवी’ नामक एक समूचा नाटक लिखा और महाभारत की इस गूंगी गुड़िया को आवाज़ दी।
उसे एक स्त्रीवादी नज़रिया दिया। यह नाटक स्त्री के शोषण और समाज में उसे दोयम दर्जे का समझने के कारणों की भी पड़ताल करता है।
भीष्म साहनी की माधवी भले पितृसत्ता के तहत बोई गई स्त्री के त्याग और कर्तव्य पालन वाली सोच को मानकर पिता द्वारा चुने पुरुष गालव को अपना लेती है, पर वह गालव के सामने कई बार सवाल खड़े करती है।
गालव की प्रतिज्ञा का टूल बनने के लिए तैयार होने के पीछे भी भीष्म साहनी माधवी को एक वजह देते हैं कि उसे गालव से प्रेम हो गया था और प्रेम की खातिर तो एक स्त्री क्या कुछ नहीं कर जाती। इसलिए, अपने प्यार को उसकी गुरु दक्षिणा से मुक्त कराने के लिए गालव का साथ देती है माधवी।
हर्यश्व के दरबार में ज्योतिषी उसके आंख, होठ, जीभ, तालू, वक्ष, नितंब, हर अंग-प्रत्यंग की जांच करता है कि क्या वाकई वह दिव्य गुणों वाली है। माधवी यह अपमान सहने से लेकर विश्वामित्र से गालव को गुरु दक्षिणा से मुक्त करने के बदले ख़ुद को स्वीकारने की याचना तक करती है।
लेकिन, आखिर में वापस अनुष्ठान कर कौमार्य प्राप्त करने से इनकार कर देती है। वह स्वयंवर में गालव को चुनती है। उसे यकीन था कि गालव उसे उसी रूप में स्वीकार कर लेगा। आखिर उसने सब कुछ गालव के लिए ही तो किया था।
लेकिन, गालव चार बच्चे जन्म देकर कमजोर, अधेड़ और अनाकर्षक हो चुकी माधवी को अपनाने को तैयार नहीं होता। वह बार-बार माधवी को मनाता है कि वह अनुष्ठान करके फिर से कुमारी और सुंदरी बन जाए। लेकिन, माधवी नहीं मानती, बल्कि गालव को ललकारती है, ‘मुझे देखकर ठिठक क्यों गए गालव? मैं अब पहले जैसी माधवी तो नहीं हो सकती हूं न। तुम किस माधवी के लिए छटपटाते रहते थे? मैं तुम्हारे लिए केवल निमित्त मात्र थी। मैं तुम्हें पहचानते हुए भी न पहचान पाई।’
इस तरह भीष्म साहनी आखिर में माधवी को अपनी देह पर अधिकार देते हैं। भीष्म साहनी के अलावा कई और कलमकारों की नज़रें माधवी की इस कहानी पर रुकी हैं। लेखिका माधवी महादेवन ने अंत में सब कुछ त्याग कर जंगल में रहने वाली माधवी पर ‘ब्राइड ऑफ द फॉरेस्ट’ क़िताब लिखी।
इसमें उन्होंने माधवी की कोख के मूल्य पर भी जोर दिया। वहीं, कवि कुलदीप अपनी कविता में माधवी के साथ हुए अन्याय पर करारी चोट करते हैं। इसके बावजूद, वास्तव में माधवी को सही मायने में न्याय शायद ही कभी मिल पाए।