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जयप्रकाश नारायण में अहिंसा की भावना पनपने में गांधी जी का ही योगदान है 

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जयप्रकाश नारायण का जन्म बंगाल प्रेसीडेंसी के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में 11 अक्टूबर  1911 को हुआ था। उनके अंदर बचपन से ही आत्मनिर्भर होने की गहरी लालसा थी। जिसके चलते पैसों की कमी के बावजूद, मात्र 20 साल की उम्र में वे एक कार्गो जहाज में बैठ कर अमेरिका पढ़ाई करने के लिए चले गए। अमेरिका पहुंचने के दो साल बाद उन्होंने बर्केले में दाखिला लिया। उन्होंने अपनी पढ़ाई और खर्चे के लिए बर्तन धोने, गैराज में मैकेनिक, लोशन बेचने और शिक्षण जैसे कई काम करके पैसे जुटाए। 
जयप्रकाश नारायण एक ऐसे व्यक्ति थे जो कभी गांधीवादी तो नहीं कहलाए लेकिन उनके आचरण और विचारधारा में गांधी जी के आदर्शों की छवि देखने को जरूर मिलती थी। 
कहा जाता है कि जयप्रकाश नारायण महात्मा गांदी के सर्वोदय और अहिंसा वाली विचारधाराओं से प्रभावित तो थे, लेकिन अमेरिका में पढ़ाई के दौरान उनपर कार्ल मार्क के समाजवाद और रूसी क्रांति का भी बहुत प्रभाव पड़ा था।1929 में भारत लौटने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। 
जयप्रकाश नारायण 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में जेल गए। जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाई। पार्टी बनाने के बाद भी वे हमेशा स्वतंत्रता सेनानी के रूप में एक गांधीवादी ही रहे। उनका गांधीवादी रूप तब खुल कर सामने आया जब उन्होंने अपनी पूरे जी-जान से भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान दिया। 
इतना ही नहीं, कहा जाता है कि भूदान और ग्रामदान जैसे आंदोलन के जरिए सामाजिक पुनर्निर्माण के प्रयासों में जयप्रकाश नारायण ने अहिंसा को बहुत महत्व दिया।  1975 से 1977 के बीच आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में भी उन्होंने अहिंसा पर जोर दिया था। उन्होंने खुद भी इस बात को कहा था कि उनमें अहिंसा की भावना का पनपने में गांधी जी का ही योगदान है। 
जयप्रकाश नारायण की विचारधारा समय के साथ सकारात्मक तौर पर बदलती रही। उनकी विचारधारा बदलाव समय की हर कसौटी पर खरी उत्तरी। आजादी के बाद ही उन्हें गांधी जी के लोकसेवक संघ के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास शुरू कर दिया था। फिर 76 साल की उम्र में 8 अक्टूबर 1979 को उनका निधन हो गया।

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