55 वीं पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित
रीवा । महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया की 55 वीं पुण्यतिथि मनाई गई। देश दुनिया में बदलाव के डॉ लोहिया प्रबल पक्षधर रहे हैं। उक्त विचार रखते हुए समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने कहा कि डॉ लोहिया का चिंतन समग्र मानव जाति के कल्याण से जुड़ा है। देश दुनिया के सत्ता और सामाजिक बदलाव के संदर्भ में लोहिया बार-बार याद आते हैं। सत्ता परिवर्तन के लिए डॉक्टर लोहिया रोटी को उलट-पुलट सेंकने की बात करते थे । सत्ता के अनुयाई हस्तक्षेप के खिलाफ लोहिया ताउम्र लड़ते रहे । गुलाम भारत में अंग्रेजों का साम्राज्यवाद रहा हो , या आजाद भारत में कांग्रेस का एकाधिकारवाद रहा या फिर अपनी सोशलिस्ट पार्टी की सरकार के ही द्वारा केरल में गोली चलाने की वारदात हो लोहिया किसी भी तरह के अन्याय और अत्याचार के हमेशा मुखर विरोधी रहे हैं। श्री खरे ने कहा कि यदि आज डॉ लोहिया होते तो देश की वर्तमान हालात को देखते हुए गैर भाजपावाद की बात करते। श्री खरे ने कहा कि नफरत देश की जड़ों को खोखला कर रही है । नफरत के माहौल में देश कभी मजबूत नहीं हो सकता है। लंबे समय तक देश की गुलामी का बड़ा कारण नफरत थी जो धार्मिक और जातीय आधार पर लोगों को बांट रही थी । लाखों समाज सुधारक , संतो और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के महान त्याग बलिदान के चलते विदेशी गुलामी के चंगुल से देश को आजाद कराया जा सका लेकिन यह भारी विडंबना है कि नफरत के सौदागर अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए देश के टुकड़े टुकड़े करने के नापाक इरादे में लगे हुए हैं।
श्री खरे ने बताया कि आपातकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा लोकसभा के चुनाव कराने के संकेत दिए जाने के बाद जब मुझे जेल से रिहा किया गया तब मैं मीसा बंदी के रूप में 18 महीने 6 दिन की अवधि गुजार चुका था । 29 जनवरी 1977 को जेल से छूटने के कुछ दिनों बाद मैंने साप्ताहिक दिनमान में एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए रोटी को उलट-पुलट कर सेकने की बात की गई थी , जो प्रकाशित हुई थी । उस समय चुनाव प्रचार के सिलसिले में देश के वरिष्ठ वकील समाजवादी नेता प्राणनाथ देखी रीवा आए हुए थे तब लोकसभा चुनाव में रीवा संसदीय क्षेत्र से जनता पार्टी प्रत्याशी समाजवादी नेता यमुना प्रसाद शास्त्री जी ने लेखी जी से जब मेरा परिचय कराया तो उन्होंने मुझसे बहुत गर्मजोशी से मिलते हुए कहा कि आज रास्ते में आपकी टिप्पणी मैंने दिनमान में पढ़ी है। वह दौर पढ़ने लिखने का था , जिसमें संपादक के नाम लिखी गई चिट्ठी को भी गंभीरता से पढ़ा जाता था। चुनाव के दौरान आपातकाल लगा हुआ था , ऐसी स्थिति में दिनमान जैसी राष्ट्रीय पत्रिका में उस चिट्ठी का छपना , कम महत्वपूर्ण नहीं था । उस समय दिनमान के संपादक रघुवीर सहाय जी थे।
डॉ राम मनोहर लोहिया किसी भी तरह के भेदभाव अन्याय के खिलाफ सतत आवाज उठाते रहे हैं । समता के लिए दलित पिछड़े वर्गों का उत्थान और नर नारी समानता के लिए लोहिया के वैचारिक सोच की बेचैनी किसी से छिपी नहीं है । हर जरूरतमंद और भूखे के लिए लोहिया आवाज उठाते रहे हैं। लोहिया की चौतरफा वैचारिक दृष्टि देश दुनिया में समतामूलक बदलाव देखना चाहती है। इसी वजह से लोहिया की सप्त क्रांति की प्रासंगिकता बनी हुई है। शैशवावस्था में ही मां की मृत्यु , इकलौती संतान , असफल प्रारंभिक प्रेम और अविवाहित जीवन का असर भी लोहिया के व्यक्तित्व में परिलक्षित होता है। शायद इसी वजह से डॉ लोहिया ने महिलाओं के बारे में जितनी अधिक संवेदनशील तरीके से बुनियादी बातें उठाई हैं , शायद उतना किसी और ने नहीं । डॉ लोहिया का गैर कांग्रेसवाद का नारा भारतीय राजनीति में स्थापित सत्ता के खिलाफ एक बड़े बदलाव का प्रतीक बना । सत्ता परिवर्तन के लिए आज भी उस नारे की प्रासंगिकता बनी हुई है। आज के समय में उस नारे का नाम बदलकर गैर भाजपावाद रखा जाना चाहिए । स्थापित सत्ता के अन्याय अत्याचार के खिलाफ लोहिया निरंतर बदलाव चाहते रहे हैं। राज्य के अन्यायी हस्तक्षेप को रोकने के लिए लोहिया हमेशा आवाज उठाते रहे हैं । गैर भाजपावाद आज डॉ लोहिया का नारा है। देश और दुनिया के महान चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि के महान अवसर पर उनका पावन स्मरण करते हुए श्री खरे के द्वारा विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई।