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क्यो रोज़ी, रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा जैसे ज़रूरी मुद्दे पूरी तरह से ग़ायब

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असित नाथ तिवारी

साल 2019 में नारा लगा कि आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही। लेकिन आए क्यों? पूरे चुनावी अभियान का ईमानदार विश्लेषण हो तो आप पाएंगे कि उस दौरान क्यो रोज़ी, रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा जैसे ज़रूरी मुद्दे पूरी तरह से ग़ायब रहे। चुनाव में सेना की शहादत का मुद्दा राष्ट्रवादी चासनी में मीठा होता दिखा। लेकिन ये सिर्फ चुनावी फायदे के भ्रमजाल का कमाल था।

साल 2016 में भारतीय वायुसेना का एएन-32 विमान लापता हो गया था। इस विमान ने तब चेन्नई से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए उड़ान भरी थी, लेकिन बंगाल की खाड़ी के ऊपर से उड़ते हुए ये लापता हो गया था। चीन बॉर्डर के नजदीक लापता हुए इस विमान को ना तो धरती ने निगला होगा और ना ही आसमान ने खा लिया होगा। रक्षा मामले में मोदी सरकार की इस बड़ी विफलता पर सरकार ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली। जवानों की शहादत पर जश्न मनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी के समर्थकों ने भी इतनी बड़ी घटना पर खामोशी की चादर तान ली। एयर फोर्स के अधिकारियों और जवानों समेत 29 लोग इसमें सवार थे। इनकी शहादत, सरकार की विफलता थी लिहाजा, 29 सैनिकों की शहादत को ग़ुमनामी के घोर अंधेरे में धकेल दिया गया।

18 सितंबर 2016 को जम्मू-कश्मीर के ऊरी सेक्टर में सेना के स्थानीय मुख्यालय पर आतंकी हमला हुआ। इस हमले में 19 जवान ज़िंदा जलाकर मार डाले गए। ये हमला मोदी सरकार की बड़ी विफलता थी। ये विफलता चुनावी फायदा नहीं देती लिहाजा इसे ना तो राष्ट्रवाद से जोड़ा गया और ना ही जवानों की शहादत वाली राजनीति से। मतलब जो शहादत चुनावी फायदा नहीं देती उसे मोदी के मतदाता सम्मान नहीं देते। इससे पहले 2 जनवरी 2016 को पठानकोट में भारतीय वायु सेना के एयर बेस में आतंकी घुसे और जवानों की हत्या की। ये हमला भी मोदी सरकार की ही विफलता थी। रक्षा मामले में मोदी सरकार ने विफलताओं के तमाम रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किए।

14 फरवरी 2019 को पुलवामा में 40 से ज्यादा जवानों की हत्या ने शहादत के ज़रिए चुनावी फायदे का बड़ा मौका दिया। तब देश में आम चुनाव होने वाले थे। सियासी राष्ट्रवाद ने उफान मारा और शहादत से उपजी राष्ट्रवादी भावना को वोट में तब्दील करने की अपील भाजपा नेता करने लगे। मतलब जवानों की शहादत का सम्मान तब ही जब वो वोट में तब्दील हो।

पुलवामा की शहादत ने रंग दिखाया और चुनावी बाज़ी पूरी तरह से पलट गई। जवानों की शहादत को पूरी तरह से भुनाया गया। 2019 के इस लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी जब प्रचंड बहुमत के रथ पर सवार हुए उसके ठीक कुछ ही दिनों बाद असम के जोरहाट से उड़ान भरने के बाद एयर फोर्स का एएन 32 विमान लापता हुआ। तब ना तो राष्ट्रवाद ने उफान मारा और ना ही शहीदों के लिए भावनाओं का ज्वार उमड़ा। ये विमान भी चीन की सीमा के नजदीक लापता हुआ। इसमें क्रू मेंबर समेत 13 जवान सवार थे। ये 13 जवान कैसे मरे सरकार ने देश को ये भी बताना उचित नहीं समझा। 13 जवानों की शहादत की ये बड़ी घटना भी ठंडे बस्ते में ही डाल दी गई क्योंकि, ये भी तो मोदी सरकार की ही बड़ी विफलता थी।

जाहिर है चुनाव बाद हुई जवानों की शहादत में मोदी समर्थक कथित राष्ट्रवादियों की कोई दिलचस्पी नहीं है। वरना 2016 में 29 जवानों के साथ चीन बॉर्डर पर लापता हुए विमान के बारे में ये कथित राष्ट्रवादी अपनी सरकार से सवाल ज़रूर पूछ चुके होते।

तो मतलब ये कि आएगा तो मोदी ही वाला नारा फर्जी राष्ट्रवादियों ने ही गढ़ा, बढ़ाया और थोपा। देश का बड़ा तबका राष्ट्रवाद के नारे की असली पड़ताल नहीं कर पाया और संघ परिवार और भाजपा के भ्रमजाल में फंस गया। सेना की शहादत पर सियासत करने वाली फर्जी राष्ट्रवादियों की ये भीड़ चुनावी माहौल बनाने में सफल रही। इस भीड़ की कोई दिलचस्पी 2016 में 29 जवानों के साथ ग़ायब हुए एयर फोर्स के विमान में नहीं है और ना ही चुनाव बाद 13 जवानों के साथ ग़ायब हुए विमान में थी। और इसीलिए चुनाव में नारा लगा कि आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही क्योंकि, राष्ट्रवाद का नारा भी फर्जी था और वोटर उस फर्जी नारे को असली राष्ट्रवादी मान बैठे।

किसी भी सूरत में अपने पक्ष में माहौल बना लेना नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। नरेंद्र मोदी ने एक नेता के तौर पर आपके सोचने के तरीके बदल दिए। अब आप देश,समाज और खुद के लिए नहीं सोच रहे हैं। अब आप सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए सोच रहे हैं। अब आप महंगाई, भ्रष्टाचार, सैनिकों की शहादत, बेरोजगारी, विकास के लिए नहीं सोच रहे हैं। आप सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए सोच रहे हैं। यही एक नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी की सफलता है। लेकिन यही एक नागरिक के तौर पर आपकी विफलता भी है। वरना ना तो अपने जवानों की शहादत पर आप चुप्पी की चादर तानते और ना ही देश की परिसंपत्तियों को चुपचाप बिकता देखते। आप लगातार महंगाई की क्रूर मार झेल रहे हैं और लगातार अपना और अपनों का रोजगार छिनता भी देख रहे हैं। जिन संस्थाओं ने मिलकर देश को एक मजबूत ढांचा दिया था, देश के नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षा दी थी आप उन्हीं को ध्वस्त होता भी तो देख ही रहे हैं। इतना ही क्रूर कोरोना के जबड़े में फंसे अपने परिजनों के लिए भी आप अपनी सरकार से ऑक्सीजन का एक सिलेंडर तक नहीं मांग पा रहे हैं।

याद रखना होगा कि नागरिकों के कमजोर होने का मतलब होता है देश का कमजोर होना। और ये भी याद रखना होगा कि देशभक्त का मतलब देश के प्रति जवाबदेह होना होता है, किसी नेता या विचारधारा के प्रति नहीं। एक नागरिक के तौर पर आपकी विफलता देश की विफलता का कारण बन सकती है।

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