शिवानन्द तिवारी, पूर्व सासंद
महात्मा गांधी का फ़ोटो लेकर बिहार के चम्पारण से पद यात्रा की शुरूआत करने वाले प्रशांत किशोर जी का मक़सद क्या है यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है. भले ही प्रशांत गाँधी का नाम लेते हों, लेकिन गाँधी को गाली दिये जाने को लेकर अभी तक उन्होंने मुँह नहीं खोला है. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बेहतर रिस्ता गाँधी को अपने प्राण से ज़्यादा प्रिय था. कहा जाता है कि इसी वजह से हिंदू कट्टरपंथी उनसे नफ़रत करते थे. उनकी हत्या की वजह भी यही बताई जाती है.
आज देश में मुसलमानों के विरूद्ध नफ़रत फैला कर हिंदुओं को वोट बैंक के रूप में तब्दील कराने का अभियान चलाया जा रहा है. इस को कुछ हद तक सफलता भी मिली है. अपनी पद यात्रा में इस अभियान की निंदा का एक शब्द भी प्रशांत के मुँह से अब तक सुनने को नहीं मिला है.
उनके निशाने पर लालू, नीतीश और तेजस्वी हैं. जब वे तेजस्वी की पढ़ाई लिखाई को लेकर उनका उपहास उड़ाते हैं तो मैं अपने को असहज महसूस करने लगता हूँ. इसलिए कि किसी किसी तरह मैंने मैट्रिक की परीक्षा तीसरे डिविज़न से पास की. मेरे पिताजी की पढ़ाई मिडिल से आगे नहीं बढ़ी. लेकिन उनको बिहार का सफल गृहमंत्री माना जाता है. गाँधी मैदान के बग़ल में उनकी आदम क़द प्रतिमा लगी है.
कामराज नाडार का नाम प्रशांत जी ने ज़रूर सुना होगा. स्कूली पढ़ाई ना के बराबर. अंग्रेज़ी का यस और नो शब्द से ज़्यादा का ज्ञान उनको नहीं था. लेकिन कांग्रेस के इतिहास में सबसे ताकतवर नेताओ में उनकी गिनती होती है. इंदिरा गांधी को उन्होंने ही प्रधानमंत्री बनवाया था.
इसलिए प्रशांत जी से इतनी समझ की अपेक्षा तो थी कि वे समझ पाते कि चुनाव में मतदाता डिग्री देख कर वोट नहीं देता है. तेजस्वी बिहार की राजनीति में एक ताक़त के रूप में स्थापित हैं. लालू यादव की ग़ैर हाज़िरी में 1920 के विधानसभा चुनाव में राजद का नेतृत्व तेजस्वी ने ही किया था. उसका नतीजा भी सबके सामने है.
इसलिए इन बातों को छोड़ कर प्रशांत जी को बताना चाहिए कि उनकी राजनीति क्या है ? क्या वे गाँधी को गाली देने वालों के साथ हैं ? देश में आज मुसलमानों के विरूद्ध जो नफ़रत और घृणा का अभियान चलाया जा रहा है क्या उसका वे समर्थन कर रहे हैं. क्योंकि बिहार की राजनीति में अबतक किसी भी राजनीतिक दल ने अपने राजनीतिक अभियान की इतनी महँगी शुरुआत नहीं की होगी जैसा प्रशांत ने किया है.
अब तक गाँधी को खलनायक और नाथूराम गोडसे को नायक बताने वालों की राजनीति के विषय में प्रशांत जी ने अपना मुँह नहीं खोला है. न ही उन्होंने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के विरोध में कुछ बोला है.
अपनी पदयात्रा में अब तक वे लालू , नीतीश और तेजस्वी को ही जमकर गरियाते सुने गये हैं. प्रशांत ने अपने चुनावी प्रबंधन की शुरुआत नरेंद्र मोदी जी के 2014 के चुनाव से ही की थी. कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी जी के प्रति उनका पुराना प्रेम उमड़ गया है ! और, बिहार, जहाँ से मोदी जी को गंभीर चुनौती मिल रही है उस चुनौती को कमजोर करने की उन्होंने सुपारी ले ली है ?
शिवानन्द तिवारी, पूर्व सासंद