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कथित हिंदू धर्म की हकीकत ! 

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( कालदृष्टा महामानव बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के विचारधारा से साभार )

इंद्र देव शर्मा

              ___________________

            ‘ एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को इतना अधिक पतित समझे कि कि उनको छूने से इंकार कर दे ! ऐसी प्रथा हिंदू धर्म और हिंदू समाज के सिवा कहीं अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगी ! सब में ईश्वर मानने वाले और आचरण से मनुष्य को पशु तुल्य मानने वाले लोग पाखंडी हैं। हिंदू धर्म मेरी बुद्धि को जंचता नहीं, स्वाभिमान को भाता नहीं। ‘

             -युगदृष्टा बाबासाहेब डाक्टर भीमराव आंबेडकर

             “जिस धर्म के कारण तुम्हें नीच का दर्जा दिया गया है, वह धर्म ऊपर के वर्ग के मतानुसार सनातन हैं। तुम्हें हमेशा नीचे रहना होगा। “

          इस अन्याय का प्रतिकार तुम कर नहीं सकते, क्योंकि तुम्हारे पास बाहु बल नहीं,धन बल भी नहीं है। ध्यान रखिए बगैर बाहुबल,धनबल और सशक्त हुए बिना हम इन हिन्दू वादी आसुरी शक्तियों का प्रबलतम् विरोध कर ही नहीं सकते और वह सामर्थ्य तुम्हारे पास आज भी नहीं है। अब यह बात स्वयं सिद्ध हो जाती है तुम्हें अब इसके लिए आवश्यक शक्ति और सामर्थ्य बाहर से हासिल करना होगा। धर्मांतरण किए बिना तुम दूसरे समाज का सामर्थ्य तुम्हें प्राप्त हों ही नहीं  सकता !

        हिंदू धर्म में व्यक्ति को कोई स्थान नहीं है। हिंदू धर्म की रचना वर्ग कल्पना के आधार पर है। एक व्यक्ति दूसरे से कैसे बताएं कि इसकी शिक्षा हिंदू धर्म में नहीं है। एक वर्ग दूसरे वर्ग से कैसा व्यवहार करें,उसका कोई भी बंधन हिंदू धर्म में नहीं है। जिस धर्म में व्यक्ति की प्रधानता नहीं वह धर्म मुझे स्वीकार नहीं है। व्यक्ति का जीवन हमेशा स्वतंत्र होना चाहिए । 

               हिंदू धर्म मेरे जैसे बुद्धि वाले व्यक्ति को बिल्कुल नहीं जंचता न मेरे स्वाभिमान को भाता है ! मनुष्य धर्म के लिए नहीं है बल्कि धर्म मनुष्य के भलाई और हित के लिए बनाया जाता है। जो धर्म तुम्हारी मनुष्यता का कुछ सम्मान ही नहीं करता न मानता,जो धर्म तुम्हें मंदिर में जाने नहीं देता,जो धर्म तुम्हें अपने मटके पानी तक पीने नहीं देता,जो धर्म तुम्हें शिक्षा प्राप्त करने में बाधक बनकर खड़ा हो जाता है,जो धर्म तुम्हारी नौकरी में बाधक बनता है,जो धर्म तुम्हें बात -बात पर अपमानित, तिरस्कार और हत्या तक कर देने का घोर अमानवीय व्यवहार कर देता है ! उस धर्म में तुम क्यों रहते हो ?

            “जिस धर्म में मनुष्य को मनुष्यता से बर्ताव करना मना है वह धर्म नहीं है, उद्दंडता की सजावट है। जिस धर्म में मानव की मानवता को पहचानना ही अपराध समझा जाता है,उसे धर्म नहीं माना जाना चाहिए,वह धर्म नहीं अपितु एक लाइलाज रोग है। जिस धर्म में अमंगल पशु को स्पृश्य और मनुष्य के एक वर्ग को अस्पृश्य समझा जाता है वह धर्म नहीं पागलपन है। “

           “जिस धर्म में एक वर्ग विशेष विद्या अध्ययन न कर सके,धन संग्रह ना कर सके, शस्त्र धारण ना कर सके ! वह धर्म ही नहीं है मनुष्य के जीवन की विडंबना है। जो धर्म अशिक्षित को अशिक्षित रहो, निर्धनों को निर्धन रहो, ऐसी शिक्षा देता है वह धर्म नहीं एक गंभीर सजा है।

              ” कथित हिंदू धर्म के कथित उसके ठेकेदार और कुछ गिनी-चुनी कथित उच्च जातियों के गुंडे और नरपिशाच तुम्हें परायों से भी अधिक पराए मानते हों। शत्रुता से भरे इस वातावरण में रहकर तुम्हारा क्या भला होगा ? एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को इतना अधिक पतित समझे कि उसको छूने से इंकार कर दे ऐसी घिनौनी और विकृत परंपरा और प्रथा केवल हिंदू धर्म और हिंदू समाज के सिवा दुनिया के किसी देश और भूभाग में अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलेगी ? “

            “अस्पृश्यता हिंदू धर्म पर कलंक है ऐसा कुछ लोग कहते हैं,परंतु हिंदू धर्म कलंकित है ऐसा एक भी हिंदू नहीं मानता। तुम कलंकित हो, अपवित्र हो, ऐसा मात्र अधिकांश हिंदू मानते हैं तुम्हारे में से जो मुसलमान या ईसाई हुए उनको हिंदू लोग अछूत नहीं मानते, लेकिन हिन्दू धर्म में तुम्हारे रहते तुम्हारी अस्पृश्यता तथा असमानता के लिए यदि कोई कारण है तो वह तुम्हारा और हिंदू धर्म का संबंध है जिस धर्म में मनुष्य की मनुष्यता का कोई मोल नहीं है वह धर्म किस काम का ?”

               “सब में ईश्वर है “मानने का ढोंग करनेवाले वाले और अपने व्यवहारिक आचरण में मनुष्यों के ही एक वर्ग को पशु तुल्य समझने वाले लोग पाखंडी हैं। उनका संग मत करो इनके संग से तुम्हारी इज्जत नष्ट हो गई। मुसलमान और ईसाई धर्म में ऊंच-नीच भेदभाव जागृत करने वाली शिक्षा नहीं है, परंतु हिंदू लोग तुम्हें हमेशा नीच समझते हैं इसीलिए मुसलमान और ईसाई भी तुम्हें नीच मानते हैं !

        इस कथित हिन्दुस्तान में ही सभी हिंदुओं के साथ समानता का बर्ताव करने के मानवीय अधिकार से हम 85 प्रतिशत हिन्दू ही वंचित कर दिए गए हैं ! यह कलंक धो डालने का एक ही उपाय है और वह है हिंदू धर्म और हिंदू समाज का सदा के लिए परित्याग कर देना। हिंदू धर्म में तुमको गुलामों की भूमिका दी गई है अगर तुम स्वतंत्रता चाहते हो तो तुम्हें धर्मांतरण करना ही पड़ेगा ! “

             ” इस देश के 85प्रतिशत बहुसंख्यक आबादी बेवकूफ बनाने के लिए यह भी कहा दिया जाता है कि हिंदुओं में अभी भीऐसे अनेक लोग हैं जो हिंदू धर्म में सुधार करने के लिए तैयार हैं उनकी सहायता से जाति भेद और अस्पृश्यता को नष्ट करने के बजाय धर्मांतरण करना अनुचित है। हिंदू समाज सुधारकों से मुझे अत्यंत घृणा है। नीग्रो लोगों को अपनी मानसिक और शारीरिक गुलामी से मुक्त करने के लिए उन्होंने वहां के कथित गोरों से और कथित अमेरिकन सुधारकों से घमासान युद्ध किया ! क्या समाज सुधारक कहलाने वाले भारत के अछूतों के हिमायती वैसा गृह युद्ध करने के लिए तैयार हैं ?

          प्रस्तुतकर्ता, स्वतंत्र विचारक श्री इंद्र देव शर्मा जी, कोलकाता, संपर्क –  79804 29017

          संकलन व संपादन -निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र संपर्क – 9910629632

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