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आहत आस्था और इंसानियत

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सर्वमित्रा_सुरजन 

फिल्म अभिनेता अजय देवगन की आने वाली फिल्म थैंक गॉड पर रोक लगाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। श्री चित्रगुप्त वेलफेयर ट्रस्ट की इस याचिका में कहा गया है कि फ़िल्म में भगवान चित्रगुप्त का अपमान किया गया है और इससे कायस्थ समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं। किसी फिल्म के प्रदर्शन पर रोक या उसके बहिष्कार का आह्वान अब एक आम चलन बन गया है। कुछ वक्त पहले रणबीर कपूर की फिल्म ब्रह्मास्त्र का विरोध इसलिए किया गया था, क्योंकि कई साल पहले एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि उन्हें बीफ पसंद है।

आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा का बहिष्कार हुआ और अभी आदिपुरुष फिल्म के खिलाफ भी सोशल मीडिया पर खूब माहौल बनाया गया। आदिपुरुष में, राम भक्त हनुमान और लंका के राजा रावण के चित्रण को लेकर खास आपत्ति दर्ज की गई है। कहा जा रहा है कि फिल्म में दिखाया गया हनुमान जी का रूप उनके अब तक दिखाए गए रूप से अलग है और इसलिए गलत है। किसी को हनुमान जी की दाढ़ी पर आपत्ति है, किसी को उनकी वेशभूषा पर। और ऐसी ही शिकायत रावण के रूप को लेकर भी है। रावण बने सैफ अली खान को छोटे बालों और लंबी दाढ़ी के साथ दिखाया गया है और कई लोगों ने इस रूप की तुलना अलाउद्दीन खिलजी से की।

इन फिल्मों के बहिष्कार से कुछ लोगों को मुफ्त का प्रचार हासिल हो जाता है। पिछले कुछ बरसों में यह चलन खूब बढ़ गया है कि सोशल मीडिया के जरिए किसी भी बात को फैला दो, अनावश्यक मुद्दों को बहस के गर्मागर्म विषयों में बदल दो ताकि कुछ दिन तक बेसिर-पैर की चर्चाओं में देश का वक्त बर्बाद हो जाए। पौराणिक कथाओं के पात्र किस तरह दिखते थे, इसका पुख्ता दावा कोई नहीं कर सकता। केवल धार्मिक ग्रंथों में उन्हें लेकर जो कल्पना की गई है, उसी आधार पर उनका रूप लोगों के मन में बसा है। इंसान अपनी रचनात्मकता को इसी तरह मूर्त रूप देता है। इसलिए अक्सर दक्षिण भारत और उत्तर भारत की शिल्पकला में फर्क होता है। आदिवासी इलाकों में पहले जो भगवान गणेश की मूर्तियां बनाई जाती थीं, उनका पेट पिचका होता था, क्योंकि गरीब आदिवासियों का अमूमन मोटापे से कोई संबंध नहीं होता। जब गणेशोत्सव होता है, तो गणपति को न जाने कितने-कितने रूपों में दिखाया जाता है। इन सारी बातों से धार्मिक भावनाओं के आहत होने का खतरा पहले नहीं रहता था।

लेकिन अब धर्म को लेकर जैसे-जैसे कट्टरता का आग्रह बढ़ता जा रहा है, उतनी तेजी से धार्मिक असुरक्षा की भावना भी जोर पकड़ रही है। भगवान चित्रगुप्त और हनुमानजी ही नहीं अब रावण के चित्रण को लेकर भी आपत्ति दर्ज होने लगी है। रावण के बारे में वाल्मिकी कृत रामायण और तुलसीदास कृत रामचरित मानस में यही बताया गया है कि वह विद्वान और शक्तिशाली होने के बावजूद अहंकारी, अत्याचारी राजा था, जिसने पराई स्त्री का हरण किया। सीधे शब्दों में कहें तो रावण एक बुरा शासक था और इसलिए उसे किसी भी रूप में चित्रित किया जाए, अगर उसकी बुराई प्रदर्शित हो रही है, तो फिर आपत्ति की कोई बात नहीं है। हर साल दशहरे पर रावण दहन भी इसलिए ही होता है कि हम बुराई पर अच्छाई की जीत के सबक को याद रखें। लेकिन क्या अभी ऐसा हो रहा है, यह प्रश्न विचारणीय है।

अब भी अगर स्त्रियों पर अत्याचार हो रहे हैं और समाज के वंचित लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है, तो इसका मतलब यही है कि समाज में अपने पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों से सीख लेने में कहीं कोई कमी रह गई है। अब धर्म को राजनीति और वर्चस्व साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए धार्मिक, जातीय विवाद खड़ा करने वालों का हौसला बढ़ रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में एक कार्यक्रम में हजारों लोगों ने बौद्ध धर्म अपनाया था और इस दौरान आप विधायक राजेंद्र पाल गौतम की मौजूदगी पर विवाद बढ़ा था, जिसके बाद उन्होंने अपने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। उनकी मौजूदगी में वे 22 प्रतिज्ञाएं ली गई थीं, जो बाबा साहेब अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा के दौरान ली थीं। इस पर अब दिल्ली पुलिस ने राजेंद्र पाल गौतम से पूछताछ भी की है। लेकिन इस बीच कर्नाटक से एक वीडियो सामने आया है, जिसमें बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने वाले कुछ दलितों ने हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरों को नदी में विसर्जित किया है।

देखना ये है कि क्या भाजपा शासित कर्नाटक में उनसे भी कोई पूछताछ की जाती है। इधर एक वीडियो उत्तराखंड का भी आया है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर एक कार्यक्रम में पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक बंशीधर भगत महिलाओं को संबोधित करते हुए कथित तौर पर कह रहे हैं कि भगवान तक ने आपका पक्ष लिया है। विद्या मांगों तो सरस्वती को ‘पटाओ’, शक्ति मांगो तो दुर्गा और धन मांगो तो लक्ष्मी को ‘पटाओ’। श्री भगत निश्चित ही महिलाओं की शक्ति और उनके पक्ष की बात ही कर रहे हैं, लेकिन उनकी भाषा को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या धर्म में कुछ देवियों के होने से महिलाओं का सम्मान सुनिश्चित हो जाता है। क्या पटाना जैसे शब्द मर्यादाहीन नहीं माने जाने चाहिए। क्या इससे हिंदुत्व के ठेकेदारों की भावनाएं आहत नहीं होती। प्रसंगवश यह याद दिलाना जरूरी है कि इसी उत्तराखंड में एक 19 बरस की लड़की की हाल में इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि उसने वेश्यावृत्ति में जाने से इंकार कर दिया था।

अभी उत्तरप्रदेश से भी एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें दो लड़कों को कुछ लड़के घेर कर मार रहे हैं और जातिसूचक अपशब्द कह रहे हैं। बताया जा रहा है कि पीड़ित युवक दलित हैं और उन्हें पीटने वाले सवर्ण। दलित उत्पीड़न की ऐसी घटनाएं रुक ही नहीं रही हैं और ऐसे में कोई जाति व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए दूसरा धर्म अपना रहा है और देवी-देवताओं को न मानने की बात कह रहा है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो रही है। बड़ी विडंबना है कि कुछ लोगों को जीते-जागते इंसानों की प्रताड़ना से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन फिल्मों के किरदार से इनकी आस्था पर चोट पहुंचती है।

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