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चुनाव आयोग की विस्वसनीयता पर सवालिया निशान

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विजय दलाल

*चुनाव मंत्रालय द्वारा पहले उद्धव ठाकरे की  शिवसेना के साथ सरासर अन्याय किया। इसके पूर्व कभी कोई उदाहरण नहीं है कि पार्टी से कोई फ्रैक्शन अलग हो तो मूल पार्टी का नाम कभी बदला हो। केवल चुनाव चिन्ह बदलते रहे हैं।*

*हिमाचल प्रदेश में चुनाव की घोषणा के साथ फिर नया कारनामा किया है।*

*मेरे जैसे लोग जो इस बात में पक्का विश्वास करते हैं कि चुनावों में ईवीएम का दुरूपयोग किया जाता है उन्हें चुनाव मंत्रालय की इस घोषणा से कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब 12 नवंबर को एक ही दौर में पुरे चुनाव करवाए जा रहे हैं तो नतीजे इतने दिन बाद 8 दिसंबर को क्यों?*

*चुनाव आयोग के पूर्व अधिकारियों द्वारा जिन्होंने इस्तीफा दे कर यह बताया है कि ईवीएम मशीनें हैक हो जाती है पड़ी मशीनों से वोटिंग की जानकारी पहले से हो जाती है और प्रोग्रामिंग द्वारा पड़े हुए वोटों को बदला जा सकता है।*

 *इस काम में एकमात्र बाधा है वीवीपीएटी पर्ची का मिलान, क्योंकि यह सारा खेल वीवीपीएटी मशीन के हटने के बाद ही होता है। अगर मशीन में वोटों की हेराफेरी की है तो पर्ची की गणना में पकड़ में आसानी से आ सकती है।*

*इसलिए चुनाव मंत्रालय और बीजेपी की सरकार वोट पर्ची की समानांतर गणना नहीं करवाना चाहते।*

*वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने की रूचि केवल लोकसभा के चुनाव में ही रहती है। इसलिए केवल उस चुनाव में ही दूसरी पार्टी के वोट को बीजेपी के वोट में परिवर्तित किया जाता है।*

*विधानसभा के चुनाव में सामान्यतः वह फार्मूला इस्तेमाल नहीं किया जाता। वहां एकमात्र लक्ष्य कैसे भी सत्ता में जमे रहना।*

*इसलिए हारने के बाद में भी विपक्षी विधायकों को खरीदकर सरकारें बना ली जाती है।*

*यहां जीतने वाली पार्टी के वोटों को तीसरी पार्टी के वोट में परिवर्तित किए जाते हैं। जो बिहार में औवेसी के वोटों में परिवर्तित कर किया गया। आजमगढ़ में सपा के वोट बसपा के वोट में परिवर्तित कर और पंजाब में मान की लोकसभा की सीट पर अकाली दल को जीता कर किया।*

*जब तक विपक्षी दल अभी बैलेट  से चुनाव की मांग पर जोर देने के स्थान पर वीवीपीएटी पर्ची की समानांतर गणना नहीं करवाते तब तक चुनाव मंत्रालय से निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद बेकार तो है ही और कुछ भी करले बीजेपी को सत्ता से हटाना भी मुश्किल है।*

विजय दलाल

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