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भारत में मीडिया कंपनियां धर्म बेचती हैं… जाति बेचती हैं… राष्ट्रवाद को बेचतीं हैं…

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अनिल चमड़िया

पूरी दुनिया में आधुनिक मीडिया कंपनियों का तेजी से विस्तार राष्ट्रवाद की राजनीति के साथ हुआ है। समाचार मीडिया राष्ट्रवाद को एक भावना के रुप में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। सांप्रदायिकता, जातिवाद, धार्मिक कर्मकांड आदि की सतहें इस राष्ट्रवाद में छिपी होती है। भारत में समाचार का कारोबार करने वाली कंपनियां अन्य तरह के सामान को बनाकर बेचने वाली कंपनियों से बिल्कुल अलग नहीं लगती है। वे धर्म बेचती हैं। वे जाति बेचती हैं। वे राष्ट्रवाद को बेचतीं हैं। वे कारपोरेट कंपनियों के कूड़े का भी अच्छा मोल वसूल लेती हैं। 

ब्रिटेन में आर्थिक संकट बहुत तेजी से बढ़ा है। तमाम पूंजीवादी देशों में यह संकट गहराया है। भारत में भी है, लेकिन ब्रिटेन जैसे देशों में आर्थिक संकट झेल रहे लोगों को सांप्रदायिकता, जातिवाद और धार्मिक उन्माद वाले राष्ट्रवाद के नाम पर भ्रमित करना मुश्किल है। इसीलिए वहां आर्थिक संकट को दूर करने में विफल होने वाले राजनीतिक नेतृत्व को तत्काल पद छोड़ना पड़ं रहा है। ब्रिटेन के नागरिक ऋषि सुनक को भी कंजरवेटिव पार्टी ने मौका दिया है कि वह देश के आर्थिक संकट को दूर करने में अपनी कौशलता दिखाएं। उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर बेशुमार दौलत हासिल की है और ब्रिटेन के सबसे बड़े पूंजीपतियों में उनकी गिनती होती है। उनकी यह व्यक्तिगत योग्यता देश के लिए भी इस्तेमाल करने का अवसर मिला है। 

अब सवाल यह है कि किसी देश में आर्थिक संकट के गहराने के कारण राजनीतिक नेतृत्वों में फेरबदल की घटनाओं को दूसरे देश के लोगों के सामने कैसे प्रस्तुत किया जाए। यह एक बड़ी चुनौती समाचार मीडिया के सामने होती है। भारत में हिंदी भाषा में समाचार देने वाली मीडिया कंपनियों को सबसे ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है। हिंदी मीडिया कंपनियों के बारे में यह अनुभव स्पष्ट रुप से स्थापित हैं कि वह सांप्रदायिकता बेचती हैं। जातिवाद को बेचती हैं और इन सबका मिला-जुला राष्ट्रवाद के इस्तेमाल को सबसे ज्यादा आकर्षक और सुरक्षित ब्रांड समझती है।

ऋषि सुनक, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री

ऋषि सुनक ब्रिटेनवासी हैं। उनके पूर्वज उस भारत में पले-पढ़े, जो अब भारत और पाकिस्तान के रुप में विभाजित होकर खड़ा है। हिंदी के अखबारों के लिए लोकतंत्र में आर्थिक संकट और नेतृत्व परिवर्तन की विवशता सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने की घटना खबर के केंद्र में नहीं है। हिंदी मीडिया कंपनियों ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद पर परिवर्तन की घटना को प्रधानमंत्री के पद पर बैठने वाले ब्रिटिश नागरिक के भारतवंशी होने, हिंदू होने, पंजाबी खत्री होने यानी सुनक की व्यक्तिगत पृष्ठभूमि से जुड़ी आधी-अधूरी सूचनाओं को खबर के केंद्र में रखा है। मीडिया कंपनियों में एक होड़ शुरु होती है कि वह सांप्रदायिक और जातिवाद आधारित राष्ट्रवाद को ज्यादा से ज्यादा उग्र तरीके से प्रस्तुत करने में सबसे आगे हो। खासतौर से खबर की हेडिंग में यह होड़ होती है और जब से इंटरनेट आधारित मीडिया का विस्तार हुआ है तबसे हेडिंग को ही पत्रकारिता का पर्याय बना दिया गया है। यदि आप समाचार पत्रों व न्यूज टेलीविजन कंपनियों की वेबसाइट पर उनके हेडिंग बदलते रहने के समय का अध्ययन करें तो यह होड़ साफ साफ दिखती है। 

ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर जो हेडिंग बनी है, उसके कुछ नमूने यहां प्रस्तुत हैं। 

  1. ऋषि सुनक ने रचा इतिहास, ब्रिटेन के पहले मूल भारतवंशी प्रधानमंत्री
  2. भारत को मिला दिवाली गिफ्ट, सुनक होंगे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री 
  3. भारत वंशी ऋषि सुनक ने रचा इतिहास, दिवाली पर ब्रिटेन को मिला हिंदू प्रधानमंत्री
  4. गीता पर हाथ रखकर ली शपथ, दिवाली पर जलाए दीये, जाने सुनक के बारे में खास बातें

पूरी दुनिया में आधुनिक मीडिया कंपनियों का तेजी से विस्तार राष्ट्रवाद की राजनीति के साथ हुआ है। समाचार मीडिया राष्ट्रवाद को एक भावना के रुप में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। सांप्रदायिकता, जातिवाद, धार्मिक कर्मकांड आदि की सतहें इस राष्ट्रवाद में छिपी होती है। लेकिन मीडिया कंपनियों के बीच होने वाली होड़ में तरह तरह के ‘राष्ट्रवाद’ के विनिर्माण का मजबूत तर्क विकसित किया है। इसीलिए मीडिया की हेडिंग में राष्ट्रवाद को तैयार करने को सबसे सफल हुनर माना जाता है। सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने की खबर में यह राष्ट्रवाद भारतवंशी हिन्दू सांप्रदायिकता से सराबोर किया गया है। खबरों के विनिर्माण को मजबूत साबित करने के लिए एक के बाद एक नट-बोल्ट जड़ा जाता है, लेकिन वह समाचार के न्यूनतम सिद्धांत को भी उसमें रोड़ा मान लेता है। सुनक ने प्रधानमंत्री बनने के बाद हिंदू धार्मिक ग्रंथ गीता पर हाथ रखकर शपथ नहीं ली, लेकिन प्रधानमंत्री बनने पर हेडिंग इसी रुप में दी गई। कंजरवेटिव पार्टी के नेता सुनक ने ब्रिटेन में हिंदुअें को धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करने के लिए कई बार झलकियां पेश की है। लेकिन राजनीति यानी सत्ता के लिए इस्तेमाल की जाने वाली झलकियों को वास्तविक अर्थो वाले धर्म के रुप में मीडिया कंपनियां पेश करती है। 

उत्सव का तो यह आलम की भारत में हिंदी के एक समाचार पत्र ने सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर एक दिन में आठ-आठ खबरें दी। लेकिन यह केवल भारत में ही मीडिया कंपनियों की स्थिति नहीं है। पाकिस्तान ने भी जश्न मनाया और उसने सुनक पर अपना हक ज्यादा जताया क्योंकि सुनक के दादा-दादी भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से की इलाके में पले-बढ़े। सुनक का जन्म भी भारत में नहीं हुआ है । बेशक उनकी पत्नी भारत की नागरिक रही हैं। 

दुनिय़ा में जिस तरह से घटनाएं हो रही हैं, समाचार मीडिया उनके मूल कारणों को बताने के बजाय अपने अपने देशों में स्थानीय राजनीति और सत्ता के हिसाब से उनकी खबरें प्रस्तुत कर रही है। वैश्वीकरण के दौर में विश्व की घटनाओं की जानकारी का अभाव मीडिया के उपभोक्ताओं के बीच देखा जाता है। तकनीक का वर्चस्व वास्तविक खबरों से दूर रखने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, यह स्पष्ट रुप से देखा जा रहा है। 

भारत में मीडिया कंपनियां राष्ट्रवाद के विनिर्माण की नई नई कंपनियां दिखती है और उनके बीच में विकृत होड़ और वर्चस्व की बाजी लगी हुई है। 

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे ‘मास मीडिया’ और ‘जन मीडिया’ नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

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