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उत्तर प्रदेश में अब तक इन विधायक- सांसदों को हो चुकी है सजा

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उत्तर प्रदेश के रामपुर में एमपी एमएलए कोर्ट ने हेट स्पीच केस में आजम खान के खिलाफ सजा का ऐलान कर दिया है। आजम खान को तीन साल की सजा सुनाई गई है। कोर्ट का आदेश आने के बाद से साफ हो गया है कि आजम की विधानसभा सदस्यता चली जाएगी। कोर्ट की ओर से सजा के ऐलान के बाद कुछ प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें पूरी कराई जानी हैं। रामपुर डीएम की ओर से इस संबंध में यूपी विधानसभा के सचिव को सूचना दी जाएगी। दरअसल, रामपुर डीएम एमपी एमएलए कोर्ट की ओर से जारी आदेश की अभिप्रमाणित कॉपी मिलने के बाद सदस्यता खत्म होने से संबंधित पत्र जारी करेंगे। रामपुर डीएम रविंद्र कुमार मांदड़ का कहना है कि अभी कोर्ट का आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। आदेश मिलने के बाद अध्ययन करेंगे और इसके बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी। इसके लिए विधानसभा के प्रमुख सचिव और चुनाव आयोग को लिखा जाएगा। रामपुर शहर विधानसभा सीट से आजम खान यूपी चुनाव 2022 में लगातार दसवीं बार जीत दर्ज करने में सफल रहे थे। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 107(1) के तहत केवल आजम खान की सदस्यता नहीं खत्म होने वाली है, बल्कि यूपी के कई विधायकों को इस कानून के तहत अपनी विधायकी गंवानी पड़ी थी।

इन जन प्रतिनिधियों पर हुई है कार्रवाई
अशोक चंदेल:
 हमीरपुर से भाजपा विधायक अशोक कुमार सिंह चंदेल की सदस्यता जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत वर्ष 2019 में चली गई थी। 19 अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट ने उन्हें हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सजा सुनाई थी। अशोक चंदेल हमीपुर में वर्ष 2007 में राजीव शुक्ला के भाई- भतीजों समेत 5 लोगों की हत्या में दोषी पाए गए थे। इस चर्चित हत्याकांड में उनके साथ ही 11 अन्य लोगों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सजा सुनाई। इसके बाद उनकी विधायकी खत्म होने की अधिसूचना जारी कर दी गई।

Ashok Singh Chndel

अशोक सिंह चंदेल
कुलदीप सेंगर: उन्नाव में नाबालिग से सामूहिक रेप केस में बांगरमऊ से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। विधानसभा के प्रमुख सचिव की की ओर से सजा के ऐलान के दिन यानी 20 दिसंबर 2019 से ही उनकी सदस्यता खत्म किए जाने का आदेश जारी किया गया था।

Kuldeep singh sengar

कुलदीप सिंह सेंगर
अब्दुल्ला आजम: समाजवादी पार्टी से वर्ष 2017 में रामपुर के स्वार विधानसभा सीट से विधायक बने अब्दुल्ला आजम की सदस्यता भी रद्द हो चुकी है। 16 दिसंबर 2019 को उनका चुनाव शून्य करार देते हुए उनका निर्वाचन रद्द कर दिया गया था। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 107(1) के तहत चुनाव रद्द हो गया। उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। फर्जी सर्टिफिकेट मामले में दोषी होने के कारण उन्हें सजा नहीं मिली और चुनाव लड़ने पर रोक जैसे प्रतिबंध का सामना उन्हें नहीं करना पड़ा। इस कारण अब्दुल्ला आजम यूपी चुनाव 2022 में फिर स्वार उतरे और जीते।

Abdulla Azam

अब्दुल्ला आजम खान
रशीद मसूद: एमबीबीएस सीट घोटाले में कांग्रेस के सांसद काजी रशीद की सदस्यता चली गई थी। काजी रशीद कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे थे। कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में भेजा था। राज्यसभा सांसद रहते उन्हें एमबीबीएस सीट घोटाले में दोषी पाया गया। वर्ष 2013 में कोर्ट ने चार साल की सजा सुनाई। इससे उनकी सांसदी चली गई।

Rasheed Masood

रशीद मसूद
मित्रसेन यादव: धोखाधड़ी के एक केस में समाजवादी पार्टी के सांसद मित्रसेन यादव को अपनी सांसदी गंवानी पड़ी थी। वर्ष 2009 में फैजाबाद सीट से सपा सांसद मित्रसेन यादव के खिलाफ धोखाधड़ी का एक मामला साबित हुआ। कोर्ट ने उन्हें सात साल की सजा सुनाई। इसके बाद उनकी सांसदी चली गई। वर्ष 2015 में मित्रसेन यादव का निधन हो गया था।

Mitrasen Yadav

मित्रसेन यादव
खब्बू तिवारी: फर्जी मार्कशीट केस में अयोध्या के गोसाईंगंज से भाजपा विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी की सदस्यता चली गई थी। साकेत कॉलेज के प्राचार्य यदुवंश राम त्रिपाठी की याचिका पर कोर्ट ने उनके खिलाफ पांच साल की सजा सुनाई। इस मामले में खब्बू तिवारी को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी।

Khabbu Tiwari

इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी
क्या है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम
देश में लोक जनप्रतिनिधित्व कानून के आने के बाद से अब तक कई सांसद-विधायकों को अपना पद गंवाना पड़ा रहा है। कोर्ट की ओर से सजा का ऐलान होने पर अब जन प्रतिनिधियों की नजर सजा अवधि पर टिकने लगी है। इसका कारण 10 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से लिली थामस बनाम भारत संघ मामले में एक बड़ा फैसला माना जा रहा है। कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर कोई विधायक, सांसद या विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और उसे कम से कम दो साल की सजा होती है तो ऐसे में वह तुरंत सदस्यता से अयोग्य हो जाएगा।

इसका अर्थ यह हुआ हुआ कि उसका जनप्रतिनिधि के रूप में चुनाव रद्द हो जाएगा। इस प्रकार जन प्रतिनिधि के रूप में पहचान समाप्त हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद से अब तक कई जन प्रतिनिधियों को अपना पद गंवाना पड़ा है। इसमें सबसे ताजा नाम आजम खान का शामिल होने वाला है।

Sentenced Political leaders

लालू यादव बने थे पहले शिकार
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तत्कालीन मनमोहन सरकार इसके खिलाफ बिल लाने की तैयारी कर रही थी। लेकिन, तब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बिल की कॉपी को फाड़कर अपना विरोध जताया। बिल अटक गई। सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू हुआ और इसका पहला शिकार लालू प्रसाद हुए। लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चारा घोटाले के मामले में वर्ष 2013 में कोर्ट ने सजा का ऐलान किया और उनकी सांसदी चली गई। उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग गई। अभी भी लालू यादव चुनावी मैदान में उतरने के योग्य इसी कानून के कारण नहीं हैं।

जन प्रतिनिधित्व कानून का शिकार तमिलनाडु की पूर्व सीएम जे. जयललिता भी हुई थीं। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सजा का ऐलान होने के बाद उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा था। 10 साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी। इनके अलावा झारखंड के आजसू विधायक कमल किशोर भगत, महाराष्ट्र के भाजपा विधायक सुरेश हलवंकर, बिहार के जहानाबाद से सांसद जगदीश शर्मा, महाराष्ट्र की उल्लाहसनगर सीट से विधायक पप्पू कालानी और मध्य प्रदेश से भाजपा विधायक आशा रानी जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत विभिन्न मामलों में सजा के ऐलान के बाद अपना पद छोड़ना पड़ चुका है।

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