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दीपावली की रात उल्लूओं की शामत !आखिर ऐसा क्यों ? 

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निर्मल कुमार शर्मा

भारतीय समाज में दीपावली का त्योहार एक ऐसा अद्भुत, अद्वितीय और बेहतरीन रौशनी से जगमागाता त्योहार है,जो उदास से उदास और मानसिक रूप से उद्विग्न और निराश व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में भी उमंग-उत्साह व आशा का संचार कर देता है ! इस देश का गांव हो,कस्बा हो,शहर हो, यानी हर जगह जहां मानवीय बस्ती हो,हर जगह अपनी सामर्थ्यानुसार दीपों, मोमबत्तियों, विद्युत लड़ियों आदि से सजे घर प्रकाश से आलोकित होते दिख जाएंगे,यह प्यार बांटने और उसे हृदयंगम करने का भी त्योहार है । दीपावली के त्योहार का सबसे सुखद और मानवीय स्वास्थ्य के हिसाब से सबसे बड़ी अच्छाई यह भी है कि भारतीय समाज के सभी लोग इस त्योहार को एक ऐसे अवसर के रूप में केन्द्रित करते हैं,जिसमें वे अपने घरों को इस त्योहार से पूर्व अपने घर के कोने-कोने की साफ-सफाई, लिपाई-पुताई या रंग-रोगन करके अपने-अपने आवासों को स्वच्छता के चरम् तक साफ कर देते हैं ! एक तरह से पूरा भारतीय गणराज्य इस दिन  स्वच्छता और रौशनी से आलोकित हो उठता है !

  

             परन्तु जरा ठहरिए,आज के समय में भी, जबकि हमारे देश के अंतरिक्ष यान भले ही अंतरिक्ष की असीम दूरी पर स्थित चांद और मंगल तक पर पहुंच गए हों, लेकिन अंधविश्वास और जाहिलता के मामले में भारतीय समाज के कुछ तबके आज भी प्रस्तरयुग में खड़े हैं ! इस पावन और पवित्र त्योहार पर ही भारतीय समाज के कुछ बहुत निकृष्ट सोच वाले व्यक्ति इस दिन की अच्छाइयों के धुर विपरीत कुछ ऐसे निम्न स्तरीय कुकृत्य करते हैं कि एक संवेदनशील, करूणामयी और इंसानियत भरे इंसान के लिए उनके ये किए कुकृत्य बहुत ही शर्मनाक और मानवता के बिल्कुल खिलाफ होते हुए प्रतीत होते हैं, उदाहरणार्थ कुछ असामाजिक तत्व इस अमावस्या की रात मनाए जाने वाले त्योहार के दिन चोरी करने और जुआ खेलने जैसे मानसिक रूप से विकलांग कुकर्म भी करते हैं !

             इससे भी ज्यादा जघन्य कृत्य इस दिन का दुरूपयोग कुछ अत्यंत धर्मभीरू ,पाखंडी और अंधविश्वासी लोग भारतीय उपमहाद्वीप के एक अतिमहत्वपूर्ण पक्षी जो पर्यावरण संरक्षण और किसान मित्र के तौर पर सबसे मशहूर है,जो कृषि के सबसे बड़े दुश्मन चूहों का सर्वाधिक संख्या में सर्वनाश करके कृषि उत्पादन के वृद्धि में अपना अमूल्य सहयोग देता है,उस रात्रिचर पक्षी उल्लुओं की असीमित संख्या में बलि देकर उनकी हर साल हत्या कर देते हैं ! इसके पीछे कुतर्क है कि इस नीरीह पक्षी को धनतेरस या दीवाली के दिन बलि देने से कथित ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न होकर उन्हें धनवान बना देगी ! बंगाल में काली देवी के चरणों में भी बहुत से उल्लूओं की अनवरत हत्या की जाती है ! विडंबना और विद्रूपता यह भी है कि अवैध रूप से उल्लुओं का कारोबार करने वाले कुछ चुनिंदा घूमंतू जातियों की स्थिति अतिधनवान होने के ठीक विपरीत  क्रमशः और दैन्य होती गई है !      

               मिडिया के अनुसार भारत में पाई जाने वाली उल्लूओं की 30 प्रजातियों में से 16 दिवाली में बलि या हत्या के लिए प्रयोग किए जाते हैं ! बलि चढ़ाने में सबसे ज़्यादा बड़े उल्लुओं की मांग होती है ! इसमें भी सबसे ज्यादा हत्या इंडियन राक ईगल उल्लू ,The Indian Rock Eagle Owl,भूरा फिश उल्लू, Brown Fish Owl,डस्की ईगल उल्लू, Dusky Eagle Owl, इंडियन स्कोर्स उल्लू, Indian Scops Owl और मोटेड वुड उल्लू Mottled Wood Owl…आदि इन 5 प्रजातियों की सर्वाधिक हत्या की जाती है,क्योंकि ये सभी उल्लू तुलनात्मक रूप से आकार में बड़े होते हैं ! जाहिर सी बात है कि कथित लक्ष्मी देवी जी इन बड़े पक्षी की मौत पर ज्यादे प्रसन्न होकर उसकी जघन्य हत्या करनेवाले अपने भक्त की झोली और ज्यादे सोने के सिक्कों से भर देगी ! की घोर इंसानियत विरोधी पाखंडी मानसिकता काम कर रही होगी !

          भारत में उल्लू की 16 प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर ! 

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             वर्ल्ड वाइड फंड बार नेचर -भारत World Wide Fund for Nature  डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत के एक नये लेख में कहा गया है, ‘भारत में उल्लूओं की  36 प्रजातियां पायी जातीं हैं और इन सभी को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत शिकार, कारोबार या किसी प्रकार के उत्पीड़न से संरक्षण प्राप्त है। ’ लेख में कहा गया है कि कानूनी संरक्षण के बावजूद आमतौर पर यह पाया गया है कि उल्लू की कम से कम 16 प्रजातियों की अवैध तस्करी एवं कारोबार किया जा रहा है। इसमें इन प्रजातियों में खलिहानों में पाया जाने वाला उल्लू, ब्राउन फिश उल्लू, ब्राउन हॉक उल्लू, कॉलर वाला उल्लू, काला उल्लू, पूर्वी घास वाला उल्लू, जंगली उल्लू,धब्बेदार उल्लू, पूर्वी एशियाई उल्लू, चितला उल्लू आदि शामिल हैं।

            भारतीय कूपमंडूक समाज की एक और विडंबना देखिए कि एक तरफ पक्षी उल्लू को ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है और उसी वाहन की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी जाती है,मतलब देवी को उड़ान भरने से लाचार करने का कुकृत्य हर वर्ष उसके भक्त लोग ही करते हैं ! इसमें यह भी सोचा जा सकता है कि देवी लक्ष्मी अपने वाहन की हत्या या बलि चढ़ा देने से खुश कैसे हो जाएगी ? यह भी विचारणीय है ! जरा सोचिए आप सपरिवार खुशियां मनाने मुंबई जा रहे हों और अचानक कुछ जाहिलों,असभ्यों और वहशियों का एक समूह आपकी ट्रेन को रोककर उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त करके उस ट्रेन को गंतव्य तक पहुंचने से रोक दें तो आप प्रसन्न कैसे हो जाएंगे ? यह पागलपन की इंतिहा है !  

भारत में ग़ैरक़ानूनी है उल्लू को मारना !

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            विडंबना यह भी है कि भारतीय क़ानून के अनुसार, उल्लू को मारना या बलि देना दोनों ही ग़ैर-क़ानूनी हैं ! जिसके लिए सज़ा का प्रावधान है. इसके अलावा उल्लू की तस्करी करने की सज़ा 3 साल है. 2016 में लब्धप्रतिष्ठित समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस, Indian Express की एक रिपोर्ट के अनुसार,कर्नाटक के मालनाड क्षेत्र में अवैध शिकारी उल्लू पकड़ते हैं और उन्हें कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में इनकी तस्करी की जाती है,इसके अलावा उल्लुओं की ख़रीद और बिक्री का ज़्यादातर बाज़ार राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है जहां एक अत्यंत गरीब और घूमंतू जनजाति ‘कलंदर ‘ उन्हें पकड़ते हैं ।

                ये लोग मुख्य तौर पर जयपुर, भरतपुर, अलवर और फ़तेहपुर सिकरी के अंदरूनी ग्रामीण इलाक़ों में रहते हैं,कोराई-करावली नामक गांव उल्लू के गुप्त और अवैध व्यापार के लिए देशभर में कुख्यात हैं,मथुरा के पास कोसी-कलां भी इसके लिए बहुत बदनाम इलाका है ! इसके बाद इन पकड़े गए इन निरीह पक्षी उल्लूओं की खुलेआम बाजारों में इन निरीह पक्षियों की खरीद -बिक्री की जाती है !

                 प्रश्न उठता है कि जब इतनी संख्या में इन निरीह पक्षियों की सरेआम हत्या की जा रही है,इनके लिए सख्त कानून भी है,तो इन विलुप्ति के कगार पर खड़े 16 उल्लूओं की प्रजातियों को बचाने के लिए इन संबन्धित राज्यों की सरकारें और केंद्र में बैठी सरकारें इन असामाजिक व अवैध कारोबार में संलिप्त तत्वों के खिलाफ सख्त कानून कार्यवाही क्यों नहीं करतीं ? ये नाकारा सरकारें किस दिन का इंतजार कर रहीं हैं ? इन पक्षियों को पकड़नेवाले कंजरों और इनके अवैध कारोबार में संलिप्त असामाजिक तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से परहेज़ क्यों किया जा रहा है ? क्या कार्यवाही करने वाली एजेंसियों के कर्मचारियों और अफसरों को इन अवैध कारोबार में संलिप्त तस्करों द्वारा कमीशन में मोटी रकम मिलती है ? यह गुरू गंभीर प्रश्न है ! हर हाल में उल्लुओं की इन विलुप्ति के कगार पर खड़ी प्रजातियों को संरक्षित किया ही जाना चाहिए !

-निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष, बेखौफ,आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल – nirmalkumarsharma3@gmail.com

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