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चिराग पासवान पर डोरे डाल रहे हैं सूरजभान सिंह

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डॉन से कारोबारी बना ‘मिर्जापुर’ का कालीन भैया कहता है कि ‘डर की यही दिक्कत है, कभी भी खत्म हो सकता है।’ बिहार में बाहुबली के बिना राजनीति करना किसी भी विचारधारा वाले नेता और पार्टी के लिए शायद संभव नहीं रहा है। पहले भी ऐसा ही था, अब भी कुछ ज्यादा बदला नहीं है। एक वक्त था जब मोकामा में सूरजभान सिंह के नाम से लोग डरते थे। बाद में उनकी जगह अनंत सिंह ने ले ली। मगर आज हालात ऐसे नहीं हैं, सूरजभान की अब रंगदारी की जगह कारोबार में ज्यादा रूचि है। अनंत सिंह भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं। मगर सियासत की मोह न तो सूरजभान छोड़ पाए और ना ही अनंत। नीतीश से होते हुए अनंत सिंह आजकल लालू के बेटे तेजस्वी के शरण में हैं तो सूरजभान भी नीतीश से होते हुए अब रामविलास पासवान के बेटे चिराग पर डोरे डाल रहे हैं।

रामविलास ने सूरजभान को बताया था समाजसेवी
मोकामा से साल 2000 का विधानसभा चुनाव जीतकर बाहुबली से माननीय विधायक सूरजभान सिंह हो गए। नीतीश कुमार की आठ दिनों की सरकार में सूरजभान के नेतृत्व में दबंग निर्दलीय विधायकों का एक मोर्चा बना था। सूरजभान ने नीतीश कुमार को समर्थन दिया लेकिन सरकार नहीं बच सकी। सूरजभान ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत नीतीश के संकटमोचक के रूप में की। मगर रामविलास पासवान के बंगले को दिल से लगा लिया। हत्या, रंगदारी, अपहरण सहित सूरजभान सिंह पर 30 मामले दर्ज थे, तब वो रामविलास पासवान के बंगला को रोशन करने पार्टी में आए थे। रामविलास पासवान ने उन्हें समाजसेवी का दर्जा दिया। 2004 में वो लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर बलिया से सांसद बन गए। बाद के दिनों में नीतीश कुमार के हाथ में बिहार की सत्ता के साथ-साथ अनंत सिंह भी थे। लिहाजा सूरजभान की मुश्किलें बढ़नी तय थी तो मामलों का स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ। हालांकि, रामविलास का छत्रछाया सूरजभान सिंह को मिलते रहा।

सूरजभान ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत नीतीश के संकटमोचक के रूप में की। मगर रामविलास पासवान के बंगले को दिल से लगा लिया।

सुनील पाण्डेय
पहले खुद, फिर पत्नी और अब भाई के नाम सियासी विरासत
सजायाफ्ता होने की वजह से सूरजभान सिंह चुनाव नहीं लड़ सकते। 2014 में इनकी पत्नी वीणा देवी मुंगेर सीट से लोजपा के टिकट पर सांसद चुनीं गईं। चूंकि लोक जनशक्ति पार्टी में पावर शिफ्टिंग चिराग के पास हो गई थी, लिहाजा वीणा देवी की उटपटांग बयानों से पार्टी की फजीहत हो जाती थी। ऐसे में सूरजभान के भाई चंदन को टिकट देने पर चिराग पासवान राजी हुए। चंदन सिंह बड़े ठेकेदार हैं और नवादा सीट से 2019 में लोजपा के सांसद चुने गए। अपराध से उनका नाता नहीं रहा है।

रामविलास पासवान ने उन्हें (सूरजभान सिंह) समाजसेवी का दर्जा दिया। 2004 में वो लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर बलिया से सांसद बन गए।

सुनील पाण्डेय
सूरजभान सिंह ने किया था चिराग पासवान को बेदखल
रामविलास पासवान के निधन के बाद करीब सालभर पहले लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) पर कब्जे की लड़ाई शुरू हुई। चिराग को उनके पिता रामविलास पासवान की बनाई पार्टी (एलजेपी) से बेदखल कर सूरजभान सिंह को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। सूरजभान सिंह जितने रामविलास पासवान के लिए भरोसेमंद रहे, उतने ही उनके भाई पशुपति पारस के लिए हो गए। अब चूंकि बीजेपी और चिराग दोनों एक-दूसरे का खुलकर तारीफ करने लगे तो सूरजभान सिंह की कोशिश है कि वो चिराग के भी करीबी हो जाएं।

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चिराग पासवान को सूरजभान सिंह बता रहे बड़े दलित नेता
पूर्व बाहुबली सांसद सूरजभान सिंह ने मोकामा उपचुनाव के दिन (गुरुवार) चिराग पासवान की जमकर तारीफ की। उन्हें देश का बड़ा दलित नेता करार दिया। उन्होंने कहा कि चिराग पासवान के आने से पूरे देश में बदलाव आता है तो फिर मोकामा उससे बाहर थोड़ी है। चिराग पूरे देश के दलितों के लीडर हैं। मोकामा की सियासी पिच पर सूरजभान सिंह और चिराग पासवान बीजेपी के लिए बैटिंग कर रहे हैं। उनका मुकाबला 18 साल से कब्जा जमाए अनंत सिंह से है।

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बिहार में चाचा-भतीजे की जंग खत्म कराना बीजेपी की मजबूरी
केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस और जमुई के सांसद चिराग पासवान के बीच चल रही जंग खत्म होने के आसार हैं। चाचा-भतीजे के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के दो गुटों के बीच की खाई कम होने के संकेत मिलने लगे हैं। चिराग पासवान को सूरजभान सिंह ने ‘देश का बड़ा दलित नेता’ बताया। सूत्रों ने बताया कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी पारस और चिराग को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है क्योंकि राज्य में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद बिहार में उसके पास कोई गठबंधन सहयोगी नहीं बचा है।

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