मुनेश त्यागी
आजकल दिल्ली का नेशनल कैपिटल रीजन प्रदूषण की गंभीर चपेट में है। पूरे आसमान पर धुंध और धुआं छाया हुआ है जिस वजह से सांस लेना भी दूभर हो रहा है। जैसे पूरा नेशनल कैपिटल रीजन एक गैस चेंबर बनकर रह गया है। बच्चे बीमार हो जा रहे हैं। कई बच्चे तो स्कूल के समय में ही बेहोशी की स्थिति में पहुंच गए हैं। इसे लेकर मीडिया में काफी शोर मचा हुआ है और स्थिति यहां तक गंभीर हो गई है कि सरकार को आठवीं कक्षा तक के स्कूल बंद करने पड़े हैं।
कोई कुछ कह रहा है, कोई कुछ कह रहा है। कोई इसके लिए कोई पटाखे छोड़ने को जिम्मेदार मान रहा है, तो कोई वाहनों को जिम्मेदार मान रहा है, तो कोई उद्योगों और फैक्ट्रियों को इसके लिए जिम्मेदार मान रहा है और अधिकांश सरकारी अमला तो इसके लिए पंजाब में किसानों द्वारा पराली जलाने को जिम्मेदार मान रहा है।
मगर सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं है, ना दिल्ली की सरकार और ना केंद्र की सरकार। इन दोनों सरकारों ने पिछले काफी वर्षों से इस बढ़ती समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया है। हां एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण जरूर किया है, मगर किसी भी सरकार ने बढ़ते प्रदूषण के कारणों की जांच नहीं की।
अगर हम जहरीले होते हुए प्रदूषण पर एक नजर डालें कि कौन कितना प्रदूषण फैला रहा है तो हम पाते हैं कि इस प्रदूषण फैलाने के लिए 51 परसेंट जहरीला धुआं उगलती हुई फैक्ट्रियां और उद्योग जिम्मेदार हैं। 25% वाहन जिम्मेदार हैं। 11% घरेलू उपयोग जिम्मेदार है। 8% कृषि जिम्मेदार है। 4% अन्य कारण जिम्मेदार हैं इस प्रकार हम देख रहे हैं कि 76% प्रदूषण केवल फैक्ट्रियां और वाहन फैला रहे हैं कृषि मात्र 8 परसेंट प्रदूषण फैला रही है।
यहीं पर सबसे बड़ा सवाल उठता है तो फिर खेती और किसान व पराली को इसके लिए मुख्य रूप जिम्मेदार क्यों और कैसे ठहराया जा रहा है? क्या इस समस्या से ध्यान भटकाने के लिए और इसकी सारी जिम्मेदारी किसानों पर या पराली पर डाली जा सकती है? उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर हमारी सरकार को प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे। इसके लिए सरकार को नई टेक्निक की इजाद करनी पड़ेगी।
पूरी दुनिया में उद्योग धंधे फल फूल रहे हैं। बैजिंग, टोक्यो, मास्को, शंघाई, न्यूयॉर्क, लंदन, ब्राजीलिया और दुनिया के दूसरे शहरों में वहां पर, दिल्ली एनसीआर जैसी प्रदूषण की समस्या नहीं है। हमें उन देशों से सीखना पड़ेगा और फैक्ट्रियों द्वारा प्रदूषण फैलाने पर रोक लगाने की पहल करनी होगी।
दूसरे, हमारे यहां वाहन प्रणाली को लेकर सरकार की नीतियां ठीक, जनहितकारी और पर्यावरण रक्षक नहीं हैं। सरकार की नीतियां देश और दुनिया की “वाहन लोबी” तय कर रही है। सरकार ने इस वाहन लोबी के सामने नतमस्तक कर दिया है पूरी वाहन लोबी का मकसद अपने वाहन बेचकर सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है, मुनाफा बटोरना है, उसे जनता की समस्याओं से कुछ लेना देना नहीं है। इसी वजह से पूरा पर्यावरण मुनाफाखोरी की भेंट चढ़ गया है। सरकार ने सस्ती वाहन व्यवस्था की नीतियों का परित्याग कर दिया है और अपनी जिम्मेदारी छोड़कर, आने जाने के लिए जनता को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहरा दिया है। इसलिए लोग अपने सस्ते और सुलभ साधन ढूंढ रहे हैं और उन्होंने निजी वाहनों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। इसी कारण सड़कों पर कारों की लाइन लग गई है और यह समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है इसके कारण प्रदूषण की समस्या भयंकर होती जा रही है। रोजी रोटी कमाने के लिए, दूसरे निजी वाहन भी समस्या को दिन प्रतिदिन और गंभीर कर रहे हैं।
इसके लिए हमारा सुझाव है कि कारों के व्यक्तिगत प्रयोग पर रोक लगा देनी चाहिए और सिर्फ शासन-प्रशासन और बीमारों को लाने ले जाने के लिए व्यक्तिगत वाहनों का प्रयोग स्वीकृत किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत वाहनों की समस्या से निपटने के लिए यह जरूरी है कि सरकार बड़े पैमाने पर वाहन प्रणाली में सुधार करें। सड़कों पर धुआं रहित निजी वाहनों और बसों का संचालन किया जाए, यात्रियों की संख्या के अनुपात में, आधुनिक धुंआ रहित बसों को सड़कों पर लगाया जाए। इसी के साथ साथ शहरों में मेट्रो की व्यापक व्यवस्था की जाए और इसी के साथ साथ अगर सरकार परिवहन व्यवस्था को आधुनिक, ऐसी युक्त और चुस्त-दुरुस्त कर देगी, तो लोग पहले की तरह सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का प्रयोग करने लगेंगे और अपने निजी वाहनों का प्रयोग बंद कर देंगे।
अब से 20 साल पहले शहरों में यह प्रदूषण की समस्या नहीं थी। पहले तो कोई प्रदूषण नहीं होता था। पहले किसानों को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जाता था, तो इसका कारण यह था कि पहले सड़कों पर कारों की संख्या इतनी नहीं थी जितनी आज है। कारों की बढ़ी हुई संख्या सड़कों पर होने की वजह से और दूसरे वाहनों की संख्या बढ़ने के कारण, ट्रकों, बसों, टेंपो आदि रोज लगातार वातावरण में धुआं फेंक रहे हैं, धुआं फैला रहे हैं और वह धुंआं यहीं पर रम कर जाता है, हवा न चलने के कारण इधर-उधर नहीं जाता, जिस कारण प्रदूषण की समस्या भयंकर रूप लेती जा रही है।
इसी के साथ साथ पराली की समस्या पर भी समुचित ध्यान देकर किसानों को विश्वास में लेकर और पराली की समस्या से निबटने के लिए नई तकनीक लाकर, पराली को जलाने की समस्या से निपटा जा सकता है। पराली से छोटे उद्योग लगाए जा सकते हैं, प्रणाली की समस्या से निपटने के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह सब सरकार को करना पड़ेगा। इसके लिए किसानों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
तो इस प्रकार संक्षेप में हमारा कहना यह है कि फैक्ट्री और उद्योग धंधों को धुआं रहित बनाया जाए, सड़कों पर निजी वाहनों के निजी प्रयोग पर रोक लगाई जाए, बसों के ओड इविन इस्तेमाल पर अमल किया जाना चाहिए, जहां तक हो सके, घरों से ही काम करने को बढ़ावा दिया जाए। सड़कों पर सरकार द्वारा आधुनिक सुविधाओं से लैस परिवहन व्यवस्था अपनाकर, बसों और मेट्रो का पर्याप्त इंतजाम किया जाए ताकि लोग अपने ऑफिसों को जाने के लिए, या बाजार में जाने के लिए, या अपने काम करने के लिए सार्वजनिक वाहन प्रणाली का प्रयोग करें, अपने व्यक्तिगत वाहनों का नहीं।