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अक्टूबर क्रान्ति.. मेहनतकशों को मुक्ति की राह दिखाती है.

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*उमेश विश्वकर्मा*

मज़दूर वर्ग की महान अक्टूबर क्रान्ति (7 नवम्बर) की याद में आज, भारत सहित पूरी दुनिया में मज़दूर वर्ग पर हमले तेज हो गये हैं। पूरी दुनिया का लुटेरा पूँजीपति वर्ग मज़दूरों पर आक्रामक है। मुनाफे की अंधी हवस में पगलाया पूँजीपति वर्ग मज़दूरों-मेहनतकशों को रौंद रहा है। तब मज़दूर वर्ग की महान अक्टूबर क्रान्ति एक मशाल की तरह प्रज्वलित है। यह मज़दूरों-मेहनतकशों के लिए प्रेरणा स्रोत है। वक्ती पराजय की इस घड़ी में जीत की उम्मीद जगाता है। यह स्थापित करता है कि लूट के इस पूरे तंत्र का खात्मा मज़दूर वर्ग के ही हाथों होगा और अन्तिम जीत मेहनतकश वर्ग की ही होगी।

मज़दूर वर्ग की महान रूस की क्रान्ति 25 अक्टूबर (नये कैलेण्डर से 7 नवम्बर) 1917 को सम्पन्न हुई थी, जो ‘अक्टूबर क्रान्ति’ या ‘बोल्शेविक क्रान्ति’ के नाम से भी विख्यात है। जिसका लक्ष्य था– “शोषण विहीन समाज की स्थापना।” 102 साल बाद यह आज भी पूरी दुनिया के मज़दूर वर्ग की मुक्ति का, नयी क्रान्तियों का प्रेरणास्रोत और पथप्रदर्शक बनी हुयी है।

क्रूर जारशाही के शासन का वह भयावह दौर :

क्रान्ति के पूर्व रूस में क्रूर जारशाही का शासन था, जहाँ के मज़दूर, किसान, छोटे उत्पादक-व्यवसायी, उत्पीड़ित राष्ट्रीयताएं, धार्मिक अल्पसंख्यक सभी दुःखी परेशान थे। शोषण व दमन बहुत तीखा था। जारशाही लगातार युद्धों के जरिये अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करती रहती थी। इन युद्धों में रूस के आम मेहनतकशों को लगातार अपना खून बहाना पड़ता था और युद्धों का पूरा बोझ भी उनको ही उठाना पड़ता था। जार, उसके दरबारी और पूँजीपति इन युद्धों से मालामाल हो जाते थे।

1905 में रूस-जापान युद्ध में रूस जैसी विशाल शक्ति जापान जैसे छोटे मुल्क से हार गयी। गरीबी, दमन और उद्धोन्माद से त्रस्त रुसी मेहनतकश जनता ने 1905-07 में क्रान्ति का बिगुल फूंका, लेकिन क्रान्ति असफल रही। फिर भी मज़दूर वर्ग ने हार नहीं मानी। रूस के मज़दूर वर्ग ने इस क्रान्ति से महत्वपूर्ण सबक निकाले और महज 10 साल में 1917 की सफल क्रन्ति को न केवल अंजाम दिया, अपितु यह साबित कर दिया कि मज़दूर वर्ग न केवल शासन चला सकता है, बल्कि मानवीय विकास के नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर सकता है।

असफल क्रान्ति से सफल क्रान्ति की ओर :-

1905-07 की असफल क्रान्ति का विश्लेषण करके बोल्शेविकों (मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी) ने महत्वपूर्ण सबक निकाले और नयी क्रान्ति की ओर कदम बढ़ा दिया। इस बीच 1914 में मुनाफाखोरों ने पूरी दुनिया को विश्व युद्ध में झोंक दिया। पूँजीवादी सरकारें ‘पितृभूमि की रक्षा’ का आह्वान करने लगीं, तब मज़दूरों के शिक्षक व नेता लेनिन ने कहा कि “युद्ध साम्राज्यवादियों द्वारा बाजार पर कब्जे के लिए है, ऐसे में मेहनतकश जनता को इसके खिलाफ अपनी मुक्ति की लड़ाई छेड़ देनी चाहिए।”

1916 आते-आते विश्व युद्ध की भयानक तबाही दुनिया के अन्य देशों की तरह पूरे रूसी समाज में फैल गयी। मरने वालों से कब्रिस्तान और घायलों से अस्पताल पट गये। बोल्शेविकों की चेतावनी लोगों को याद आने लगी। तमाम दूष्प्रचारों के बावजूद, रूस की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के नेतृत्व में मजदूर वर्ग, सैनिक, मल्लाह, किसान सभी एकजुट होने लगे। जारशाही का पतन शुरू होने लगा।

मज़दूर वर्ग के साथ सभी उत्पीड़ित जन जारशाही के खिलाफ लामबन्द हो रहे थे। वक्त की नजाकत देखकर पूँजीपति वर्ग भी पाला बदलकर क्रान्तिकारी जमात में शामिल हो गया। ब्रिटिश, फ्रांसीसी, अमेरिकी साम्राज्यवादी अपने हितों के लिए साथ लग लिए। फरवरी 1917 में एक सफल पूँजीवादी जनवादी क्रान्ति के जरिये जारशाही का अन्त हो गया।

फरवरी क्रान्ति से अक्टूबर क्रान्ति की ओर :

फरवरी क्रान्ति के बाद पूँजीपति वर्ग जार की नीतियों के साथ था और विश्व युद्ध में बना रहना चाहता था। इसके उलट बोल्शेविकों के नेतृत्व में मजदूर वर्ग इस लुटेरी युद्ध की जगह रूस में शान्ति की चाहत के साथ समाजवाद कायम करना चाहता था।

एक तरफ पुराने ढांचे वाली पूँजीपतियों की अस्थायी सरकार थी तो दूसरी तरफ मेहनतकशों की सोवियतें (भारत के पुराने पंचायतों जैसी संस्था)। इस दोहरी व्यवस्था को आधार बनाकर बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में मज़दूर वर्ग ने “सारी सत्ता मेहनतकश को” का नारा बुलन्द कर नयी क्रान्ति का बिगुल फूंक दिया।

अन्ततः 25 अक्टूबर 1917 (7 नवम्बर) को रूस में मज़दूरवर्ग ने शानदार क्रान्ति को अंजाम दिया। पूँजीपति वर्ग की आठ माह पुरानी सत्ता का अन्त हो गया। बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में मजदूर वर्ग की सत्ता कायम हो गयी। पूँजीपति वर्ग के सशस्त्र प्रतिरोध को मजदूर वर्ग के हथियारबंद दस्तों ने ध्वस्त कर दिया। देश के सभी प्रमुख औद्योगिक केन्द्रों, संचार व रेल साधनों, सरकारी इमारतों आदि को मजदूर वर्ग ने अपने कब्जे में ले लिया। पूँजीपति वर्ग और जमींदारों के प्रतिरोध को कुचलते हुए पूरे देश में सोवियतें कायम होती जा रही थीं। क्रान्ति कामयाब हो गयी थी।

“अक्टूबर क्रान्ति” को कुचलने के लिए साम्राज्यवादी देशों के नेतृत्व में 14 देशों ने सोवियत रूस पर चारों तरफ से हमला बोल दिया। लेनिन और बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में रूस के मजदूरों, किसानों ने पूँजीपतियों, जमींदारों और विदेशी शत्रुओं का चार साल तक जमकर सामना कर उन्हें परास्त किया।

नायाब प्रयोगों ने कायम कीं कई मिशालें :-

समाजवादी निर्माण के पूरे दौर में सोवियत संघ के मेहनतकशों ने एक के बाद एक कीर्तिमान स्थापित किये। उसने सामूहिक उत्पादन की प्रणाली विकसित की। अनियंत्रित उत्पादन के बाजारू तरीके को बदलकर जनता की जरूरतों के अनुरूप उत्पादन का तंत्र बनाकर यह साबित कर दिया कि मेहनतकश की खुशहाली कैसे आ सकती है। शिक्षा, दवा-इलाज जैसी आम जनता की बुनियादी जरूरतें सबके लिए निशुल्क उपलब्ध कराने से लेकर हर हाथ को काम देने का सपना साकार किया।

1929-31 के दौर में जब पूरी दुनिया आर्थिक महामंदी के दौर से गुजर रही थी, एक के बाद एक कल-कारखाने बन्द हो रहे थे, बेरोजगारी और महँगाई चरम पर थी, तब सोवियत रूस में उत्पादन में आठ से दस गुने की बृद्धि हो रही थी। मुनाफे और बाजार के लिए जब साम्राज्यवादियों ने दुनिया को दूसरे विश्वयुद्ध में झोंक दिया था और इटली व जर्मनी का फासीवाद पूरी मानवता को रौंद रहा था, तब समाजवादी रूस की मेहनतकश जनता ने मानवता की रक्षा की और वैश्विक तबाही से बाहर निकाला, फासीवाद का नाश किया।

क्रान्ति के बाद बनी सोवियत संघ ने पूरी दुनिया के मज़दूरों, किसानों, उत्पीड़ितों, गुलाम देशों को मुक्ति की राह दिखायी। सोवियत संघ जब तक समाजवादी रहा तब तक वह मुक्ति का न केवल मज़दूर वर्ग का प्रेरणास्रोत रहा बल्कि उसने दुनिया भर के शोषितों-उत्पीड़ितों की मदद भी की। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया के चौथाई हिस्से पर मज़दूर वर्ग का शासन था। चीन सहित तेरह देशों में समाजवादी राज्यों की स्थापना हुयी। 1956 में सोवियत संघ में पूँजीवाद की पुर्नस्थापना के बाद समाजवाद और कम्युनिज्म के महान ध्येय को वक्ती तौर पर हानि पहुँची।

सबक लेकर आगे बढ़ना होगा :-

आज, जब पूरी दुनिया में मज़दूर वर्ग की कहीं कोई सत्ता नहीं है और पूरी दुनिया का मज़दूर वर्ग नयी क्रान्तियों की तैयारी में जुट रहा है, तब अक्टूबर क्रान्ति एक मशाल की तरह प्रज्वलित है। पूँजीपतिवर्ग ने अपने हित में इससे सबक निकाले हैं। हमें भी मज़दूरवर्ग की नयी क्रान्ति के लिए अतीत की महान क्रान्तियों से सीखने, विश्लेषण करके सबक निकालने और आज की ठोस परिस्थितियों के अनुरूप क्रान्ति की नयी रणनीति बनाने की जरूरत है।

*अक्टूबर क्रान्ति को याद करने का यही मक़सद हो सकता है।*

*उमेश विश्वकर्मा*

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