शशिकांत गुप्ते
शभक्ति के गीत सुनने पर अपने देश के प्रति स्वाभिमान जागता है। स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को पढ़ने और समझने के बाद अनेकता में एकता यही अपने देश की विशेषता प्रमाणित हो जाती है।
उक्त वक्तव्य देते हुए सीतारामजी भावविभोर होकर कहने लगे, स्वतंत्र भारत में जन्म लेकर हम कितने भाग्यशाली हैं।
असंख्य देशभक्तों ने अपनी कुर्बानियां दी,विदेशी हुकूमत की यातनाएं भोगी,जुल्मों को सहा,बहुत कठिन संघर्ष के बाद आजादी मिली।
मेरे वतन के लोगों….
देशभक्ति का ये गीत जब भी सुनाई देता मन भावविभोर हो जाता है।
इस गीत की एक एक पंक्ति महत्वपूर्ण है, लहरा लो तिरंगा प्यारा, ये पंक्ति सुनने के बाद राष्ट्रध्वज तिरंगे के प्रति सम्मान प्रगाढ़ हो जाता है, लेकिन कुछ संकुचित लोग अपनी कुत्सित मानसिकता प्रकट करते हुए तिरंगे को अशुभ कहतें हैं।
उक्त गीत का यह बंद भारत की विविधता को प्रकट करता है
कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरने वाला
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिर पर्वत पर
वो खून था हिंदुस्थानी
इन पँक्तियो को सुनने के बाद जो अलगाव की बात करतें हैं,वे लोग उक्त पँक्तियों में इंगित तथ्य को संकीर्णता में बांधने की असफल कोशिश करतें हैं।
इस गीत ये पंक्ति आज के माहौल पर करारा व्यंग है।
जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने
आज कोई भी हादसा हो,तादाद में लोगों की जान चली जाए।
छद्म राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने वाले स्वयं की वेषभूषा सवारने में लगे रहतें हैं। मनोचिकित्सक का मत है कि बाह्य सौदर्य से आंतरिक बुराई को ढांकना अमानवीयता है।
गीत ये पंक्तियां देशभक्तों के जज्बे को प्रकट करती है।
थी खून से लथ-पथ काया
फिर भी बंदूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा
आज की बहादुरी मतलब जबानी जमाखर्च होता है। सिर्फ कर्कश आवाज में कहा जाता है, एक के बदले दस सिर लाएंगे?
इतना सुनने के बाद मैने सीतारामजी को रोकते हुए कहा, इतना क्रोध सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है।
एक बात गांठ बांधकर रखना चाहिए। परिवर्तन संसार का नियम है। जो अटल है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर