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तो क्या सरकारी कार्मिकों को पेंशन का लाभ देने के दम पर ही विधानसभा का चुनाव जीता जा सकता है?

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एस पी मित्तल,अजमेर

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुजरात के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सीनियर आब्जर्वर हैं। इस नाते गहलोत ने 12 नवंबर को ही अहमदाबाद में चुनाव घोषणा पत्र जारी किया है। गुजरात में एक और पांच दिसंबर को मतदान होना है। कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का फोकस राज्य कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करना है। गहलोत का कहना है कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने अपने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम देने का निर्णय ले लिया है। गहलोत राजस्थान में भी इस स्कीम को बड़ा मुद्दा बना रहे हैं। गहलोत का कहना है कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने पुरानी स्कीम को लागू करने का कोई वादा नहीं किया था, लेकिन फिर मैंने सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, इसे लागू करने का निर्णय लिया है। गहलोत का यह भी कहना होता है कि 2003 के चुनाव में मैं राज्य के सरकारी कर्मचारियों को समझ नहीं पाया, इसलिए कांग्रेस का चुनाव हार गई। गहलोत तब भी राजस्थान के सीएम थे। लेकिन गहलोत को लगता है कि 2023 में उनकी सरकार रिपीट हो जाएगी, क्योंकि उन्होंने पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ देकर राज्य कर्मचारियों को खुश कर दिया है। यह बात अलग है कि पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ 2032 में रिटायर होने वाले कार्मिकों को मिलेगा। यानी अभी राज्य सरकार पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। उल्टे नई पेंशन स्कीम में राज्य सरकार को अपनी जो हिस्सा राशि देनी थी, वह भी बच गई है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या राज्य कर्मचारियों को खुश कर देने से विधानसभा का चुनाव जीता जा सकता है? राजस्थान में कुल 9 करोड़ की आबादी है और इसमें से पांच करोड़ मतदाता है। अशोक गहलोत ने पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने का निर्णय लिया है। उसका फायदा सिर्फ 8 लाख मतदाताओं (राज्य कर्मचारी) को ही मिलेगा। यानी 4 करोड़ 92 लाख मतदाताओं को कोई फायदा नहीं होगा। उल्टे पुरानी पेंशन स्कीम का बोझ गैर सरकारी मतदाताओं पर पड़ेगा। यह माना कि सरकार चलाने में कार्मिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन कार्मिकों को खुश करके चुनाव नहीं जीता जा सकता है। चुनाव जीतने के लिए आम मतदाताओं में सरकार और सरकार के मुखिया की लोकप्रियता और विश्वसनीयता होनी चाहिए। गहलोत सरकार की कितनी लोकप्रियता है, यह सरकार के मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा, प्रताप सिंह खाचरियावास, अशोक चांदना के साथ साथ पूर्व मंत्री हरीश चौधरी, भरत सिंह आदि बता रहे हैं। गुढा का तो यहां तक कहना है कि यदि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ा जाता है तो कांग्रेस के 11 विधायक भी चुनाव नहीं जीत पाएंगे। 2013 में गहलोत के सीएम रहते मात्र 21 विधायक जीते। गहलोत सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस के नेताओं के अपने तर्क है, लेकिन गहलोत को 4 करोड़ 92 लाख मतदाताओं का भी ख्याल रखना चाहिए। 

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