मैनपुरी: मैनपुरी में लोकसभा उप चुनाव को लेकर तैयारियों को पूरा कराया जा रहा है। प्रशासनिक तैयारियां अपनी जगह राजनीतिक तैयारियों को पुख्ता बनाने की कोशिश की जा रही है। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव की घोषणा होने के बाद से ही अखिलेश यादव लगातार एक्टिव होते दिख रहे हैं। पहले तो उन्होंने परिवार में मशवरा के बाद उम्मीदवार घोषणा में समय लिया। चर्चा का बाजार गर्माया हुआ था कि धर्मेंद्र यादव या फिर तेज प्रताप यादव को मैनपुरी लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। लेकिन, इन दोनों की उम्मीदवारी से परिवार के अन्य खेलों में नाराजगी न बढ़े। इसको अखिलेश ने ध्यान में रखा। पत्नी डिंपल यादव को चुनावी मैदान में उतारा। अब मैनपुरी के चुनावी मैदान में भावनाओं, संवेदना और मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद बनती स्थिति को लेकर वोटरों को इमोशनली कनेक्ट करने की कोशिश अखिलेश यादव की ओर से लगातार हो रही है। दूसरी तरफ, भारतीय जनता पार्टी अभी तक कोई बड़ा नेता मैनपुरी के चुनावी दंगल में नहीं उतारी है। भाजपा की इसी ‘साइलेंट’ रणनीति ने अखिलेश यादव की चुनौती बढ़ा दी है। वह लगातार चुनावी जनसभा कर रहे हैं। उप चुनाव में इस प्रकार की सक्रियता इससे पहले सपा अध्यक्ष में कभी नहीं देखी गई। इसका कारण मैनपुरी के गढ़ को बचाना और यादवलैंड में एक संदेश देना माना जा रहा है। यही कारण है कि अखिलेश यादव ने इटावा में शिवपाल सिंह यादव से मुलाकात की उन्हें साधने की कोशिश की। अब मैनपुरी की जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते दिख रहा है।
भाजपा की रणनीति को समझिए
लोकसभा उप चुनाव में सपा के गढ़ को ढहाने के लिए भाजपा का पूरा जोर सोशल इंजीनियरिंग पर है। मुलायम सिंह के निधन के बाद हो रहे चुनाव में सपा को सहानुभूति का लाभ मिलने की संभावना साफ दिख रही है। अखिलेश यादव की सक्रियता के बाद माना जा रहा है कि यादव वोटों की बहुलता की चुनौती भाजपा के सामने बड़ी होने वाली है। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकार बड़े स्तर पर रणनीति बना रहे हैं। दूसरी तरफ, सपा ने अपने तमाम नाराजगी वाले बिंदुओं को जोड़ने की कोशिश की है। हर किसी को एक लाइन में लाने का प्रयास है। ऐसे में भाजपा की रणनीति यादव वर्सेज ऑल वाली रणनीति इस सीट पर बनाने की है। वोटों की जातीय जुगलबंदी का दांव ही उनको सबसे प्रभावशाली लग रहा है। ऐसे में अब इस फार्मूले को बूथ स्तर तक अमल में जाने की रूपरेखा तैयार कर ली गई है। इसके लिए वर्गवार सम्मेलनों के आयोजन की योजना है। जातिवार वोटरों से संपर्क कार्यक्रम का आयोजन होगा। इसके लिए उन्हीं जातियों के नेताओं और पार्टी के पदधारकों को लगाए जाने की योजना तैयार की गई है।
बड़ी सभाओं की बजाए वोटर्स पॉकेट पर जोर
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार अपने चुनाव प्रचार की रणनीति में बड़ा बदलाव कर दिया है। बड़े चेहरों और बड़ी-बड़ी सभाओं की जगह छोटे-छोटे पैकेट्स में चुनावी सभाओं का आयोजन हो रहा है। सरकार के स्तर के बड़े चेहरों को आखिरी समय में पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने की रणनीति बनाई गई है। आजमगढ़ हो या रामपुर लोकसभा उप चुनाव या फिर गोला गोकर्णनाथ विधानसभा चुनाव, भाजपा ने इसी रणनीति के आधार पर काम किया और जीत हासिल की। गोला गोकर्णनाथ में पार्टी की रणनीति इतनी कारगर रही कि यूपी चुनाव 2022 के रिजल्ट प्रकाशन के 7 महीने के भीतर ही भाजपा 7 फीसदी वोट प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब हो गई, जबकि दूसरे नंबर पर रहे समाजवादी पार्टी के वोट प्रतिशत में महज 3 फीसदी का इजाफा हुआ। भाजपा ने इस रणनीति को अब उप चुनाव में कारगर तरीके से लागू करने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
रामपुर विधानसभा उप चुनाव और खतौली विधानसभा उप चुनाव में भी इसी प्रकार के रणनीति पर काम किया जाता देखा जा रहा है। मैनपुरी ही नहीं, इन दोनों सीटों पर भी 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। इससे पहले पार्टी के तमाम सीनियर अधिकारी और जातीय पॉकेटों का नेतृत्व करने वाले नेताओं का इन सीटों पर मतदाताओं के बीच दौरा तय कर दिया गया है। मतलब साफ है कि हाईप्रोफाइल प्रचार अभियान की जगह इफेक्टिव और छोटे प्रचार और सभाओं के आयोजन पर जोर दिया जा रहा है।
गढ़ बचाने के लिए एक तरफ है पूरा परिवार
मैनपुरी में लोकसभा उप चुनाव यहां से सांसद और सपा संरक्षक, संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हो रहा है। अब लड़ाई मुलायम सिंह यादव की विरासत और अपने गढ़ को बचाए रखने की हो गई है। सपा मुखिया अखिलेश यादव सहित पूरा परिवार मैदान में उतरा हुआ है। सपा व्यापक स्तर पर प्रचार में जुटी है। चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ आने से सपा की रणनीति को और मजबूती मिली है। ऊपर से सपा लगातार चुनाव को मुलायम की यादों से जोड़ने में जुटी है। सपा अध्यक्ष गांवों तक घूमकर लोगों को मुलायम सिंह यादव के इस क्षेत्र को लेकर किए गए कार्यों की याद दिला रहे हैं। विश्व स्तर तक मैनपुरी को पहुंचाने के लिए मुलायम के योगदान का वास्ता दे रहे हैं। डिंपल को मुलायम का वारिस बता रहे हैं। लगातार सभाओं और कार्यकर्ता सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है। शिवपाल के साथ आने के बाद बड़ी जीत का दावा है। लेकिन, दावे को दमदार बनाने में दूसरी तरफ से आने वाले सहयोग के सुर में फीकापन सपा अध्यक्ष महसूस कर रहे हैं। इसलिए, कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने की कोशिश की जा रही है।
भाजपा खोने नहीं, पाने की लड़ रही है लड़ाई
मैनपुरी में समाजवादी पार्टी के सामने किला बचाने की चुनौती है तो भाजपा के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है। पार्टी ने यहां से एक बार फिर रघुराज शाक्य पर दांव लगाया है। शाक्य बिरादरी ही भाजपा को इस सीट पर जीत दिलाने में कामयाब हो सकते हैं। इसका कारण पिछले चुनाव का रिकॉर्ड है। सपा और बसपा गठबंधन के बाद भी मुलायम महज 94 हजार से कुछ अधिक अंतर से जीत दर्ज कर पाए। प्रेम सिंह शाक्य ने नेताजी को यह चुनौती तब दी थी, जब उनके पक्ष में प्रचार करने कोई भी बड़ा नेता मैनपुरी नहीं आया था। इस बार इटावा से दो बार के सांसद रह चुके रघुराज शाक्य की है। रघुराज शाक्य जमीन से जुड़े नेता रहे हैं। इनकी छवि क्षेत्र में हर किसी से मिल-जुलकर रहने वाले नेता की है। घूम रहे हैं और कह रहे हैं कि सांसद आपके अपने बीच का चाहिए या फिर ऐसा जो आपकी ‘रीच’ में ही न हो। समझा रहे हैं कि सांसद बनने के बाद डिंपल या फिर अखिलेश यादव तक पहुंचना ही संभव नहीं होगा। फिर समस्या कहां पहुंचाइएगा।
रघुराज शाक्य अपने मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के संबंधों को भुना रहे हैं। हालांकि, उन्हें पता है कि यहां पर यादव वोट बैंक में सेंधमारी मुश्किल होगी। इस बार चुनावी मैदान में मायावती की पार्टी बसपा नहीं है। तो सवाल दलित वोटरों का है, वे किधर जाएंगे। करीब 8 माह पहले हुए चुनाव में दलित वोटरों का एक बड़ा वर्ग भाजपा की तरफ गया। इस वजह से मैनपुरी और भोगांव जैसी विधानसभा सीट सपा के पाले से निकल कर भाजपा की हो गई। यही वोट बैंक अखिलेश की मुसीबत हैं। यह यादवों के साथ मिलकर वोट करना ही नहीं चाहते। अगर भाजपा उन्हें घरों से निकाल कर बूथों तक पहुंचाने में कामयाब हो गई, तो खेल हो जाएगा।
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में यादव मतों के बाद संख्याबल में दूसरे स्थान पर शाक्य मतदाता ही हैं। भाजपा की रणनीति विभिन्न जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने की है। इसके लिए अब बूथों स्तर पर वर्गवार सम्मेलनों की रूपरेखा बनाई गई है। युवा, महिला, लाभार्थी सहित अन्य वर्गों के अलग-अलग सम्मेलन हर बूथ पर कराने की योजना बनाई गई है। पिछड़ा, अनुसूचित जाति आदि वर्गों के मतदाताओं से अलग-अलग संपर्क भी साधा जाएगा। इसके लिए जातिवार नेताओं-पदाधिकारियों की सूची तैयार कराई जा रही है। इन सम्मेलनों और संपर्क कार्यक्रम में संबंधित वर्ग एवं जाति के हिसाब से ही नेताओं को लगाया जाएगा। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि यदि वह गैर यादव मतों को लामबंद करने में सफल रहे तो चुनाव में इतिहास रचा जा सकता है।
मैनपुरी के उप चुनाव में जातीय समीकरण को साधने का प्रयास तो हो ही रहा है। भाजपा के निशाने पर महिला वोटर्स अलग हैं। उनके बीच पहुंचने और भाजपा एवं सरकार के कार्यक्रमों को पहुंचाने की रणनीति बनाई गई है। उप चुनाव में भाजपा का जोर महिला, युवा, विभिन्न योजनाओं के लाभार्थी और किसानों पर है। पार्टी इसके साथ-साथ गैर यादव पिछड़ा, दलित और सवर्ण वोटरों तक पहुंचने की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा के जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंह चौहान भी कहते हैं कि हमारी योजना बूथों पर वर्गवार सम्मेलन आयोजित करने की है। इसकी रूपरेखा तय की जा रही है। जनसमर्थन निश्चित तौर पर भाजपा के साथ है। इस बार हम मैनपुरी में जीत दर्ज करने जा रहे हैं।
अखिलेश की प्रतिष्ठा और धर्मेंद्र का आंसू वाला दांव
मैनपुरी के चुनावी मैदान में अभी समाजवादी पार्टी ही दिख रही है। अभी तक भाजपा का यहां अभियान शुरू नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि आज नामांकन वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भाजपा अपनी रणनीति पर काम करना शुरू करेगी। रघुराज शाक्य के पक्ष में छोटी सभाओं का आयोजन हर बूथ स्तर तक आयोजित होना है। ऐसे में भाजपा के पन्ना प्रमुख और बूथ लेवल कमेटियों को एक्टिव कर दिया गया है। गैर यादव ओबीसी, दलित और सवर्ण वोटरों को साधने में शाक्य कामयाब हुए तो फिर इतिहास रचेंगे। हालांकि, अखिलेश यादव ने चुनाव को मुलायम की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है। शिवपाल के साथ आने के बाद इमोशन वाला एंगल का लाभ उठाते वे दिख रहे हैं। वहीं, शनिवार को धर्मेंद्र यादव का आंसुओं से भरा चेहरा भी मैनपुरी के वोटरों ने देख लिया है। वोट की ऐसी राजनीति का असर भाजपा के चुनाव प्रचार शुरू होने और नेताजी को लेकर पार्टी की ओर से आने वाले बयानों के बाद कितना रहेगा, देखना दिलचस्प होगा। भाजपा इस बार हथियार डालने के मूड में नही दिख रही है।