अग्नि आलोक
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वर्तमान समय में धर्म, धर्मांधता और धर्मनिरपेक्षता के मायने जानने की जरूरत 

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,मुनेश त्यागी 

   वर्तमान समय में भारत के पूंजीपति और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों के गठजोड़ ने धर्म, धर्मांधता और धर्मनिरपेक्षता को लेकर जनता के बीच तरह-तरह की भ्रांतियां पैदा करती है और यह गठजोड़ अपनी इस मुहिम को लगातार बढ़ाए जा रहा है। वह जनता को धर्म, धर्मांधता और धर्मनिरपेक्षता के सही मायने बताने को तैयार नहीं है। धर्म यानी मजहब, जिसे अंग्रेजी में रिलीजन भी कहा जाता है, धार्मिक भावनाओं के अनेक रूपों में से एक है। यह अंतःकरण का मामला है। यह जीवन का एक अंग है। धर्म मायने परमात्मा के अस्तित्व में पूर्ण विश्वास है। हमारे देश में मुख्य रूप से हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्म के लोग रहते हैं। इन सारे धर्मों के लोग भगवान, खुदा, गुरु नानक, गोड और गौतम बुध में विश्वास करते हैं, रखते हैं।

    धर्म के 10 लक्षण हैं जैसे ,,,,धैर्य, सहनशीलता, मन पर नियंत्रण, चोरी न करना, पारदर्शिता, इंद्रिय वशीकरण, सर्व हिताय बुद्धि, सर्व हिताय विद्या/ शिक्षा, सच्चाई और क्रोध यानी गुस्सा नहीं करना। यहां पर ध्यान देने की जरूरत है कि धर्म के इन 10 लक्षणों में कोई भी पूजा पद्धति, अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंड या कोई भगवान या चमत्कारी देवी देवता शामिल नहीं हैं और धर्म के नाम पर जो पूजा-पाठ, पाखंड और धर्मांधताऐं की जा रही हैं, उनकी अनुमति नहीं है। धर्म के नाम पर पंडों, पुजारियों ने दान, दक्षिणा और चढ़ावे को एक धंधा बना लिया है और इससे अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं और पेट पूजा कर रहे हैं।

     धर्म में पाखंड, पूजा पाठ, अज्ञानता अंधविश्वास और धर्मांधता की कोई जगह नहीं है। धर्म के नाम पर  पूजा-पाठ, अर्चना, अंधविश्वास और धर्मांधता करके जनता को ठगा और मूर्ख बनाया जा रहा है, वे सभी धर्म का हिस्सा नहीं है। इस पूजा-पाठ और चढ़ावे की प्रवृत्ति ने बहुत सारे अंधविश्वास और धर्मांधता को जन्म दे दिया है जो ज्ञान, विज्ञान, तर्क, विवेक, खोज, अन्वेषण और विश्लेषण की कसौटी पर खरे नहीं उतरते और इन सब ने आदमी को, मखोल उड़ाने का एक जरिया और माध्यम बना दिया है, जो धर्म की मूल भावनाओं के बिल्कुल विपरीत है और इन सब को किसी भी दशा में मान्य नहीं किया जा सकता।

    हमारे समाज में हजारों साल से बहुत सारी धर्मांधताऐं और अंधविश्वास जारी हैं। यहां पर मुख्य मुख्य अंधविश्वासों और धर्मांधताओं के विषय में जानना बहुत जरूरी है जैसे,,,,

क्या कोई औरत धरती में समा सकती है?, क्या कोई आदमी जल समाधि ले सकता है, और इस स्थिति को जल समाधि कहा जा सकता है? क्या किसी आदमी या ऋषि मुनि के कहने पर वर्षा हो सकती है और रुक सकती है?, यहां पर कहा जाता है कि कण कण में भगवान, राम और कृष्ण व्याप्त हैं, तो क्या हमारे यहां मौजूद अपराधियों, बलात्कारियों, भ्रष्टाचारियों, हत्यारों, हक मारने वालों, शोषण जुल्म और अन्याय करने वालों, भ्रुण हत्या करने वालों में, हत्यारों, और आतंकवादियों में भगवान, ईश्वर, अल्लाह, गॉड मौजूद हैं?

    क्या आदमी ऋषि के पेट से पैदा हो सकते हैं? क्या आदमी कान से पैदा हो सकता है? क्या आदमी योनि के अलावा मुंह, भुजाओं, जांघों और पैरों से पैदा हो सकते हैं? क्या खीर खाने या सेव खाने से बच्चे पैदा हो सकते हैं? क्या कोई बालिका धरती में गडे हुए घड़े में से पैदा हो सकती है? क्या कोई आदमी मछली से पैदा हो सकता है? क्या कोई आदमी या बंदर सूरज को निगल सकता है? क्या पत्थर पानी पर तैर सकते हैं? क्या गंगा शिवजी की जटाओं से निकली है? क्या लड़का न पैदा होने के लिए केवल बहु जिम्मेदार है?

     क्या राहु और केतु ग्रहण के समय सूरज और चांद की हत्या करते हैं? क्या पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है? क्या हनुमान बिना परों के उड़ सकता हैं? क्या कोई बंदर पहाड़ को उठाकर ले जा सकता है? क्या शिवजी की लटाओं में चंद्रमा लटका हुआ है? क्या घास से बच्चे पैदा हो सकते हैं? क्या अग्नि परीक्षा के बाद भी कोई औरत जिंदा बच सकती है? क्या कोई आदमी सैंकड़ों बाण लगने के बाद भी 18 दिन तक जिंदा पडा रह सकता है? क्या कोई ऐसा चक्र है जो आदमियों के सिर काटने पर वापस आ जाता है? क्या हाथी का सिर काट कर किसी बच्चे के सिर पर रखकर उसे जिंदा किया जा सकता है? क्या कोई आदमी पहाड़ को उंगली पर उठा सकता है? क्या गंडे, तबीज और राख की चुटकी से बच्चे पैदा हो सकते हैं या रोगों का निदान हो सकता है? क्या नदियों और तालाबों में स्नान करने मात्र से हमारी बुनियादी समस्याओं का कोई समाधान हो सकता है?या ये सारी समस्याएं दूर हो सकती हैं?

     क्या कोई आदमी किसी औरत को जिसके कपड़े उतारे जा रहे हों, उसे कपड़े दे सकता है? क्या कोई धोती सैकड़ों हजारों मीटर लंबी हो सकती है? क्या पत्थर की मूर्तियां दूध पी सकती हैं? क्या किसी आदमी के गले में सांप लिपटे रह सकते हैं? क्या पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है? क्या किसी सांप की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन किया जा सकता है? इस प्रकार क्या कोई सांप सैकड़ों हजारों मीटर लंबा हो सकता है? क्या कोई आदमी या राक्षस सिर कटने के बाद भी राहु और केतु के रूप में जिंदा रह सकते हैं? क्या समुद्र में क्षीरसागर यानी दूध का सागर हो सकता है? अगर इस प्रकार का कोई क्षीरसागर था तो वह अब कहां चला गया? क्या आज तक किसी ने स्वर्ग और नरक को देखा है? अगर देखा है तो स्वर्ग और नरक हैं कहां हैं? क्या किसी के 10 सिर हो सकते हैं? क्या किसी को हर साल जलाने से वह हर साल जिंदा सकता है? क्या आज तक किसी ने भगवान, अल्लाह, खुदा, गोड या देवी देवताओं को देखा है? अगर नहीं तो क्या यह सब कोरा का कोरा वहम ही नहीं है?

       इस सब के साथ साथ, हमें यह भी जानना जरूरी है कि आखिर हमारे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों में लिखित धर्मनिरपेक्षता क्या है? इसके क्या मायने हैं? इसके बारे में भी जानना जरूरी है। धर्मनिरपेक्षता का सार तत्व है, राज्य द्वारा धार्मिक विभिन्नता के आधार पर जनता से भेदभाव न करना। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में अनेक अवधारणाऐं और व्याख्याऐं दी हैं जिसमें उसने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि “राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और राज्य सभी धर्म और धार्मिक समूहों से बराबरी का व्यवहार करेगा।”

   सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सभी धर्मों का बराबर का स्थान होगा, किसी धर्म के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा, राज्य धर्मों के बीच पुल का काम करेगा। राज्य सभी धर्मों को सुरक्षा प्रदान करेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी आधारित किया है कि अंतरजातीय विवाह और बच्चों को गोद लेना, धर्मनिरपेक्ष की भावना को और मजबूत करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि कोई राज्य सरकार धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर हमला करती है या इसे सबोटेज करती है या इसे हानि पहुंचाती है, तो राज्य की यह गतिविधि, धर्मनिरपेक्षता और संविधान के प्रावधानों और सिद्धांतों के खिलाफ होगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में यह बता दिया है कि भारत की सरकार और सभी राज्यों की सरकारें, सभी धर्मों से बराबरी का व्यवहार करेंगी और भारतीय राज्य का कोई धर्म नहीं होगा यानी कि हमारा राज्य धर्म विहीन है। हमारे राष्ट्र, सरकार का और भारत का कोई धर्म नहीं है। इसकी नज़रों में सब धर्म बराबर हैं। भारत का कोई भी आदमी किसी धर्म में विश्वास कर सकता है, यह उसका निजी मामला है। मगर कोई धर्म और धार्मिक नेता, राज्य, सरकार की नीतियों और राजकीय कार्यों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। हमारे संविधान में लिखित धर्मनिरपेक्षता के यही मायने हैं।

     उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि धर्म, धर्मांधता और धर्मनिरपेक्षता अलग-अलग विचार और सिद्धांत हैं। इन्हें एक साथ गडमढ नहीं किया जा सकता। हमें धर्म की व्याख्या और धर्मनिरपेक्षता के अर्थ भारतीय संविधान के अनुसार ही लगाने चाहिए और इस बारे में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्षता की स्थिति सबके सामने स्पष्ट कर दी है। हमें धर्मनिरपेक्षता को उसी रोशनी में और भारत के संविधान की दृष्टि और रोशनी में लेना चाहिए और धर्म, धर्मांधता और धर्मनिरपेक्षता को एक साथ गडमढ नहीं करना चाहिए।

     उपरोक्त तथ्यों के आलोक में, हम यह पूर्ण रूप से मुत्मइन होकर कह सकते हैं कि हमारे देश की जनता को, धर्म के 10 लक्षणों के आधार पर अपना व्यवहार और आचार विचार अमल में लाने चाहिएं। हमें उपरोक्त अंधविश्वासों, धर्मांधताओं, विवेकहीनताओं और अज्ञानता से बचना चाहिए और धर्म और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों में अंतर करना चाहिए और धर्मनिरपेक्षता को भारतीय संविधान और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवधारित व्याख्या के अनुसार अपने अमल में लाना चाहिए, ताकि हमारे देश में ज्ञान, विज्ञान, विवेक, तर्क और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित समाज की स्थापना की जा सके और हमारा देश और समाज एक आधुनिक समाज का निर्माण कर सकें और दुनिया में विकास के मार्ग पर अग्रसरित हो सकें।

     वर्तमान पूंजीपति शासक वर्ग और हिंदुत्ववादी और सांप्रदायिक तत्वों का गठजोड़ हमारी जनता को अंधविश्वास और धर्मांधता के मायने बताने को तैयार नहीं है। वे जनता को धर्मांध  और अवैज्ञानिक धारणाओं में रचे बसे ही  बनाए रखना चाहते हैं। वे जनता को धर्मांधता की सही जानकारी नहीं देना चाहते और इस प्रकार वे हमारे देश में धर्मांधता और अंधविश्वास के साम्राज्य को कायम करने और बढ़ाने पर ही तुले हुए हैं। उनका धर्मांधता और अंधविश्वास हटाकर और इनके स्थान पर ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करने का कोई इरादा और नीति नहीं है।

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