अग्नि आलोक
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इतिहास में गिनती माफ़ी की?

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शशिकांत गुप्ते

बुनियादी मुद्दों पर माफी हावी हो रही है। इतिहास के पन्नों को खंगालकर “माफ़ी” शब्द को ढूंढा जा रहा है।
माफी ढूढ़नें वालों के क्रांतिवीरों की गाथाओं में एक अचंभित करने वाला इतिहास भी प्रकट हुआ है। बुलबुल के पंखों के ऊपर सवार भ्रमण करने वाले वीर का कौतूहल भरा इतिहास भी ज्ञात किया गया है।
झांसी की रानी के इतिहास में लिखा गया है कि झांसी की रानी को वीर शिवाजी की गाथाएं ज़बानी याद थी। सन 1857 की क्रांति के समय सम्भवतः कोई “माफिया” सक्रिय नहीं था,जो इतिहास में यह लिखे की किसने कितनी बार माफी मांगी।
“माफिया शब्द से एक गिरोह,एक समूह,एक गुट विशेष का बोध होता है।”
सत्य कड़वा होता है। इनदिनों झूठ को मीठा कहकर समाज में बहुत परोसा जा रहा है। बहुत से लोग भक्ति में इतने लीन हो जातें हैं कि, परोसे हुए मीठे झूठ का स्वयं तो चटखारे लेकर रसास्वादन करतें ही है,साथ ही अपनो को भी बाटतें है।
बाटतें समय ध्यान रखतें हैं कि, सौ लोगों तक मीठा झूठ पहुँचना अनिवार्य है। कारण मीठा झूठ सौ लोगों तक पहुँचने से कड़वा सत्य हो जाता है ऐसी अंध “श्रद्धा” विद्यमान है।
इस मुद्दे पर लखनऊ के शायर मनीष शुक्लाजी का ये शेर मौजु है।
तुझको कड़वी लगती है,तो शायद कड़वी ही होगी
हम तो तेरी बातों को ज्योँ को त्यों दौहरतें हैं

मुख्य मुद्दे पर तंज कसते हुए,शायर मनीष शुक्लाजी का ही यह शेर भी प्रासंगिक है।
तुमने लहज़ा मीठा रख कर तीखीं बातें बोली हैं
हमनें बातें मीठी की है,लहज़ा तीखा रखा है

अंत में यही कहा जा सकता है कि,
सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से
खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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