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कश्मीर फाइल्स से इतर रूबैया का अपहरण और कश्मीर !

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पुष्पा गुप्ता 

02 दिसंबर, 1989 को केंद्र मे वीपी सिंह की सरकार बनी जिसे बीजेपी और वामदलों का समर्थन प्राप्त था। इस सरकार का गृह मन्त्री श्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद साहब थे।

        दि. 8 दिसंबर 1989 को गृहमन्त्री की अविवाहित पुत्री कुमारी रूबैया सईद का कुछ आतंकवादियों दवारा श्रीनगर मे अपहरण कर लिया जाता है और रिहाई के बदले कई ख़ूँख़ार आतंकवादियों को रिहा करने की मॉग की जाती है।फ़ारूख अब्दुल्ला जो इस सरकार मे मन्त्री थे दवारा इस पर घोर आपत्ति की जाती है कि यदि आतंकवादियों को रिहा किया जाता है तो कश्मीर को इसके गंभीर ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा पर सरकार मे उनकी नही चली और श्री आई के गुजराल साहब और आरिफ़ मोहम्मद खान को सरकार की तरफ़ से बातचीत के लिये अधिकृत किया गया।

          कश्मीरी जनमानस और यहॉ तक कि कुछ अलगाववादी गुट भी आतंकवादियों दवारा एक अविवाहित कश्मीरी बेटी के अपहरण से रोष मे थे।

 सरकार ने आतंकवादियों की मॉग मानते हुऐ पॉच ख़तरनाक आतंकवादियों को रिहा कर दिया जबकि लोगो को यह मानना था यदि सरकार कोशिश करती तो आतंकवादी गुट को जनमानस के दबाव मे रूबैया सईद को छोड़ना पड़ता।

        इस घटना और सफलता से आतंकवादी गुटों का हौसला बहुत ज़्यादा बढ़ गया था और घाटी मे एक के बाद कई अपहरणों की घटनाऐ हुई और सरकार ने हर बार आतंकियों को छोड़ा। कश्मीर घाटी मे अब तक पूरी तरह अराजकता फैल चुकी थी और लूटमार हत्याओं की बाढ़ आ गई थी। सरकार ने तत्कालीन गवर्नर श्री कृष्णा राव को बदलते हुऐ नये गवर्नर श्री जगमोहन को भेजा जिन्होंने जनवरी 90 के तीसरे सप्ताह मे कार्य भार संभाला।

         जगमोहन साहब बीजेपी की पसंद के थे। जगमोहन साहब की नियुक्ति का हर तरफ़ से भारी विरोध हुआ क्योंकि इससे पहले के कार्य काल मे मे वह खासे विवादित रहे थे। जगमोहन साहब की नियुक्ति के विरोध मे फ़ारूख अब्दुल्ला साहब ने अपना इस्तीफ़ा भी दे दिया और मुफ़्ती साहब की मन माँगी मुराद पूरी हो गई।

      जगमोहन साहब ने आते ही हर कश्मीरी मुस्लिम को आतंकवादी मानते हुऐ कंठोर कार्यवाही शुरू कर दी जिसके फलस्वरूप मर्ज़ घटने की बजाये और बढ़ता गया।

 आतंकवादियों ने भी हिदू कश्मीरी पंडितों और सिखों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया और इनहे तत्काल घाटी छोड़ने की धमकियाँ दी जाने लगी। राज्य सरकार ने भी इनहे सुरक्षा और भरोसा देने के बजाये इनको पलायन करने के लिये हर संभव मदद की।

       आतंकवादियों के हौसले बहुत बढ़ चुके थे और वह हर किसी को जो उन्हे अपने रास्ते का कॉटा लग रहा था उसे अपने रास्ते से हटा रहे थे।इस दौर मे सबसे ज़्यादा हत्याऐ कश्मीरी मुस्लिमों की  ही हुई क्योंकि राज्य सरकार भी उन्हे शक की दृष्टि से देखती थी और आतंकवादी तो जो उनका साथ न दे वह उनका दुश्मन था ही ।

       इसी बीच आतंक वादियों के एक गुट हिज़बुल मुजाहिदीन ने कश्मीर के सबसे बडे धार्मिक नेता मीर वायज मौलवी मोहम्मद फ़ारूख की हत्या कर दी जिससे पूरी कश्मीर घाटी मे रोष फैल गया पर राज्य सरकार ने यहॉ भी भयंकर ग़लती की और उसने बजाये कशमीरियो के दुख मे उनका साथ देने और उन्हे अपने पक्ष मे करने के उन्हे और नाराज़ कर दिया।

जगमोहन साहब ने उनकी कब्र पर फूल भेजने के बजाये उनके जनाज़े को लेकर जा रहे जुलूस पर भारी गोली बारी करवा दी जिसमे सैकड़ों लोग तो मारे ही गये और साथ ही भारत के प्रति रही सही कशमीरियो की हमदर्दी भी समाप्त करवा दी।

       जगमोहन साहब की इस हरकत पर देश विदेशों मे ख़ूब हंगामा हुआ और मजबूरन उन्हे मई 1990 मे इस्तीफ़ा देना पड़ा। जगमोहन साहब लगभग चार माह कश्मीर के गवर्नर रहे और इस अल्प अवधि मे जिस उद्देश्य से वो भेजे गये थे उसे उन्होंने शायद बख़ूबी अंजाम दिया।

     1990 के दशक से घाटी मे अशांति और आतंकवाद का दंश देश झेल रहा है जो पता नही कब ख़त्म होगा और कश्मीर फिर धरती का स्वर्ग कब बनेगा कह नही सकते।

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