अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

वैश्विक फलक : ईरान में आशा की किरण

Share

 पुष्पा गुप्ता

      ईरान में पिछले तीन महीनों से हिजाब विरोधी प्रदर्शन महिलाएं कर रही थीं, जिसमें उन्हें बड़ी सफलता मिली। ईरान की सरकार ने मॉरेलिटी यानी नैतिक पुलिस को ख़त्म करने का फ़ैसला लिया है।

        गौरतलब है कि मॉरेलिटी पुलिस का काम देश में इस्लामिक ड्रेस कोड को लागू करना है। ईरान में 1983 से सभी महिलाओं के लिए सार्वजनिक रूप से अपना सिर ढंकना अनिवार्य है। दुनिया के बाकी देशों की तरह ईरान की महिलाओं को भी अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का लंबा दौर देखना पड़ा है।

         1979 तक जब ईरान पर शाह का नियंत्रण था, शासन की आधुनिक नीतियों के कारण महिलाओं को कई क्षेत्रों में आज़ादी हासिल हुई थी। उनके पास हिजाब पहनने या न पहनने का विकल्प था, 1963 में वोट देने का अधिकार उन्हें मिला और परिवार संरक्षण अधिनियम ने महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ा दी,  बहुविवाह को कम कर दिया, अस्थायी विवाहों पर प्रतिबंध लगा दिए।

     लेकिन उसके बाद 1979 में इस्लामिक क्रांति होने के बाद से फिर से उन पर पाबंदियां बढ़ने लगीं। 

हिजाब की अनिवार्यता इसका एक उदाहरण है। इसी के कारण सितंबर में 22 बरस की महसा अमीनी को हिजाब ‘ठीक से न पहनने’ के आरोप में मॉरेलिटी पुलिस ने हिरासत में लिया था। जब अमीनी को हिरासत में लिया गया तो वह अपने भाई के साथ थीं।  

        पुलिस हिरासत में ही 16 सितंबर को अमीनी की मौत हो गई थी। आरोप है कि उनकी मौत मॉरैलिटी पुलिस की प्रताड़ना के कारण हुई। लेकिन पुलिस के मुताबिक मौत का कारण दिल का दौरा था। कारण जो भी हो, सच तो ये है कि एक 22 साल की निर्दोष लड़की को धर्म के ठेकेदारों ने प्रताड़ित किया।

          अमीनी की मौत के तीन दिन के बाद बड़ी तादाद में ईरानी महिलाएं सड़कों पर उतर आईं और तब से ईरान में देशव्यापी प्रदर्शन चल रहा है। सरकार प्रदर्शनकारियों के दमन में लगी हुई है। सैकड़ों लोगों की मौत विरोध प्रदर्शन के दौरान हो चुकी है। ईरान की महिलाओं के समर्थन में वहां के नामी-गिरामी लोग भी सामने आ रहे हैं। कतर में चल रहे फीफा मुकाबले में ईरान की टीम ने राष्ट्रगान के वक़्त जिस तरह चुप्पी साध ली थी, वो इसका ज्वलंत उदाहरण है।

       ईरान की सरकार ने हिजाब विरोधी आंदोलन को दबाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन अंततः उसे मॉरेलिटी पुलिस को खत्म करने का ऐलान करना पड़ा। ईरान के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद ज़ाफ़र मोंतजरी ने इस बारे में कहा कि नैतिक पुलिस को दूर रखने के साथ ही वे उस कानून की समीक्षा करेंगे, जिसमें सभी महिलाओं को अपने सिर को ढंकने की जरूरत होती है।

संसद और अदालत दोनों ही इस पर काम कर रहे हैं। पिछले बुधवार को एक समीक्षा दल ने इस विषय पर चर्चा करने के लिए संसद के सांस्कृतिक आयोग से मुलाकात की थी। मॉरेलिटी पुलिस को खत्म करने की घोषणा एक बड़ी सफलता नजर आ रही है, लेकिन अभी इसमें कई किंतु-परंतु जुड़े हुए हैं, जिनके परिप्रेक्ष्य में ही हालात की समीक्षा करना उचित होगा।

       जैसे मोरैलिटी पुलिस ईरान पुलिस के अंतर्गत आती है। और ईरान में पुलिस और सेना दोनों गृह मंत्रालय के अंतर्गत होते हैं, न कि न्यायपालिका के तहत। ऐसे में अटार्नी जनरल के बयान का कितना वज़न रहेगा, ये देखने वाली बात होगी। मॉरेलिटी पुलिस अगर न भी हुई, तो क्या इस्लामिक ड्रेस कोड हट जाएगा, ये भी एक बड़ा सवाल है।

      अभी ये भी नहीं पता है कि मॉरेलिटी पुलिस को अस्थायी तौर पर ख़त्म किया गया है, या फिर हमेशा के लिए ईरान की महिलाओं को इससे मुक्ति मिल गई है। क्योंकि अब तक सफेद और हरे रंग की वैन से चलने वाले मॉरेलिटी पुलिस कर्मी कहीं भी उतर कर महिलाओं को हिजाब ठीक करने कहते थे। कई बार डंडों से पिटाई भी कर देते थे।

वैसे मॉरेलिटी पुलिस की समाप्ति की घोषणा को फिलहाल महिला स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए एक उम्मीद की किरण माना जा सकता है। इसके साथ ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में किसी भी तरह की प्रताड़ना, अन्याय, अत्याचार के खिलाफ लड़ने का हौसला भी इससे मिलता है। अभी पिछले सप्ताह ही चीन में कोविड नियमों की कड़ाई और लॉकडाउन के खिलाफ जनता ने सारे ख़तरे उठाकर आवाज़ उठाई।

       जबकि चीन में सत्ता विरोधी होने का परिणाम अक्सर मौत के दरवाज़े पर ही मिलता है। वहां सूचना के अधिकारों पर भी सरकारी पाबंदी है, जिस वजह से सही ख़बरें बाहर तक मुश्किल से आ पाती हैं। फिर भी दुनिया ने ये देख ही लिया कि कैसे चीन में लोगों ने सरकारी उत्पीड़न के खिलाफ विरोध किया। ईरान में पिछले तीन महीनों से एक बड़ा आंदोलन चला ही है और आसार यही लग रहे हैं कि मॉरेलिटी पुलिस की समाप्ति के बाद भी ये आंदोलन आसानी से ख़त्म नहीं होगा। क्योंकि महिलाओं ने एकजुटता के साथ संघर्ष की ताकत को पहचान लिया है।

चीन और ईऱान इन दो देशों का शासन लोकतंत्र के पैमाने के मुताबिक नहीं है। लेकिन जिन देशों में लोकतंत्र है, वहां भी सरकारें अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रही हैं। मीडिया के जरिए जनमानस को प्रभावित करने के खेल के साथ, पूंजी का असमान वितरण कर एक पक्ष को बेहद ताकतवर और दूसरे को बेहद कमजोर करने का खेल खुल कर खेला जा रहा है।

       इसके खिलाफ विरोध और असंतोष की आवाज़ों को या तो अनसुना किया जा रहा है, या फिर विरोध करने वालों को सत्ता के जोर से दबाया जा रहा है। दमन के शिकार ऐसे लोग अभी संगठित नहीं हुए हैं, अपने-अपने संघर्षों में उलझे ये लोग बिखरा हुआ विरोध कर रहे हैं।

      मगर जब इनमें एकजुटता हो जाएगी तो चीन और ईरान जैसे कई और उदाहरण दुनिया में देखने मिल सकते हैं, जहां सत्ताओं को मनमानी की सज़ा अवाम सुनाएगी।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें