डॉ. राममनोहर लोहिया के अनन्य अनुयायी बदरीविशाल पित्ती जी की आज 19वीं पुण्य तिथि है। बदरीविशाल जी किसी और ही माटी के बने थे। वैसे तो उनका चोला भी हम सबकी तरह हाड़-मांस का ही था, परन्तु उनका मन जिस माटी का बना था, वह विरले ही मिलता है, आजकल तो प्रायः अप्राय ही है।
उन्होंने कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्रों में जितनी प्रतिभाओं को खोजा, गढ़ा, उन्हें आगे बढ़ाया और बड़ा बनने के मौके दिए उसके देखते हुए वह चाहते तो उनके पीछे पिछलग्गुओं की एक लंबी कतार होती, लेकिन श्रेय लेने के प्रति वह सैदव निःस्पृह बने रहे।
पित्ती जी सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता न केवल धनवान थे, बल्कि राजा भी कहलाते थे। उनके पीछे परिवार की दौ सौ साल पुरानी व्यावसायिक विरासत थी और यह स्वाभाविक था कि वे उसी दिशा में आगे बढ़ते, लेकिन उनका मन तो सर्वहारा के प्रति प्रेमिल और सहानुभूतिपूर्ण था।
देश प्रेम की उत्कट प्रेरणा ने उन्हें पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने की दिशा दिखाई। इसी क्रम में डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ ने उनके जीवन को धार दे दी।
डॉ. लोहिया के सम्पर्क में आने के बाद वे डॉ. लोहिया और समाजवाद के ही होकर रह गए। उन्होंने अपना तन, मन और धन डॉ. लोहिया और उनके विचारों को समर्पित कर दिया था।
उन्होंने ‘लोहिया समता न्यास’ और ‘नव हिन्द प्रेस’ के जरिए अगर लोहिया जी को जन-जन तक न पहुंचाया होता तो आज लोहिया के विचारों और उनकी सोच का न जाने क्या हुआ होता।
समाजवादी धारा का दूसरा साहित्य भी पित्ती जी के इन्हीं संस्थानों के जरिये प्रकाश में आया। लोहिया जी के चले जाने के बाद भी पित्ती जी ने इस सिलसिले को चालू रखा। बदरीविशाल पित्ती को समाजवादी विचारों और साहित्य के प्रकाशन का पुरोधा कहा जाए तो अनुचित न होगा। डॉ. लोहिया का जो भी साहित्य आज उपलब्ध है उसमें से अधिकांश को सामने लाने का श्रेय पित्ती जी को ही दिया जा सकता है।
समाजवाद के प्रति वह अंतिम क्षण तक समर्पित रहे। वह हैदराबाद से विधायक भी रहे और विधायकी का अपना कार्यकाल क्षेत्र के दीन-हीनों की मदद और उनकी समस्याएं सुलझाने में बिताया। उनके जैसा लोहिया भक्त शायद ही कोई अन्य हुआ है।
दरअसल, पित्ती जी का सम्पन्न और समृद्ध घराने से होने के बावजूद समाजवादी हो जाना एक अस्वाभाविक घटना थी और इस अस्वाभाविकता ने ही उन्हें उस समय के युवा लेखकों, कलाकारों और संस्कृति कर्मियों के आकर्षण का केंद्र बना दिया था, बल्कि आज की शब्दावली में कहें तो वह एक आईडियल और आइकॉन बन गए थे। लोग उनसे जुड़ने और उनकी सोहबत हासिल करने में गौरव का अनुभव करते थे। उन्होंने अपने बौद्धिक धरातल को इतना विस्तार दिया कि बुद्धिजीवियों का एक बड़ा समुदाय समा गया था।
बदरीविशाल जी यद्यपि इस संसार में नहीं हैं, लेकिन आज भी अनगिनत ऐसे लोग हैं जिनके मन में वह जी रहे होंगे… जीते रहेंगे। इसका कारण यही है कि वह किसी दूसरी ही मिट्टी के बने थे। वह अब मिलती नहीं।
डॉ. राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन के प्रेरणास्रोत बदरीविशाल पित्ती जी हैं। लोहिया साहित्य के संरक्षण तथा उनके विचारों के प्रचार – प्रसार में पित्ती जी जीवनपर्यंत लगे रहे। उनके इस भगीरथ प्रयास ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया। ऐसे सद्पुरुष से मिलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हुआ। लेकिन वह हमारे लिए सदैव स्मरणीय हैं।