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 कमाल की एकता हैं हिंदुत्ववादी और इस्लामिक सांप्रदायिक ताकतों में

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,मुनेश त्यागी 

      भारत का शासक वर्ग अंग्रेज भारत में फैली हिंदू मुस्लिम एकता की विरासत से डर गया था। मुस्लिम और हिन्दूत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों का जन्म 1906 और 1907 में हुआ था, जब लुटेरे अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए, भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अट्ठारह सौ सत्तावन की महान विरासत,,,, “हिंदू मुस्लिम एकता”  को तोड़ने के लिए 1906 में मुस्लिम लीग और 1907 में हिंदू महासभा का गठन किया था। अपने जन्म काल से ही ये दोनों ताकतें भारत के स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहीं और हिंदू मुसलमान की सांप्रदायिक राजनीति करके भारत की जनता की एकता को तोड़ती रहीं और भारत की जनता की एकता तोड़कर उनके बीच हिंदू और मुसलमान के नाम पर नफरत की आग लगाती रही और नफरत और हिंसा की राजनीति को आगे बढ़ाती रहीं।

     छ माफीनामे लिखकर और अंग्रेजों से जेल से निकलने की माफी मांग कर 1923 में सावरकर ने एक निबंध “हिंदुत्व” लिखा, जिसमें उसने सबसे पहले स्थापित किया था कि “भारत में दो राष्ट्र हैं, एक हिंदू और दूसरा मुसलमान, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते।” इस प्रकार “टू नेशन थ्योरी”  यानी”द्विराष्ट्र” की सबसे पहले शुरुआत सावरकर ने की थी। उसके बाद सावरकर और हेडगेवार के सहयोग से 1925 में आर एस एस की स्थापना की गई जिसकी बुनियाद भी हिंदू मुसलमान एकता को तोड़ने पर रखी गई थी।

     1939- 40 में जिन्ना और मुस्लिम लीग ने सावरकर और आर एस एस की तर्ज पर हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ते हुए पाकिस्तान बनाने की बात कही। यह भी आश्चर्यचकित करने वाली बात है कि सावरकर और आर एस एस ने अंग्रेजों द्वारा भारत को खंडित करके पाकिस्तान बनाने की जिन्ना की मांग का कोई विरोध नहीं किया था।

     1947 में जब अंग्रेजों ने भारत के खंड खंड करके भारत की एकता को तोड़ा, तो इन दोनों ताकतों ने अंग्रेजों की इस भारत विरोधी हरकत का कोई विरोध नहीं किया था क्योंकि ये दोनों ताकतें, भारत को खंड खंड करना चाहती थीं और तब से लेकर आज तक, ये दोनों भारत विरोधी साम्प्रदायिक ताकतें, भारत की जनता की एकता को तोड़ने की अभियान में लगी रही हैं। बाद में इनके साथ  सिख और बौद्ध सांप्रदायिक ताकतें भी भारत की जनता की एकता को तोड़ने की अभियान में लग गईं।

     अब जरा देखिए, इन तमाम  देश विरोधी ताकतों का भारत की आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था। आजादी के बाद ये ताकतें  भारत की जनता की एकता को तोड़ने के अभियान में लगी रहीं और दोनों ही ताकतें अंग्रेजों के साथ थी। आजादी के बाद भारत के किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों ने जो हक और अधिकार प्राप्त किए, मजदूरों की नौकरी के जो सुरक्षा अधिकार और सुविधाएं प्राप्त कीं, उनकी प्राप्ति में इन जनविरोधी सांप्रदायिक तत्वों का कोई योगदान नहीं रहा है, बल्कि ये हिंदू मुसलमान के नाम पर जनता की एकता को तोड़ कर किसानों मजदूरों के आंदोलन को कमजोर करके, लुटेरे और शासक शोषक पूंजीपति और सामंती लुटेरे वर्ग की हिमायत और हिफाजत करती रहीं।

    छात्रों और नौजवानों के संघर्षों को बल देने और आगे बढ़ाने में भी, छात्रों और नौजवानों की दुश्मन, इन दोनों ताकतों का कोई योगदान नहीं रहा है। छात्रों और नौजवानों द्वारा चलाए गए आंदोलन में *सबको शिक्षा सबको काम* और “पढ़ो और संघर्ष करो” के नारे और अभियान में भी इन तत्वों ने कोई योगदान नहीं दिया है। छात्रों द्वारा चलाए गए अभियान “सबको आधुनिक, अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा” के अभियान में भी इन दोनों ताकतों का कोई हाथ और योगदान नहीं रहा है। हां हमारे देश में जनता की एकता तोड़ना, हिंदू मुसलमान विभाजन पैदा करना और देश में नफरत की राजनीति और हिंसा फैलाना इनका मुख्य काम रहा है।

     हजारों साल से चली आ रहे औरत विरोधी माहौल और मानसिकता को बदलने में भी इन राक्षसी ताकतों का कोई योगदान नहीं रहा है, बल्कि ये औरत को सती प्रथा और औरत विरोधी प्रथाओं का समर्थन करती रहीं, औरत को बच्चा बनाने की मशीन बताती रहीं, विवाह को कॉन्ट्रैक्ट बताती रहीं, उन्हें भोग्या और मनोरंजन का समान बताती रही उन्हें पहले सती करके भारती थी और अब दहेज के नाम पर उनकी हत्या करती रही। इन्होंने औरत की मुक्ति के लिए कभी कोई काम नहीं किया है।

      और जनविरोधी, अंधविश्वासों, धर्मांधता और पाखंडों को बढ़ाने में, उनका प्रचार-प्रसार करने और जनता को इनका गुलाम बनाए रखने में इन्होंने पूरी कोशिश की है। इन दोनों ताकतों ने जनता को बौद्धिक और मानसिक गुलामी से मुक्त कराने की कोई कोशिश नहीं की है, वैज्ञानिक संस्कृति को बढ़ाने और उसका प्रचार प्रसार करने में इन जन विरोधी ताकतों का कोई योगदान नहीं रहा है। ये सारी की सारी सांप्रदायिक ताकतें आज भी धर्मांधता अंधविश्वास और पाखंड के साम्राज्य को बढ़ाने का काम कर रही है और ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति के प्रचार प्रसार में सबसे ज्यादा रोड़े अटका रही हैं।

     इन दोनों हिंदुत्ववादी और इस्लामिक सांप्रदायिक ताकतों में कमाल की एकता देखिए कि जनविरोधी, पूंजीवादी और साम्राज्यवादी विदेशी लुटेरों से इन दोनों को कोई परेशानी नहीं है। आजादी के आंदोलन में ये दोनों ताकतें अंग्रेज लुटेरों के साथ थीं और आज ये अमेरिका के नेतृत्व में देश और दुनिया की तमाम लुटेरी, शोषक, पूंजीवादी और साम्राज्यवादी ताकतों के साथ हैं और उन्हीं के मुनाफे और कारोबार बढ़ा रही हैं और लुटेरे साम्राज्य को बढ़ाने की नीतियां अख्तियार कर रही हैं। हमारे देश के किसानों, मेहनतकशों, मजदूरों और जनता की दुख तकलीफ दूर करने में और बुनियादी सुविधाएं देने में इनका कोई विश्वास नहीं है।

     किसानों और मजदूरों को, जमीदारों और पूंजीपतियों के शोषण, अन्याय, जुल्म और भेदभाव से बचाने के लिए, इन्होंने कभी कुछ नहीं किया। उल्टे हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक तत्वों की सरकार ने, उनकी नौकरी की सुरक्षा और नौकरी के अधिकार छीन लिए और उन्हें आधुनिक गुलाम बना दिया है और किसानों की फसलों का वाजिब दाम और फसलों का न्यूनतम मूल्य उन्हें आज तक नहीं दिया है और उसमें रोज आनाकानी कर रही है और नाक भौं सिकोड़ रहीं हैं।

     इस प्रकार हम देखते हैं की जनता, किसानों, मजदूरों, छात्रों और नौजवानों को हक, अधिकार, रोजगार और शिक्षा देने में, वैज्ञानिक संस्कृति को फैलाने और बढ़ाने में, देश में सब का बुनियादी विकास करने में और देश के प्राकृतिक संसाधनों का सारी जनता के विकास में इस्तेमाल करने में, इन जन विरोधी और देश विरोधी ताकतों का कोई योगदान नहीं रहा है। आज फिर ये हिंदुत्ववादी ताकतें और उनकी सरकार, भारत को गुलाम बनाने पर उतर आए हैं।     

       आज भी यह ताकतें हिंदू मुसलमान एकता तोड़कर जनता में हिंदू और मुसलमान की नफरत के बीज बो रहे हैं और इन तमाम ताकतों का किसानों मजदूरों और आम जनता की बुनियादी समस्याओं जैसे रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रक्षा बेरोजगारी गरीबी भुखमरी भ्रष्टाचार महंगाई से कोई लेना देना नहीं है और ये ताकतें आज जनता का ध्यान बुनियादी समस्याओं से हटा रही हैं भटका रही हैं। ये तमाम साम्प्रदायिक ताकतें आज भी देशी विदेशी साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

        ये तमाम साम्प्रदायिक ताकतें, पूर्ण रूप से पूंजीपतियों के संसाधनों को, उनके मुनाफों को, उनकी तिजोरियां को भरने वाली ताकतें हैं, पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की लूट को बढ़ाने और बनाए रखने वाली ताकतें हैं। ये तमाम की तमाम साम्प्रदायिक ताकतें जनता के बुनियादी अधिकारों पर सबसे ज्यादा कुठाराघात कर रही हैं। इनसे भारत की जनता, किसानों, मजदूरों, नौजवानों और छात्रों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। हमारा पूर्ण रूप से गहन विश्वास है की इन तत्वों के सत्ता में बने रहने के चलते, भारत के किसानों मजदूरों और नौजवानों की बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। अतः तमाम किसानों मजदूरों और नौजवानों को मिलकर इन ताकतों को सत्ता से हटाना आज का सबसे जरूरी काम बन गया है।

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