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निद्रा की दवाई से बचना …सही इलाज़?

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शशिकांत गुप्ते

विज्ञापनों का व्यापार अनवरत सिर्फ चल ही नहीं रहा है,बल्कि फलफूल रहा है।
विज्ञापनों की शुरुआत इस कहावत को चरितार्थ करते हुई।
जो दिखता है वह बिकता है
विज्ञापनों के बढ़ते व्यापार का कारण जनमानस पर बाजारवाद का बढ़ता प्रभाव है।
आमजन को उत्पादों को क्रय करने के लिए,विज्ञापनों के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाता है।
मनोविज्ञान जब जन के मानस पर हावी होता है तब साधारण मानव स्वप्नलोक में विचरण करने लगता है। मानव की स्थिति सावन के अंधे की तरह हो जाती है।
ऐसी स्थिति में मानव सारी बुनियदी समस्याओं को भुल जाता है।
सावन के अंधे को जिस तरह सर्वत्र हरा ही हरा दिखाई देता है,ठीक उसी तरह मनोविज्ञान के शिकार मानव, छद्म उपलब्धियों को सच मानने लगता है।
मनोविज्ञान से ग्रस्त व्यक्ति का मनोचिकित्सक दो तरह इलाज़ करतें हैं।
एक दवाइयां देकर दूसरा मरीज को परामर्श से कर मतलब Counselling कर।
मनोरोगियों की दवाई में नींद की मात्रा अधिक होती है।
नींद की खुमारी के कारण मरीज ज्यादा समय अर्ध चेतना में ही रहता है।
सियासतदान इलाज़ का दवाई वाला तरीका अपनातें हैं।
समाज के सच्चे सजगपरहरी,
परिवर्तनकारी,परामर्श वाला तरीका ही पसंद करतें हैं।
यही तरीका विचारक,चिंतक भी अपनातें हैं।
विचारों की शक्ति ही सही परमर्श कर सकती है।
किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए अच्छे विचार ही काम करतें हैं।
इसीलिए मनोविज्ञान का शिकार होने से बचने के लिए अच्छे विचार पढ़ना सुनना चाहिए।
अन्यथा मनोविज्ञान के शिकार होकर हम स्वयं को मानसिक गुलामी की शिकार हो जाएंगे।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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