वैभव कुमार त्रिपाठी
आरएसएस और बीजेपी ने कांग्रेस मुक्त भारत का जो सपना देखा और लोगों के बीच में पेश किया उसे वह पूरी करती नही दिखी। परन्तु आम आदमी पार्टी के मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुये यह अवश्य कहा जा सकता है कि केजरीवाल भी आरएसएस व बीजेपी के उसी एजेंडे को आगे लेकर चल रहे हैं।
पहले पंजाब में कांग्रेस को चुनौती देकर और बीजेपी के द्वारा चतुष्कोणीय मुकाबला बनाने में सहयोग के साथ कांग्रेस को सत्ता से बाहर किए और अब गुजरात में मुकाबले को त्रिकोणीय बनाकर बीजेपी की राह आसान करते हुये कांग्रेस के लिये बनते अवसर पर कुठाराघात कर दिया। गुजरात में जनता में बेहिसाब आक्रोश और बीजेपी के विरोध की धार को कुंद कर केजरीवाल ने कांग्रेस के पक्ष में बनते माहौल को खराब कर दिया।
केजरीवाल के दावे तो कहीं टिक नहीं पाए परन्तु वोटों के बंटवारे ने गुजरात की जनता की आशाओं और बेहतर विकल्प के रास्ते को अवरुद्ध कर दिया जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला और बीजेपी पुनः सत्ता में काबिज हो गई।
केजरीवाल की फंडिंग और मीडिया में मिलते कवरेज से यह साफ प्रदर्शित है कि इन चुनावी परिणामों के निहितार्थ क्या हैं?
भारत सरकार और केजरीवाल की दिल्ली की सरकार दोनों गुजरात चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंककर हासिल क्या करना चाहते थे? जवाब में सिर्फ एक ही विकल्प है बीजेपी की गुजरात की सत्ता में वापसी जो अंततः सफलतापूर्वक ग्राह्य हुआ।
निर्दिष्ट यह है कि पंजाब, गुजरात, बिहार, गोवा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के चुनाव परिणाम से एक बात साफ हो गई है कि बीजेपी सत्ता पाने के लिये अपने साथ कुछ अन्य दलों को भी वोट के बिखराव के लिये इस्तेमाल करती है और अंततोगत्वा या तो बीजेपी सस्ता में आती है या कांग्रेस को सत्ता से दूर करती है।
उक्त परिणामों से एक बात और स्पष्ट होती है कि जब बीजेपी और आरएसएस कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दे रहे थे तो इसमें अन्ना आंदोलन की भी भूमिका शामिल थी जिसमें रामदेव, केजरीवाल आदि भी शामिल थे। फिर भी देश की जनता मुल्क के विभिन्न राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में समर्थन देती है और यह संदेश भी देती है कि जनता समझदार है, समझती है कि लोकतंत्र में निरंकुशता पर लगाम विपक्ष ही लगा सकता है अतः किसी विचारधारा के लोगों को समाप्त करके लोकतंत्र को खत्म नहीं किया जाना चाहिये।
अब जब बीजेपी भारत को कांग्रेस मुक्त कर पाने में असमर्थ है तो ऐसी स्थिति में उसने दो एजेंडों पर काम करना प्रारम्भ किया है। पहले एजेंडे के तहत क्रमवार से लोकतंत्र को पंगु बनाना इसी का निरूपण है कि लोकतांत्रिक सरकारें जिनको जनता ने चुना है वहां खरीद-फरोख्त करके सत्ता परिवर्तन किया जाता है और खुद को मजबूत दिखाया जाता है। दूसरे एजेंडे में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त जनता के विकल्प के विचार की धार को वोटों के बिखराव की बिसात बिछाकर जनता को मूर्ख बनाना और सत्ता को हथियाना। इन दोनों एजेंडों से बीजेपी और आरएसएस को अपने मूल उद्देश्य कांग्रेस मुक्त भारत को गति मिलती दिखाई देती है।
अब यह स्पष्ट होने लगा है कि केजरीवाल, मायावती और ओवैसी अलग-अलग जगहों पर बीजेपी के धार्मिक ध्रुवीकरण व वोटों के बिखराव के राजनैतिक टूल की तरह काम कर रहे हैं।
गुजरात में केजरीवाल कांग्रेस के 13 प्रतिशत वोट काटने में सफल हुए और सीट जीत पाये 5 लेकिन कांग्रेस की पिछली बार की तुलना में 60 सीटों के नुकसान की बड़ी वजह बने। गुजरात की जनता के आक्रोश को भ्रमित करके केजरीवाल पुनः बीजेपी को सत्ता में स्थापित कराने में कामयाब हो गए और उनको मिला राष्ट्रीय पार्टी का तमगा।
केजरीवाल को राष्ट्रीय पार्टी का तमगा मिलने से बीजेपी को यह फायदा हुआ कि वह मीडिया के माध्यम से अब लोकसभा चुनाव में केजरीवाल को विकल्प बताने का षड्यंत्र रचेंगे।
अब जब जनता अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिये परेशान है और गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी के मार को झेलते-झेलते त्रस्त हो चुकी है और विकल्प की तलाश में है तो उसे ऐसे वोटकटवा लंबरदारों से सावधान रहना होगा और अपने विकल्प को चुनते हुये यह अवश्य देखना होगा कि क्या वह किसी ऐसे को तो नहीं चुन रहे हैं जो उनके विकल्प को कमजोर कर रहे हैं और अंततोगत्वा उनकी समस्याओं को ही मजबूत करने के लिये जिम्मेदार है।