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आधारभूत चिंतन : दर्शन, संकल्पना और विज्ञान

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 पुष्पा गुप्ता

     _प्रकृति विज्ञान में किसी भी वैज्ञानिक खोज का सत्‍यापन जब प्रकृति के प्रेक्षण या वैज्ञानिक प्रयोग के द्वारा हो जाये, तभी उसे अन्तिम तौर पर स्‍थापित माना जाता है। दर्शन स्‍वत्‍व (प्रकृति और समाज) और चिंतन एवं संज्ञान के सामान्‍य नियमों का अध्‍ययन और सूत्रीकरण करता है, प्रायोगिक सत्‍यापन उसके लिए अनिवार्य शर्त नहीं है। संकल्पना यानी विचारधारा सामाजिक यथार्थ का सच्‍चा या मिथ्‍या प्रतिबिम्‍बन होती है। विरोधी वर्गों वाले समाज में अलग-अलग वर्गों की अलग-अलग विचारधाराएँ अनिवार्यत: होती हैं, वे सचेतन हो या अचेतन। हर वर्ग, सचेतन या अचेतन तौर पर, अपनी विचारधारा से निर्देशित होता है और उन्‍नत चेतना के स्‍तर पर, कला-साहित्‍य-संस्‍कृति-दर्शन आदि के क्षेत्र में जो विचारधारात्‍मक संघर्ष होता है, वह वर्ग संघर्ष का ही एक रूप है।_

          विज्ञान प्रकृति, समाज और चिन्‍तन के क्षेत्र में नये अनुसंधान और फिर प्रेक्षण और प्रयोग द्वारा उनके सत्‍यापन का क्षेत्र है। यह भी सामाजिक चेतना का ही एक रूप है।

मार्क्‍सवाद एक दर्शन है, क्‍योंकि यह वस्‍तुगत जगत और चेतना की गतिकी के सामान्‍य नियमों का अध्‍ययन और सूत्रीकरण करता है।

मार्क्‍सवाद एक विचारधारा है, क्‍योंकि यह सामाजिक यथार्थ को सर्वहारा के अवस्थिति-बिन्‍दु से प्रतिबिम्बित करता है। लेकिन सर्वोपरि तौर पर मार्क्‍सवाद एक विज्ञान है, क्‍योंकि यह सैद्धान्तिक प्रस्‍थापना के प्रायोगिक सत्‍यापन पर बल देता है।

       यह वस्‍तुगत जीवन के प्रेक्षण और व्‍यवहार से आसवित (डिस्टिल्‍ड) सिद्धान्‍त को व्‍यवहार में उतारने और फिर उस व्‍यवहार के सार-संकलन के आधार पर सिद्धान्‍त को उन्‍नत एवं परिष्‍कृत करने की बात करता है। ‘पुडिंग की अन्तिम सार्थकता तो उसका स्‍वाद लिए जाने के बाद ही सिद्ध होती है’ — यह सामान्‍य मार्क्‍सवादी उक्ति है।

व्‍यवहार — सिद्धान्‍त — व्‍यवहार श्रृंखला का ऊर्ध्‍ववर्ती कुण्‍डलाकार विकास मार्क्‍सवादी संज्ञान-सिद्धांत की बुनियादी बात है। मार्क्‍सवाद एक विज्ञान है, जो प्रकृति और समाज दोनों में, अलग-अलग रूपों एवं प्रतीतियों के बावजूद, बुनियादी तौर पर गति के सामान्‍य नियमों के सक्रिय होने की बात करता है।

        द्वंद्वात्‍मक भौतिकवाद के सूत्र गति के यही सामान्‍य नियम हैं । इन नियमों को इतिहास और समाज-विकास पर लागू करना ऐतिहासिक भौतिकवाद है। द्वंद्वात्‍मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद एक विज्ञान है, इसलिए प्रकृति और समाज में होने वाले हर परिवर्तन के साथ यह निरन्‍तर विकसित होता रहता है।

         जो मार्क्‍सवादी विज्ञान की गतिमानता को नकारकर, उसे कठमुल्‍लासूत्र बना देते हैं, वे मार्क्‍सवाद से उसकी आत्‍मा को निकाल देते हैं। जिनका मार्क्‍सवाद सामाजिक व्‍यवहार के बजाय मात्र किताबी ज्ञान से अर्जित है और केवल मार्क्‍सवाद को कहते-लिखते रहना, भाष्‍य करते रहना ही जिनका काम है और जो इसे सामाजिक व्‍यवहार में नहीं उतारते, वे मार्क्‍सवादी वैज्ञानिक नहीं, दार्शनिक पण्डित हैं, यानी ‘मार्क्‍सविद्याविद” (मार्क्‍सो‍लॉजिस्‍ट) हैं।

    मार्क्‍सवाद क्रान्ति का विज्ञान है और क्रान्तिकारी व्‍यवहार द्वारा सत्‍यापन और विकास की माँग करता है।

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