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अमिताभ के चुप्पी तोड़े जाने के मायने बहुत गहरे हैं…।

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अमिता नीरव

जबसे फिल्में देखना शुरू की है तब से ही अपन अमिताभ बच्चन के फैन रहे हैं। उस वक्त तक अमिताभ की नाव डगमग करते हुए ‘कुली’ फिल्म की शूटिंग तक पहुँची थी और फिर से चलने लगी थी। बचपन की दोस्त औऱ उसकी बहनें जिस वक्त जितेंद्र की फैन हुआ करती थीं, अपन अमिताभ को पसंद करते थे। 

पिछले कुछ सालों से देश की बदहाली पर अमिताभ बच्चन की चुप्पी और सरकार की तरफ से खेलने की उनकी स्ट्रेटजी की वजह से उन पर गुस्सा रहा है। सोशल मीडिया पर उनकी अटपटी पोस्ट और हमेशा सेफ साइडर बने रहने की उनकी प्रवृत्ति से खीज हुआ करती थी।

तब जबकि जया बच्चन रिस्क लेकर मुखर हो जाया करती थीं, अमिताभ चुप ही रहते थे तो लगता था कि इस आदमी को अब और क्या चाहिए? शोहरत, इज्जत और दौलत सब कुछ तो कमा लिया है। क्या ये आदमी जीवन भर अभिनेता ही बना रहेगा, कभी भी अपने ऑन स्क्रीन नायकत्व का असल जिंदगी में परीक्षण नहीं करेगा? 

आखिर अमिताभ ने अपनी चुप्पी तोड़ी। कलकत्ता के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर वक्तव्य दिया। मैं देखती हूँ कि लगभग उस भाषण को सप्ताह भर हो गया है, मैन स्ट्रीम मीडिया से ही नहीं, सोशल मीडिया से भी वो भाषण गायब है।

अमिताभ ने फिल्म सेंसरशिप के संदर्भ में सिविल लिबर्टीज और एक्सप्रेशन ऑफ फ्रीडम के मसले पर सवाल उठाया। ये सब क्या इतना एकाएक हुआ होगा? तब जबकि भाषण पढ़ा गया था, जिसमें गलती की कोई गुंजाइश ही नहीं हो सकती है। अपनी फिल्म सिलसिला के उस गाने ‘कहने को बहुत कुछ है, मगर किससे कहे हम, कब तक यूँ ही खामोश रहें और सहें हम…’ की तर्ज पर वे बोल ही पड़े। 

पिछले सप्ताह भर से सोशल मीडिया पर ‘बेशर्म रंग’ और ‘दीपिका के मोहम्मडन’ होने को लेकर लिखा जा रहा है। अनचाहे ही हम सब सरकार की पिच पर खेलने के लिए मजबूर हो रहे हैं। अमिताभ बच्चन का वो भाषण उन चीजों को एड्रेस कर रहा है, जिसे लेकर देश का हर जागरूक नागरिक चिंतित है। 

अमिताभ बच्चन से पहले इस विषय़ पर आमिर खान ने बोला और उसके परिणाम भुगते हैं। शाहरूख ने हमेशा ही खुद को इस किस्म की बयानबाजी से बचाए रखा, लेकिन उसका हासिल क्या हुआ? आर्यन को बिना किसी ठोस वजह जेल में रहना पड़ा। 

फिल्मी दुनिया से इस संदर्भ में उठने वाले स्वर बहुत ही कम है। न सिर्फ संख्या में बल्कि गुणात्मकता में भी… समझ सकते हैं कि यह महँगा माध्यम है औऱ इसमें एक राज्य में प्रतिबंध का बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मगर जब अमिताभ बच्चन बोलने का खतरा उठाते हैं तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि पानी सिर से भी बहुत ऊपर जा चुका है। 

इसी सिलसिले में ताजा मामला हमारे मित्र और जाने माने कार्टूनिस्ट Hemant Malviya  के कार्टून का है। पाँच दिन पहले बनाए इस कार्टून पर हरिद्वार में हेमंत जी के खिलाफ गैर जमानती धारा 153ए के मामला दर्ज कर दिया गया है। इसकी सूचना देते हुए लिखी अपनी पोस्ट पर उन्होंने अपने कार्टूनिस्ट पिता का भी जिक्र किया है। 

उन्होंने लिखा है कि ‘उनके पिता उस वक्त भी कार्टून बनाया करते थे, जब इमरजेंसी का दौर था। तब भी उन पर कोई मुकद्दमा दायर नहीं हुआ था।’ ये दोनों ही ताजा मामले हैं। इससे पहले ऐसे अनगिनत मामले हुए हैं, जिन पर बहुत लंबी बात हो सकती है। 

पिछले दिनों एक पारिवारिक समारोह में शामिल हुई तो Rahul Gandhi की #भारत_जोड़ो_यात्रा का जिक्र चला। जब मैंने बताया कि ‘मैं भी उसमें शामिल हुई थी’ तो कजिन ने पूछा ‘तू कांग्रेसी है?’ मेरे जवाब देने से पहले ही मेरी मौसी ने उसे जवाब दिया, ‘हाँ भई कांग्रेसी है। अपन नहीं जीत सकते हैं इससे।’ 

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लिया गया फोटो डीपी में लगाया तो मुझसे कई लोगों ने पूछा था कि ‘क्या आपने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली है?’ तब भी मैंने लिखा था कि इस वक्त जिस तरह से हमारे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है, उसको देखते हुए हमें कांग्रेस के साथ खड़ा होना चाहिए। 

2014 के बाद जब मैं मोदीजी के खिलाफ लिखती थी, उन दिनों Rajesh Neerav  ने कई बार मुझसे कहा, ‘मत लिखा करो।’ अक्सर हमारी इस सिलसिले में बहस हो जाया करती थी। उस वक्त तक सारा डर ट्रोल होने तक ही सीमित था। क्योंकि उन दिनों सोशल मीडिया पर महिलाओँ को ट्रोल किया जाता था। 

आज फिर उनका डर उभर कर आया। सुबह राजेश ने मुझसे कहा, ‘मैं इसी बात से डरता हूँ। यदि तुम पर भी गैर जमानती धारा में मुकद्दमा दर्ज हो और कहीं की महिला पुलिस तुम्हें गिरफ्तार करने आए यह कल्पना ही डराने वाली है।’ फिर खुद ही खुद से सवाल करते हैं, ‘फिर सोचता हूँ कि क्या चुप रह जाना चाहिए?’

मैं भी खुद से यह सवाल बार-बार पूछती हूँ कि मुझे क्यों बोलना चाहिए? मेरी दिक्कत क्या है? मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। मुझे अपने लिखने बोलने से कोई आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या अन्य किसी तरह का लाभ नहीं मिल रहा है, उल्टा नुकसान ही हो रहा है।

तो फिर मुझे क्यों बोलना चाहिए? क्यों बिना वजह अपने ही लोगों में पराया होना चाहिए, क्यों समाज में अपने दुश्मन और विरोधी पैदा करना चाहिए? नहीं बोलने वाले सरकार के विरोधियों को भी जिस तरह का आदर-सम्मान मिलता है, मुझे भी मिल सकता है। बस चुप ही तो रहना है।

मगर फिर लगता है, मैं इस देश की नागरिक हूँ और इस नाते जो अधिकार मुझे संविधान से मिले हैं, यदि मेरे चुप रहने से उनका उल्लंघन होने लगेगा तो फिर उन अधिकारों की माँग के लिए कहाँ गुहार लगाऊँगी? और क्या मैं बस अपने ही अधिकारों के लिए बोलूँगी?

उन लोगों के लिए कौन बोलेगा, जो खुद के लिए नहीं बोलते हैं, बोल पाते हैं! तो हर हाल में बोलना तो होगा ही। जब अमिताभ बच्चन को उनके कहे के लिए ट्रोल किया जा सकता है, उसे मीडिया से गायब किया जा सकता है तो समझिए कि खतरा कितना बड़ा हो गया है।

एक छोटे से कार्टून को लेकर जब एफआईआर करवाई जा सकती है, छोटे-छोटे बयानों को लेकर जब जेल में डाल दिया जाता है। तब सबको बोलना पड़ेगा। हमें सिर्फ अपने नागरिक अधिकारों के लिए नहीं बल्कि उन सबके नागरिक अधिकारों के लिए भी बोलना होगा, जो नहीं बोल रहे हैं।

आज आप चुप हैं, लेकिन किसी दिन आप भी आएँगे घेरे में… अमिताभ के चुप्पी तोड़े जाने के मायने बहुत गहरे हैं…। इसे समझिए

1 comment

  • अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध अघोषित इमरजेंसी के समान हैं । प्रजातंत्र में व्यक्ति अपने विचार भी स्वतंत्रता पूर्वक नहीं रख सकता तो आजादी के क्या मायने , यह तो तानाशाही हैं ।

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