प्रणव प्रियदर्शी
जब उससे मुलाकात हुई, तब तक जिंदगी को पढ़ना मैंने सीखा ही नहीं था। बस धारा के खिलाफ तैरते और इस वजह से जिंदगी की प्रतिकूलताएं झेलते लोग अच्छे लगते थे। उसने परिवार की मर्जी से अलग प्रेमविवाह किया था और फिर ससुराल वालों की मर्जी थोपने पर आमादा पति से भी अलग हो गई थी, डेढ़ साल के अपने बेटे के साथ। माता-पिता के साथ ही सेंट्रल मुंबई की एक बस्ती में रह रही थी तब। देखने में सुंदर थी। सो, घर-परिवार और आसपास ही नहीं, कार्यस्थल पर भी उसकी ओर अनायास खिंचे चले आने वाले अवांछित लोगों की संख्या एक अलग चुनौती पेश करती थी, जिससे वह लगातार जूझ रही थी।
सांकेतिक तस्वीर
इन्हीं सबके बीच, एक दिन बॉस के केबिन से निकली और तेजी से बाहर की ओर जा रही थी कि सामने से आते हुए मेरी नजर उस पर पड़ी। उस दिन भी एक-दूसरे को हेलो कहकर हम निकल जाते, लेकिन चेहरे पर मायूसी का ऐसा भाव दिखा, जिसकी अनदेखी करना मुश्किल था। सो चाय की बात कहते हुए उसके साथ ही बाहर आ गया। चाय की चुस्कियों के साथ बीते उस आधे घंटे ने मेरे दिलो-दिमाग को जैसे मथ डाला था। बॉस ने उस दिन केबिन में उससे कहा, ‘मेरे ऑफिस में स्वैराचार (व्यभिचार) नहीं चलेगा। काम करना है तो ठीक से करो वरना नौकरी छोड़ दो।’ इस फरमान के पीछे उसकी करीबी हासिल करने की इच्छा रखने और उसमें नाकाम होने वाले एकाधिक सीनियरों द्वारा तैयार किया गया माहौल था। इसी माहौल की छनी हुई खबरें केबिन के अंदर पहुंची थीं और उसे वह सुनने को मिला, जिसके लिए उसके कान कतई तैयार नहीं थे। मजबूरी की इंतिहा यह कि नौकरी छोड़ने जैसा विकल्प भी नहीं था। अगले ही दिन से बेटे के दूध का ही नहीं, सिर छुपाने की जगह का भी सवाल खड़ा हो जाता।
अगले कुछ साल मेरे लिए इस रूप में भी खास रहे कि उसके माध्यम से जिंदगी ने संघर्ष और जिजीविषा के मायने समझाए। उन तमाम सीनियर्स के बीच रहते हुए, अपने ढंग से उनकी अवांछित कोशिशों को नाकाम करते हुए उसने अपने अंदर के रिपोर्टर को इस तरह तराशा कि एक अन्य भाषा की पत्रिका में इस छूट के साथ काम मिल गया कि आप अपनी भाषा में ही रिपोर्ट दीजिए, हमारे लोग उसे ट्रांसलेट कर लिया करेंगे। कुछ साल बाद अपनी पसंद के एक शख्स से शादी भी की, जिससे एक बेटी हुई।
मगर जिंदगी कोई सुखांत शॉर्ट स्टोरी नहीं होती। कहा ना, जिंदगी को पढ़ना मैंने नहीं सीखा था। बरसों बाद, हाल में उसकी खबर मिली। उस पति से भी कई स्तरों पर धोखा मिलने के बाद उसने वहां से भी नाता तोड़ा। बेटी और बेटे के साथ सिर छुपाने की जगह की तलाश है। जीवन की तेज धार किसी और तरफ जा रही है। वह उसके खिलाफ ही जूझ रही है अब भी। लेकिन हार उसने नहीं मानी है।