अग्नि आलोक
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अन्तरंग ऊर्जा और उसकी महत्ता

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 डॉ. विकास मानव 

      हमारे शरीर में एक विशेष प्रकार की विद्युत सदैव प्रवाहित रहती है। उसे एक प्रकार से जीवन-ऊर्जा भी कह सकते हैं। जिस प्रकार धन, भूमि और अंगदान कर हम लोगों को नव जीवन दे सकते हैं, ठीक उसी प्रकार प्राण-ऊर्जा का भी दान सम्भव है।   

       अपनी जीवनी-शक्ति का कुछ अंश दूसरों को देकर उसके जीवन को ऊर्जामय बना सकते हैं। ऐसा कार्य प्राचीन काल से भारत में होता था और आज भी हो रहा है। सिद्ध साधक अपनी जीवनी-शक्ति यानी प्राण-ऊर्जा द्वारा लोगों का कल्याण करते थे और आज भी कर रहे हैं।

      शक्तिपात दीक्षा में गुरु अपने शिष्य को अपनी जीवनी-शक्ति प्रवाहित करके उसकी प्राण-ऊर्जा को गति देता है ताकि शिष्य अपनी साधना अनवरत रूप से कर सके। प्राण-ऊर्जा बढ़ाने में गुरु की जीवनी-शक्ति उसका सहयोग कर सके–यही शक्तिपात का सूक्ष्म रहस्य है।

       आज का विज्ञान  इसे ‘मैसमेरिज़्म’ विद्या कहता है। मैसमेरिज़्म विद्या द्वारा मानसिक व शारीरिक उपचार किया जाता है। पश्चिमी देशों में यह चिकित्सा-पद्धति काफी लोकप्रिय है। देखा जाय तो यह भारतीय योग-साधना का ही अंग है जिसे ‘स्पर्श-दीक्षा’ कहते हैं।

      विज्ञान इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में काफी प्रगति करता जा रहा है। प्रतिदिन नए-नए अविष्कार हो रहे हैं। नैनो प्रणाली का युग आ रहा है। हम वस्तुओं को कितना छोटा कर सकते हैं कि ऊर्जा की खपत कम हो और शक्ति अधिक हो। जैसे रेडियो, मोबाइल, टेलीविज़न, लैपटॉप एक विशेष वेव द्वारा सम्पर्क कर लेते हैं, उसी प्रकार विचार-चेतना की शक्ति-तरंगें (लोंग वेव्स और शॉर्ट वेव्स ) दूर या निकट के व्यक्तियों तथा पदार्थों को प्रभावित कर सकती हैं।

      मनुष्यों अथवा प्राणियों की तरह ही विचार-शक्ति यानी अन्तरंग ऊर्जा द्वारा पदार्थों को प्रभावित किया जा सकता है। उन्हें हटाया जा सकता है, उठाया जा सकता है या गिराया जा सकता है। उनमें अन्य प्रकार की हलचलें या विशेषताएं पैदा की जा सकती हैं। उनका स्वरूप तक बदला जा सकता है और गुण भी। जिस प्रकार अग्नि और विद्युत द्वारा पदार्थों के आकार-प्रकार में परिवर्तन हो सकता है, उसी प्रकार आन्तरिक ऊर्जा यानी विचार-शक्ति से भी परिवर्तन सम्भव है।

      ऐसी चमत्कारपूर्ण कई घटनाएं हुई हैं। काशी के प्रसिद्ध अघोर संत बाबा कीनाराम ने गिरिनार में एक साथ आटा पीसने वाली हज़ारों चक्कियां चला कर वहां के नवाब को नतमस्तक होने को विवश कर दिया था।

      वे जिस चौकी पर समाधि लगाते थे, वह धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठने लग जाती थी जिसके कारण उन्हें समाधि में विघ्न होने लगता था। तब उनके शिष्य उस चौकी को लोहे की जंजीर से बांध दिया करते थे। आज भी बाबा कीनाराम की वह चौकी काशी में मौजूद है जंजीरों में बंधी हुई।

      वहीं पर एक कुण्ड है जिसे क्रीम कुण्ड कहते हैं।

तैलंग स्वामी ने गंगा नदी से एक बारह फीट का शिव लिंग उठाकर आराम से सीढ़ियों पर से चढ़कर अपने निवास स्थान पर रख दिया जैसे कोई सामान्य बात हो। उन्होंने शिव लिंग को जहां रखा आज भी उसी स्थान पर है। उसी तरह स्थिर है। काफी प्रयास किया गया कि उसे अन्य स्थान पर रख दिया जाय, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुआ।

       फिर उसे वहीं स्थापित कर दिया गया। इसे आप क्या कहेंगे ? यह कार्य उन लोगों के लिए सामान्य था। क्योंकि उनकी आंतरिक ऊर्जा इतनी प्रबल थी कि विचार करते ही वह उनके विचार के अनुकूल हो जाता था।

      विचार-शक्ति हमारे जीवन में कभी-कभी चमत्कार दिखला देती है, लेकिन हम इसे समझ नहीं पाते। अगर विचार-शक्ति यानी अन्तरंग ऊर्जा को एक धारा माना जाए तो उसके द्वारा चमत्कारिक कार्य करना कोई असम्भव कार्य नहीं है। बस, केवल एक सतत अभ्यास की आवश्यकता है।

      अग्नि और ताप का अंतर स्पष्ट है। अग्नि प्रत्यक्ष है। उसे नेत्रों द्वारा देखा जा सकता है और उसे जलाया-बुझाया जा सकता है। ताप सूक्ष्म और व्यापक है। उसे अनुभव तो किया जा सकता है, परन्तु देखा नहीं जा सकता है। देखा जाय तो विचार-शक्ति का प्रयोग हम अक्सर करते रहते हैं।

       यदि उसे विकसित और व्यवस्थित स्थिति में विशेष लक्ष्य के लिए प्रयुक्त किया जा सके तो प्रतीत होगा कि हमारी आंतरिक ऊर्जा कितनी शक्तिशाली है। उसकी शक्ति से व्यक्ति क्या, पदार्थों और परिस्थितियों को भी प्रभावित किया जा सकता है।

 अलग्जेंडेर राल्फ ने ‘The Power Of Mind’ में विभिन्न प्रकार के प्रमाण देते हुए लिखा है कि गहन ध्यान की अवस्था के द्वारा एकाग्र मानव-मन शरीर के बाहर स्थित सजीव और निर्जीव पदार्थों पर भी इच्छानुसार प्रभाव डाल सकता है।

      राल्फ का कहना है कि यह एक निर्विवाद सत्य है कि विचार-शक्ति द्वारा स्थूल जगत पर नियंत्रण सम्भव है।

      कंप्यूटर की निर्माण-प्रक्रिया से ज्ञात तथ्यों द्वारा वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अचेतन मन एक परिष्कृत और सशक्त कंप्यूटर की तरह कार्य करता है और जिस प्रकार एक कंप्यूटर, की गई फीडिंग के अनुसार ही, क्रियाशील होता है, उसी प्रकार अचेतन मन अपना आहार हमारे विचारों और संकल्पों से प्राप्त करता है।

       इस तरह अचेतन मन की दिशा मनुष्य की इच्छाओं से ही प्रभावित होती है। यह बात एकदम स्पष्ट है कि इस अचेतन स्थिति पर व्यक्ति अपने प्रयास द्वारा नियंत्रण स्थापित कर सकता है। तब अलौकिक लगने वाले कार्य उसके लिए सहज हो सकते हैं। व्यक्ति स्वयं अपना विद्युत चुम्बकीय बल-क्षेत्र या गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र विकसित कर सकता है–ऐसा वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं।

      हवा में तैरना अथवा आकाश-गमन करना इसी अभ्यास पर निर्भर करता है। तिब्बत प्रवास-काल के दौरान मैंने (गुरुदेव ने) ऐसे-ऐसे सिद्ध साधकों को देखा है जो साधना के समय भूमि से ऊपर उठ जाते थे, एक क्षण में कहीं पर भी प्रकट हो सकते थे। काशी के गन्धबाबा विशुद्धानंद सरस्वती इसके प्रबल उदाहरण हैं।

      इस रहस्य पर विज्ञान की खोज जारी है। मनुष्य चलता-फिरता विद्युत-ऊर्जा है। उसका भीतरी समस्त क्रिया-कलाप स्नायु-जाल में निरन्तर बहते रहने वाले विद्युत प्रवाह के परिणाम हैं जिसे योग कहता है प्राण-ऊर्जा जिसके द्वारा बाह्य जीवन में ज्ञानेंद्रियों और कर्मेन्द्रियों द्वारा विभिन्न विभिन्न प्रकार की हलचलें होती हैं।

        बाह्य जीवन में ज्ञानेंद्रियों और कर्मेन्द्रियों द्वारा विभिन्न हलचलों में खर्च होने वाली ऊर्जा वस्तुतः मानव विद्युत शक्ति है यानी प्राण-ऊर्जा या चेतना- ऊर्जा कह सकते हैं। विज्ञान का कहना है कि मनुष्य के जीवन में जो हलचलें होती हैं, उनमें विद्युत शक्ति यानी मानवी विद्युत शक्ति का हाथ है। रक्त और रासायनिक क्रिया-प्रतिक्रिया के मूल में विद्युत शक्ति ही है। विज्ञान इसे विद्युत शक्ति कहता है और योग-तंत्र कहता है–प्राण-शक्ति।

        अर्थात चेतना का ही एक विशेष रूप है वह जो हमारे शरीर के प्रवाह को गति देता है और करता है उसे नियंत्रित भी। जप, ध्यान, त्राटक, प्राणायाम अथवा योग-साधना द्वारा इसकी असीम शक्ति को नियंत्रित भी किया जा सकता है और बढ़ाया भी जा सकता है, क्योंकि शरीर एक बायोलॉजिकल यन्त्र मात्र है।

    चेतना के द्वारा इस पर नियंत्रण सम्भव है और दीर्घकाल तक जीवन जिया जा सकता है–ऐसा सम्भव है।

      जीवन तभी शिथिल होने लगता है जब चेतना-शक्ति का प्रवाह शरीर में मंद होने लगता है तथा शरीर का क्षरण तेजी से होने लगता है। जब शरीर अशक्त हो जाता है तब चेतना विवश होकर शरीर का त्याग कर देती है।

         नेल्या मिखाइलोवा जो रूसी सेना में सार्जेंट थी, अपनी इच्छा-शक्ति द्वारा स्थिर रखे जड़ पात्रों को गतिशील कर देती थी। चलती घड़ी को रोक देती थी, फिर चला देती थी। वह सत्तर के दशक में काफी चर्चित थी।

      उनके द्वारा प्रस्तुत किये अनेक अविश्वसनीय चमत्कारों को वैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन किया और पाया कि उनकी यह चमत्कारिक क्रिया न सम्मोहन से जुड़ी है और न ही किसी जादूगरी का कमाल है, बल्कि उनकी विचार-शक्ति का गहन परिणाम है। भारतीय अध्यात्म में तो आरम्भ से ही विचारों को ही  समर्थ ‘तत्व’ माना गया है। विचार-प्रवाह में असीम नैसर्गिक शक्ति है।

      विचार-शक्ति को पश्चिमी देशों ने ‘टेलिपाथी’ का नाम दिया। टेलीपैथी के एक प्रयोगकर्ता ए. एन. कीरो (इंग्लैंड) ने बहुत समय तक टेलीपैथी का गहन अध्ययन किया और प्रयोग किया। बन्द कमरे में क्या चल रहा है–उसकी जानकारी प्राप्त की जाये– उसमें सफलता मिली।

      कीरो ने अपने प्रयोगों से प्रभावित करने के लिए अनेक प्रसिद्ध वैज्ञानिकों से अनुरोध कर सच्चाई जानने का अनुरोध किया। जांचकर्ता में प्रमुख थे डबलिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सर विलियम वैरट और सोसाइटी फ़ॉर साइकिक रिसर्च के प्रधान प्रोफेसर सिजविग। उन्होंने कीरो के प्रयोगों को देखा और उनके पीछे निहित सच्चाई को स्वीकार भी किया। इन प्रयोगों की जांच का विवरण विचार-सम्प्रेषण समित द्वारा बड़े जोर-शोर से प्रकाशित भी किया गया।

        वर्तमान में अमेरिकी और रूसी शोधकर्ता, विचार के अपरमित शक्ति पर विशेष शोध कर रहे हैं और भारतीय योग-साधकों के पद-चिन्हों पर चलने का प्रयास भी कर रहे हैं। कुछ तो हिमालय आदि स्थानों पर वर्षों से निवास कर इस विद्या पर अध्ययन और शोध कर रहे हैं। उनके देश की सरकार पूर्ण सहयोग भी कर रही है ताकि भारत की रहस्यविद्या को जान सकें।

       संसार में बहुत सारे ऐसे साधक और मांत्रिक हुए जिन्होंने विचार-शक्ति और मन्त्र-शक्ति का समायोजन कर प्रकृति में हलचल पैदा कर दी। अफ्रीकी जनजाति के लोग मंत्रों और टॉनों-टोटकों पर काफी विश्वास करते हैं।

      उनके द्वारा की गई अप्राकृतिक क्रिया को तो समझ पाना सम्भव नहीं, लेकिन उसके मूल में प्रबल इच्छा-शक्ति यानी विचार-शक्ति काम करती है। उन्हें इसका तो पता नहीं होता था। वे टोनों-टोटकों को महत्व देते हैं।

     अफ्रीका की तरह मलाया (मलेशिया) में भी मंत्रों और विभिन्न अनुष्ठानों के माध्यम से अलौकिक चमत्कार पैदा कर देते हैं। ऋतु परिवर्तन करना भी उनके लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

       मलाया के राजा परमेसुरी अगोंग की पुत्री सालवा के विवाह की तैयारी बहुत ही भव्य तरीके से हो रही थी। उस विवाह में काफी गण्यमान लोगों की उपस्थिति भी होनी थी। विवाह के दिन ही अचानक घनघोर वर्षा होने लगी और चारों ओर पानी-ही-पानी नज़र आने लगा।

      राजा अगोंग काफी चिन्तित होने लगे। सारे विवाह-उत्सव पर पानी फिर गया। तभी उनके प्रमुख सलाहकार ने उन्हें राय दी कि पास के गांव में एक प्रसिद्ध मांत्रिक रहता है, अगर उसे बुलाया जाय तो शायद कुछ काम बन सके। रहमान नामक उस मांत्रिक को बुलाया गया सम्मान के साथ।     

         समारोह-स्थल का उस मांत्रिक ने तीन बार चक्कर लगाया और दोनों हाथ ऊपर उठाकर कुछ मन्त्र पढ़ा। देखते-ही-देखते उस स्थान पर पानी बरसना बन्द हो गया। लेकिन उस स्थान के बाहर वर्षा उसी तरह अनवरत हो रही थी।

          डेनियल डगलस होम्स नामक व्यक्ति की अन्तरंग शक्ति भी ऐसी विलक्षण थी कि सहसा विश्वास नहीं होता। विश्व प्रसिद्ध रसायन शास्त्री सर विलियम क्रुक्स  डगलस ने उसका भलीभांति निरीक्षण किया। उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं लगा। आखिर उन्हें कहना पड़ा– यह प्रकृति का अद्भुत चमत्कार है। एक साधारण मनुष्य ऐसा नहीं कर सकता। नेत्र बन्द करते ही वह हवा में धीरे-धीरे उठने लगता। ऐसा लगता जैसे पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उसके लिए व्यर्थ है।

       आसन लगाकर घण्टों हवा में स्थिर रहता। हाथ में दहकता अंगारा लिए रहता। जांच करने पर हथेली में जलने के निशान भी नहीं होते। नेत्र स्थिर कर वह जड़ वस्तु यहां तक टेबल को भी हवा में उठा देता।

      जब उससे पूछा गया कि तुम ऐसा कैसे कर लेते हो तो उसका कहना था–कुछ पल सांस रोककर बस विचार करता हूँ कि ऐसा होना चाहिए, वैसा ही हो जाता है।

    अंतरंग ऊर्जा आपमें भी है. उतनी ही जितनी मुझ में या बाकी लोगों में है. बस उसे जागृत-विस्फोटित करने की आवश्यकता है. यह काम ध्यान यानि मेडिटेशन से होगा. इसके लिए हम आपसे मात्र 15 दिन चाहते हैं. बाकी कुछ- भी नहीं.

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