डॉ. विकास मानव
पुराण कथा मे हमने देव एवं असुरों के संग्राम को पढ़ते हैं. ब्रह्मवैवर्त्त, श्रीमद्भागवत आदि पुराणों मे जिन्हे शरीरधारी देव और असुर बताकर अलंकाररूप कथा का मनमोहक वर्णन किया गया है वह अज्ञानवश या इसे व्यापारिक स्वरूप देने का प्रयासमात्र है?
वास्तविकता यह है :
*देवासुराः संयता आसन्।*
(शतपथ १३/३/ब्राह्मण/४/मंत्र१)
अर्थात् देव और असुर इस प्रकृति मे नित्य है जो हर पल युद्ध किया करते हैं। जैसे सूर्य्य देवसंज्ञक और मेघ के अवयव (बादल) असुरसंज्ञक इनका हर क्षण युद्ध होता रहता है।
निघन्टु आदि ग्रन्थों मे वर्णन मिलता है कि जो मनुष्य विद्वान्, सत्यवादी, सत्यमानी और सत्यकर्म करने वाले हैं वे देव तथा अज्ञानी, झूठ बोलने वाले, झूठ मानने और मिथ्याचार करने वाले हैं वे असुर कहाते हैं। इनका परस्पर हर क्षण विरोध होना यही देवासुर संग्राम है।
*सोर्देवानसृजत तत्सुराणां सुरत्वमसोरसुरानसृजत तदसुराणामसुरत्वं विज्ञायते।।*
(निरूक्त अ०३/खंड८)
*देवानामसुरत्वमेकत्वं प्रज्ञावत्वं,वानवत्वं वापि वासुरिति प्रज्ञानामास्यत्यनर्थानस्ताश्चास्यास्यामर्था असुरत्वमादिलुप्तम्।।*
(निरूक्त।अ०१०/खंड३४)
(सोर्दे०) सु अर्थात् प्रकाश के परमाणुओं से मन और पाँच ज्ञानेन्द्रिय एवं उनमे परस्पर संयोग तथा सूर्य्यादि की रचना ईश्वर करता है और (असो०) अंधकाररूप परमाणुओं से पाँच कर्मेन्द्रिय, प्राण तथा पृथिवी आदि की रचना भी ईश्वर करता है जो प्रकाशरहित होने के कारण असुर कहाते हैं। प्रकाश एवं अंधकार मे विरूद्ध गुण होने के कारण परस्पर युद्ध होता है. यही देवासुर संग्राम कहाता है।
इसी प्रकार पुण्यात्मा मनुष्य, देव और दुष्टात्मा, असुर कहे गये हैं। इनका नित्य परस्पर युद्ध होता है। तथा दिन का नाम देव और रात्रि का नाम असुर है। इनमे परस्पर नित्य युद्ध हो रहा है।इस प्रकार के प्राकृतिक और सनातन युद्ध को शास्त्रों मे देवासुर संग्राम कहा गया है।
शुक्ल पक्ष का नाम, देव तथा कृष्ण पक्ष का नाम असुर है. इसी प्रकार उत्तरायण की संज्ञा देव और दक्षिणायन की संज्ञा असुर है।
इन सब का अखंडित निरंतर युद्ध हो रहा है। इन्ही परस्पर विरोधी संज्ञासूचक नित्य घटित होने वाली प्राकृतिक क्रियाओं को नखशिख वर्णन द्वारा पुराणकारों ने दृश्यमान देवासुर संग्राम का नाम दिया है।
उपरोक्त तथ्यों को हम अपनी आँखों से नित्य देख रहे हैं जो घटित हो रहा है. उसे महसूस भी कर रहे हैं. तब भी जाने क्यों काल्पनिक कथाओं पर विश्वास कर कुचक्र मे फसकर तथ्यहीन अवधारणा अपनी भावी पीढ़ी से साझा करने तैयार बैठे हैं।
मजेदार बात यह है कि अमरीका को भी पृथिवी पर एक राक्षस की खोपड़ी मिली है. उसके अनुसार यह २५००००००० वर्ष पुरानी है. इसकी लम्बाई ६.६ फीट है. इस राक्षस की लम्बाई बीस मीटर थी. यह समुद्र मे रहता था. इसी ने सबसे पहले पृथिवी पर कब्जा जमाया। यह इतना शिक्षीत था कि युद्ध मे देवताओं को परास्त कर दिया था।
तो जरा आप अपने विवेक का प्रयोग कर अर्थ से अनुगत होंगे।