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 लेफ्ट से मैनेजमेन्ट जरूरी और राइट से लीडरशिप

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डॉ. प्रिया 

     मैनेजमेंट की पढाई या मीटिंग में अकसर उक्त वाक्य पढ़ने, सुनने को मिलता था, फिर लगा कि इसके अर्थ एवं प्रभाव को गहराई से समझना चाहिए। माना जाता है कि दुनिया का सबसे कठिन काम है लोगों को मैनेज एवं लीड करना।

        _इसके कुछ विंदुओं को संक्षेप में समझते हैं :_

       लीडरशिप बुनियादी तौर पर दायें मस्तिष्क की एक अत्यन्त शक्तिशाली गतिविधि है। एक तरह से यह कला अधिक है। यह जीवन दर्शन पर आधारित होती है। 

      हालांकि लोग मस्तिष्क के दोनों हिस्सों का प्रयोग करते हैं, परंतु आम तौर पर हर व्यक्ति में एक हिस्सा ही अधिक प्रबल होता है।

 जाहिर है आदर्श स्थिति तो यह होगी कि व्यक्ति मस्तिष्क के दोनों हिस्सों के बीच अच्छा तालमेल रखे तथा दोनों की ही योग्यताओं को विकसित करे, ताकि वह पहले यह जान सके कि इस स्थिति में किस चीज की जरूरत है और फिर वह उससे निबटने के लिए उचित साधन का इस्तेमाल करे।

        परंतु लोगों में अपने आधिपत्य ( dominance) वाले गोलार्ध के ” आरामदेह दायरे ” (comfort zone) में बने रहने की प्रवृत्ति होती है,इसलिए वे हर स्थिति का विश्लेषण दायें या बायें मस्तिष्क की वरीयता के अनुसार करते हैं।

अब्राहम माश्लो के शब्दों में : ” जो व्यक्ति हथौड़े के प्रयोग में निपुण होता है, उसमें हर चीज को कील समझने की प्रवृत्ति होती है।”

        हम जिस दुनिया में रहतें हैं, वहाँ मुख्यत: बायें मस्तिष्क का आधिपत्य है। इसमें शब्दों, नाप- तौल और तर्क को सिंहासन पर बिठाया जाता है, जबकि हमारे स्वभाव के अधिक रचनात्मक या कलात्मक पहलू, हमारे बोध को अकसर उतनी प्रधानता नहीं दी जाती।

      हममें से बहुत से लोगों को अपने दायें मस्तिष्क का दोहन करना मुश्किल लगता है। 

मस्तिष्क का लेफ्ट भाग तर्क ( logic) विश्लेषण ( analysis) गणित, आंकडा, व्यवस्था, नियंत्रण, समय बद्धता, ऑडिट का कार्य करता है। फैक्ट और डेटा की बात करता है।

       किसी भी वस्तु या समस्या को टुकड़े टुकड़े में अलग करके देखता है। इसका सम्बन्ध क्रमिक ( sequential) चिंतन से है।

        मस्तिष्क का राइट भाग विश्लेषणात्मक ( analytical) नहीं, परंतु संकलनात्मक या एकात्मक ( synthesizing) है। संश्लेषण (synthesis) से  यानी यह अलग अलग टुकड़ो को मिलाकर देखता है। यह क्रियेटिविटी , इमैजिनेशन का कार्य करता है।

      इसका सम्बन्ध सबके एक साथ एवं  संपूर्ण (holistic) चिंतन से है। बायां गोलार्ध समयबद्ध है, जबकि दायां समयमुक्त है। 

इस तरह राइट ब्रेन जहाँ हाथी के समग्र भाग को देखता है, वहीं ब्रेन का लेफ्ट भाग अंधों की स्टोरी की तरह हाथी के विभिन्न अंगो को स्पर्श करके हाथी के सम्बन्ध में ( एकांगी) धारणा बनाता है।

 इसे मैनेजमेंट में सिस्टम्स एप्रोच थियरी के तहत Churchman ने बखूबी समझाया है।

       यदि गैर-वैज्ञानिक विचारधारा वाली पूँजीवादी, धार्मिक, पारंपरिक विचारधारा वाली दलों की केस स्टडी करें तो मिलता है कि यह लोगों के मस्तिष्क के दोनों भाग (सायमलटेनियस) उपयोग कैसे कर सकती हैं.? स्पेस ही कहाँ है? 

        क्योंकि ऐसी पार्टी जो धार्मिक ( religious) एवं पारम्परिक ( conservative) है, वह पास्ट ओरिएंटेड है, उसमें अतीत के प्रति आलिंगन है,यथास्थितिवाद (status quo) की पोषक हैं। धर्म, आस्था पर आधारित होने के कारण लोगों की एक्सप्लोर करने की, इंवेन्शन और इनोवेशन करने की तीव्रता को डिस्ट्रॉय कर देता है।

      इसीलिए ऐसी पार्टियों की विचारधारा एवं उनमें कण्डिशनिंग नेतृत्व संपूर्णता ( holistic) में नहीं देख पाता। जिससे ऐसी पार्टियां व्यक्ति, समाज में कोई बदलाव ( transform) नहीं कर सकती हैं, बल्कि सुधार ( reform) कर सकती हैं। 

हजारों सालों से धार्मिक,संत, आचार्य, दार्शनिकों ने धर्म, पूजा, दान,पुण्य, आचरण के माध्यम से व्यक्ति एवं समाज को सुधार करने की कोशिश करते रहें हैं किन्तु कोई सामाजिक, व्यवहारिक परिवर्तन नहीं हुआ, सामाजिक ही क्यों..?

        न्यूरोसाइंस में हुए रीसेंट रिसर्च के अनुसार व्यक्तित्व परिवर्तन भी वस्तुगत कारणों से होता है।

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