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बागेश्वर दरबार में अर्जी-चमत्कार का पूरा गणित

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चंदू…सैकड़ों बच्चों के माता-पिता को इसमें उम्मीद दिखती है। दूर-दूर से अपने बच्चों की जिंदगी के लिए बागेश्वर धाम आए मां-बाप इसे ऐसे देखते हैं, जैसे उनका बच्चा भी यहां के चमत्कारों से चंदू की तरह चलने और बोलने लगेगा। धाम में यह प्रचारित किया गया है कि बचपन से बोल और चल नहीं पाने वाला चंदू यहां आने पर चलने-बोलने लगा।

सच जानने के लिए हमने चंदू से बात की। हकीकत में चंदू अब भी ठीक से बोल नहीं पाता। वह केवल बाबा के जयकारे लगा पाया। कहां का रहने वाला है, उसे कौन और कब बागेश्वर धाम लाया, इसका जवाब नहीं दे पाया। बागेश्वर धाम के लोग कहते हैं- घरवाले यहां छोड़कर चले गए थे।

चंदू की कहानी की तरह ही है बागेश्वर धाम का सच। धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के चमत्कारों की चर्चा इस समय पूरे देश में है। दावा है कि वे भक्तों के मन की बात जान लेते हैं। नागपुर की अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने दिव्य दरबार में किए जा रहे प्रदर्शन को ठगी कहते हुए उन्हें चुनौती तक दी। चमत्कार देखने और अर्जी की पूरी प्रोसेस समझने; चमत्कार, ट्रिक या ठगी के दावे का साइंस और गणित समझने के लिए भास्कर टीम 7 दिन बागेश्वर धाम और उसके आसपास रही।

डॉक्टर और अस्पतालों से हारे हुए लोग यहां आखिरी उम्मीद में पहुंचे

छतरपुर रेलवे स्टेशन के बाहर आ रहा 10 में से हर 8वां आदमी बागेश्वर धाम जा रहा है। उत्तराखंड के ऋषिकेश से लेकर सायबर सिटी हैदराबाद तक के पढ़े-लिखे युवा भी यहां पहुंचे। आस्था पर भरोसा इतना है कि तर्क की बातें कम होती हैं। हाईवे से 5 किलोमीटर दूर बागेश्वर धाम वाले गांव गढ़ा के रास्ते पर देखा कि कोई रेंगता हुआ तो कोई लेटता हुआ जा रहा है। बस एक ही रट लगाए है कि उसे बागेश्वर सरकार के पास अर्जी लगानी है।

डॉक्टरों और अस्पतालों से हारे हुए लोग अपनी आखिरी उम्मीद लेकर यहां पहुंच रहे हैं। किसी का बच्चा बोल नहीं सकता तो किसी के बच्चे को डॉक्टरों ने कह दिया है कि अब इसे ईश्वर ही बचा सकते हैं।

क्या वाकई पं. धीरेंद्र शास्त्री सब कुछ जानते हैं…

ऐसा नहीं है कि पं. धीरेंद्र शास्त्री अंतर्यामी हैं और वे हर किसी के मन की पूरी बात जानते हैं। यदि ऐसा होता तो वे ये भी जान लेते कि कुछ पत्रकार धाम में खबर करने आए हैं? हम कौनसी खबर करने आए हैं? पहले भी हमने धाम के आसपास तालाब और मरघट की जमीनों पर बागेश्वर धाम के कब्जे की खबरें की हैं।

हमने ये भी लिखा है कि धाम के लिए यहां श्मशान को बंद कर दिया गया है और तालाब को धीरे-धीरे पाटा जा रहा है। जब तक ये खबर प्रकाशित नहीं हो गई, तब तक धीरेंद्र शास्त्री को इस बात की जानकारी नहीं लगी थी।

अब समझते हैं बागेश्वर धाम में अर्जी कैसे लगती है

अर्जी लगाने के लिए आपको अपनी समस्या के मुताबिक लाल, पीले, सफेद और काले रंग के कपड़े में लिपटा हुआ नारियल बागेश्वर धाम में बांधना पड़ता है। लाल रंग यानी परेशानी, काला भूत-प्रेत बाधा, पीला शादी-विवाह के लिए और सफेद कपड़े में लिपटा नारियल संतान सुख के लिए होता है। ये आपकी समस्याओं के कलर कोड हैं। अर्जी बागेश्वर धाम वाले हनुमान जी के दरबार में लगती है। उस नारियल में लिपटे कपड़े को मंदिर में किसी स्थान पर बांधना होता है।

पर्ची में नाम, पता, मोबाइल नंबर सब, वही तय करते हैं किसे बुलाएं फिर चमत्कार कैसा

सबसे पहले ये समझना होगा कि दरबार में बाबा के सामने वही भक्त पहुंचता है, जिसकी पेशी की तारीख होती है। आप सोच रहे होंगे कि पेशी क्या होती है? जी हां… बागेश्वर सरकार की कोर्ट या दरबार में पेशी बहुत अहम बात है। आप हम सोशल मीडिया या टीवी चैनल पर जो लाइव अपडेट देख रहे होते हैं, वो इसी दरबार की होती है।

यदि आपको पेशी में आना है तो ये आपकी मर्जी से नहीं होता। यहां पहले पर्ची कटानी होती है। पर्ची धाम के काउंटर से बनती है। पर्ची बनवाने के लिए आपको नाम, पता, मोबाइल नंबर सब देना होता है। फिर इन पर्चियों को बोरे में जमा किया जाता है। धाम का ऐसा दावा है कि इनमें से 50 पर्चियां लॉटरी से निकाली जाती है।

जिनके नाम की पर्ची निकलती है, उन्हें फोन करके बुलाया जाता है। तयशुदा तारीख पर आना होता है। फिर उसी काउंटर पर आधार कार्ड दिखाकर टोकन कटता है। जिनका टोकन होता है, उन्हें पेशी की तारीख मिलती है। टोकन में ही पेशी की तारीख लिखी होती है। महाराज मंगलवार और शनिवार को 50 लोगों को पेशी पर बुलाते हैं।

चूंकि भक्तों की पूरी जानकारी पहले से ही धाम के कार्यकर्ताओं के पास होती है। वही उन्हें फोन करके बुलाते भी हैं। ऐसे में यह तय है कि लोगों की बुनियादी जानकारी धाम के लोगों के पास होती है। फिर सोशल मीडिया के इस दौर में जानकारी हासिल करना बड़ा काम नहीं है। अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के श्याम मानव की मानें तो यही ट्रिक है कि बाबा सिर्फ चुनिंदा लोगों की पर्ची लेते हैं। यानी वे उन्हीं की पर्ची स्वीकार करते हैं, जिनके बारे में उन्हें बताना होता है।

दिव्य दरबार में तो कोई भी आ जाता है, वहां मन की बात महाराज कैसे जानते हैं…?

दिव्य दरबार यानी महाराज की जहां कथा होती है, उसी दौरान वे दरबार लगाते हैं। ऐसा दावा है कि यहां वे किसी को भी रेंडमली बुलाते हैं और उनके मन की पूरी बात पर्ची पर लिख देते हैं। यहां कोई टोकन सिस्टम नहीं होता।

नागपुर और रायपुर में कथा के बाद दरबार लगा था। श्याम मानव की बात यहां याद आती है कि रायपुर में जिस पत्रकार ज्ञानेंद्र तिवारी को बाबा ने बुलाया था, उनके पिताजी का नाम, भाई का नाम और भतीजी का नाम भी बताया था। साथ ही ये भी बताया था कि उनके भाई ने हाल ही में एक मकान बनवाया है और बीते दिनों उसमें पूजा हुई है।

दरअसल, ये पूरी जानकारी ज्ञानेंद्र तिवारी के फेसबुक अकाउंट में अपलोड थी। तार्किक बातें करने वालों का पक्ष ये है कि महाराज ने पत्रकार को वही बताया जो उनके फेसबुक पर था।

अगले ही दिन महाराज ने पत्रकारों से कहा कि वे किसी भी व्यक्ति को सामने लेकर आएं। पत्रकारों ने लोगों को बुलाया और महाराज ने उन्हें भी उनके बारे में सही जानकारी बता दी। साथ ही ये भी दावा किया कि जो भी व्यक्ति आएगा, उसके बारे में पर्चा पहले से तैयार है। श्याम मानव और जादूगर सुहानी शाह इसे ट्रिक कहते हैं। श्याम मानव इसे कर्ण पिशाचिनी विद्या कहते हैं। वे कहते हैं कि वे भी इस विद्या को जानते हैं। ये ट्रिक है, कोई चमत्कार नहीं है।

भक्त कहते हैं- आराम मिल रहा है; लेकिन दैवीय चमत्कार जैसा कुछ नहीं हुआ

31 जनवरी, मंगलवार को लगे दरबार में हम शामिल हुए। कई भक्तों से बात की। पन्ना जिले के पवई से आए रामचंद बताते हैं 16 पेशी हो चुकी हैं। हमने पूछा कि क्या उनकी समस्या का समाधान हो गया? जवाब मिला कि एक रुपए में चार आना बचा है, बाकी हो गया। पर्चा दिखाया तो लिखा था- प्रेत बाधा के शिकार हैं।

दमोह के हटा से आए रामबिसाय अग्रवाल बताते हैं- 14वीं पेशी पर आए हैं। घुटनों में दर्द और बेटे की शादी के लिए अर्जी लगाई थी। हमने पूछा अब तक कितना समाधान हुआ? बोले- घुटनों के दर्द में थोड़ा आराम है, लेकिन बेटे की शादी अब तक नहीं जमी।

गुना से मनीष लोधा चौथी पेशी पर आए हैं। वे बताते हैं- पहले बहुत नशा करते थे। महाराज के पास पहुंचे तो उन्होंने लिखा कि धीरे-धीरे नशा छूट जाएगा। अब शराब पीना छोड़ दिया है।

भक्तों का कहना है कि उन्हें दरबार में आने से आराम हुआ है। हालांकि इनके साथ कोई ऐसा दैवीय चमत्कार भी नहीं हुआ है। इनकी समस्याएं बहुत आम किस्म की थीं।

प्रेत-बाधा, सेनापति का चक्कर

दरबार शुरू होने से पहले जैसे ही हनुमान चालीसा का पाठ शुरू हुआ, कुछ महिलाएं झूमने लगीं। कहा गया कि इनके शरीर में प्रेत बाधा है। पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने सेनापति को उनका इलाज करने को कहा। असामान्य हरकतें करने वाली महिलाएं थोड़ी देर बाद शांत हो गईं।

भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में मनोचिकित्सा विभाग के एचओडी प्रो. जेपी अग्रवाल कहते हैं- दिमाग में कई लेयर हैं। अनकॉन्शियस, सबकॉन्शियस और कॉन्शियस। जैसे समुद्र बाहर से शांत दिखाई देता है, लेकिन कभी-कभी सुनामी आ जाती है। ऐसे ही अनकॉन्शियस दिमाग में विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। इसे ही लोग प्रेत बाधा समझने लगते हैं। आमतौर पर मानसिक रोगियों के साथ समस्या ये है कि परिवार इलाज नहीं कराना चाहता। वे बाबाओं के पास अपने डर को डंप कर देते हैं।

मेरे मामा इनके भक्त थे, फोन पर कहा- तुम ठीक हो जाओगे, अगले दिन मौत हो गई

राजनगर खजुराहो के नामचीन डॉक्टर राघव पाठक शुरू से धीरेंद्र शास्त्री की बातों को तर्कसंगत नहीं मानते। वे शास्त्री के कथित चमत्कारों को पाखंड कहते हैं। खजुराहो से 3 किमी दूर राजनगर में उनके घर पर हम उनसे मिले।

डॉ. राघव कहते हैं- धीरेंद्र के पाखंड के कारण उनके मामा की जान चली गई। जब पूरे देश में कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा था, तब छतरपुर में एक विधायक राम कथा का आयोजन करा रहे थे। उसमें भीड़ आ रही थी। मेरे मामा भी उस भीड़ का हिस्सा थे। उसी भीड़ में मामा संक्रमित हुए और फिर उनकी जान चली गई।

मौत से एक दिन पहले मामा को धीरेंद्र शास्त्री का फोन आया था कि उन्हें कुछ नहीं होगा, वे जल्द ठीक हो जाएंगे, लेकिन अगले ही दिन मामा की मौत हो गई। मैं और मेरा परिवार भी मामा के कारण संक्रमित हुए, बड़ी मुश्किल से हम खुद की जान बचा पाए। डॉ. राघव कहते हैं यदि धीरेंद्र की बातों में चमत्कार होता तो मेरे मामा की जान नहीं जाती।

भाजपा के पूर्व विधायक आरडी प्रजापति कहते हैं ‘जब बाबा चमत्कार से सब ठीक करने का दावा करते हैं तो फिर कैंसर अस्पताल की क्या जरूरत है? असल में अस्पताल की आड़ में ब्लैक मनी को व्हाइट करने का उपक्रम तैयार हो रहा है।’

शहडोल के भगवती मानव कल्याण संगठन की जिला अध्यक्ष मंजू द्विवेदी कहती हैं ‘21 वीं सदी में ऐसे चमत्कारों की बात करना पाखंड से कम नहीं। धर्म में आस्था रखना ठीक है, लेकिन आडंबर करना ठीक नहीं।’

अप्रैल 2020 में धीरेंद्र शास्त्री की छतरपुर शहर में बड़े पैमाने पर हुई रामकथा के आयोजक कांग्रेस विधायक आलोक चतुर्वेदी की राय कुछ अलग है। वे कहते हैं ‘कुछ तो साधना या सिद्धि है बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री में। लोग इतनी दूर-दूर से आ रहे हैं, उन्हें फायदा हो रहा है।’

राजनगर बस स्टैंड के पास मिला एक सरकारी कर्मचारी कहता है ‘चमत्कार की बात गलत है। सब उनके ही लोग होते हैं जो भूत-प्रेत का नाटक करते हैं। उनके ही लोग पूरे धाम में घूमते रहते हैं।’

आस्था और तर्क के इस भंवरजाल से इतर उत्तराखंड से आई दो युवतियों ने कहा- उनकी आस्था बागेश्वर धाम में है, न कि धीरेंद्र शास्त्री में। बहुत दिनों से सोशल मीडिया पर बागेश्वर धाम के चमत्कारों की बात सुन रही थीं। उनका मन हुआ कि वे भी एक बार दर्शन करें, इसलिए वे यहां आई हैं।

सवाल जिनके हम पूरे जवाब नहीं ढूंढ पाए

  • चंदू पूरी तरह ठीक नहीं हुआ, यह तो दिख रहा है, लेकिन वह पहले चल और बोल नहीं सकता था, इसका दावा धाम के लोग ही करते हैं। चंदू पहले चल और बोल नहीं पाता था, इसके कोई प्रमाण नहीं हैं।
  • प्रेत बाधा उतारने के दाैरान बाबा जिस सेना और सेनापति को पिटाई लगाने का फरमान देते हैं, उसका रहस्य हम पता नहीं कर पाए। वजह यह कि जिन महिलाओं को प्रेत बाधा बताई जाती है, उनसे बात करने की मनाही है। न वे बात करती हैं न उनके परिवार वाले। हमने ऐसे कुछ लोगों के वीडियो बनाने की कोशिश की तो सेवादारों ने सख्ती से मना कर दिया।
  • ज्यादातर लोगों का कहना है कि उनके मन की बात बाबा पर्ची पर पहले ही लिख देते हैं, लेकिन वे पर्ची दिखाने को तैयार नहीं होते। कहते हैं कि बाबा ने पर्ची दिखाने से मना किया है। पर्ची की सारी बातें सही ही है, ये हम पुख्ता तौर पर प्रमाणित नहीं कर पाए।
  • बाबा किसी के मन की बात पढ़ लेने को ही चमत्कार कहते हैं, वे बार-बार जोर देते हैं कि देखिए हमने इनकी परेशानी पहले ही समझ ली। फिर सामने वाले से हामी भरवाते हैं। हालांकि ये हर बार पूरी तरह सच नहीं होता, लेकिन भक्तगण खुले मंच से इसे कहने में कतराते हैं।
  • जिन लोगों को बाबा के दरबार में आने से पूरा फायदा नहीं होता, उन्हें कहते हैं कि शायद उनकी आस्था कमजोर रही होगी। हमें ऐसे कई लोग से मिले जो 15 पेशी लगा चुके हैं, लेकिन अब तक समस्या का समाधान नहीं हुआ। 100% चमत्कारिक समाधान हो गया, ऐसे प्रमाणित लोग हमें नहीं मिले।

टीम ने बागेश्वर धाम में आम भक्तों की तरह 7 दिन बिताए… ताकि सच करीब से दिखे

हम एक हफ्ते, 26 जनवरी से 1 फरवरी तक बागेश्वर धाम और उसके आसपास रहे। बाबा के भक्तों से ऐसी वैसी बात करना, या बाबा के चमत्कारों पर सवाल उठाना भी बवाल खड़ा कर सकता था। चमत्कार और ट्रिक के इस रहस्य को जानने की कोशिश से पहले हमने 3 दिन नागपुर की समिति के साथ बिताए। दिव्य दरबार के रहस्यों को वे किस आधार पर ट्रिक कहते हैं, इसे हमने समझने की कोशिश की।

हां.. हमने बागेश्वर धाम में आकर किसी को भी ये नहीं बताया कि हम पत्रकार हैं। हम आम भक्तों के साथ कतार में खड़े रहे, दरबार में जाने के लिए पत्रकारीय कौशल का उपयोग भी नहीं किया। ऐसा इसलिए ताकि सच को ज्यादा करीब से समझ सकें।

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