सुधा सिंह
अयोध्या आंदोलन के अग्रणी संत और सांसद महंत अवैद्यनाथ ने कहा है कि हिंदू समाज को डॉ. भीमराव अंबेडकर का ऋणी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि दलित जातियों की ओर से ऊंची जातियों के प्रति जो प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है, उसे लेकर नाराज होने की जरूरत नहीं है। बल्कि स्थिति के यहां तक आने में अपनी भूमिका के बारे में सोचना चाहिए। महंत अवैद्यनाय ने ये बातें अमर उजाला से विशेष भेंट में कहीं।
महंत अवैद्यनाथ ने छुआछूत को बढ़ावा देने वाली ताकतों को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि ‘छुआछूत भारतीय समाज में व्याप्त एक कलंक है लेकिन दुर्भाग्य से यह किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में शामिल नहीं है।’
डॉ. अंबेडकर के सम्बंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए महंत अवैद्यनाथ ने कहा कि हिंदू समाज को डॉ. अंबेडकर का ऋणी होना चाहिए। वे छूआछूत की भावना से बेहद खिन्न थे। हैदराबाद के नवाब ने उन्हें इस्लाम कबूल कर लेने के एवज में एक करोड़ रुपये देने की पेशकश की थी, जबकि जिन्ना ने प्रधानमंत्री बनने के लिए भी उनसे मदद मांगी थी।
प्रतिक्रिया में वे इस्लाम धर्म में शामिल हो जाते या ईसाई बन सकते थे लेकिन उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकारा। उन्होंने देश की मुख्यधारा में इसी संस्कृति में रहना स्वीकारा। हिंदू भी भगवान बुद्ध को 10 श्रेष्ठ अवतारों में मानते हैं तथा संकल्प में भी बुद्धावतार की चर्चा करते है।
अगर डॉ. अंबेडकर चाहते तो बड़े पैमाने पर दलितों को मुसलमान बना सकते थे। उन्होंने कहा कि आज भी सवर्ण-दलित विवाद में अधिकतर जगहों पर दलित बौद्ध ही बन रहे हैं। ऐसे में डॉ. अंबेडकर के योगदान को हमें भूलना नहीं चाहिए।
उन्होंने कहा कि बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों की बढ़त से कोई हैरत नहीं होनी चाहिए।
जो दलित संपन्न हो गए हैं, उनकी बात अलग है लेकिन जो उपेक्षित हैं उनका विद्रोह स्वाभाविक है। जब तक समाज में उन्हें उचित जगह नहीं मिलेगी, वे विद्रोही बनेंगे ही। उन्होंने कहा तमाम बड़े राज्यों के विनाश में भी यही कारक रहे हैं। अपमानित होकर तो विभीषण से लेकर राणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह तक बगावत कर गए थे।
उन्होंने कहा कि चतुर्वर्णी व्यवस्था में भी दलितों की रोजी-रोटी के लिए चमड़े के जिस व्यवसाय पर उनका एकाधिकार बनाया गया था, वह चमड़ा उद्योग भी आज ऊंची जातियों के कब्जे में है। उसमें वे करोड़ों रुपये बना रहे हैं।
इस मामले में भी दलितों के साथ भेदभाव हो रहा है। ऐसे में उनके आर्थिक विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी ही चाहिए। उनका आर्थिक उन्नयन इस समस्या (छुआछूत) के खिलाफ सबसे प्रभावी कदम होगा क्योंकि ऊंची जाति का हिंदू संपन्नों में छुआछूत कम ही रखता है।
उन्होंने कहा दलित जब तक अछूत हैं, तब तक आरक्षण को बरकरार रखना चाहिए लेकिन दलित को छोड़ बाकी जातियों के मामले में आर्थिक आधार को अपनाना चाहिए। महत अवैद्यनाथ ने कहा कि दलितों से छुआछूत की भावना रखने वाला हिंदू, ईसाई या मुसलमानों से भी अधिक गुनहगार है क्योंकि ईसाई, मुसलमान तो धर्मांतरण से अपनी संख्या बढ़ाने में लगे हैं, जबकि सवर्ण हिंदू दलितों को अपमानित कर धर्मांतरण को विवश कर रहा है।
सदियों से नंगे तन और भूखे पेट हिंदू धर्म में पड़ा सामान्य दलित घोर उपेक्षा का शिकार है।
उन्होंने कहा, “हिंदू समाज ने दलितों के साथ न्याय नहीं किया है लेकिन वही अगर धर्मांतरण कर ईसाई या मुसलमान बन गए तो हमने उसको अपने पास बिठाने में संकोच भी नहीं किया। लेकिन जो व्यक्ति अपनी वास्तविक कौम में अपने लिए मान-सम्मान के साथ रहने के लिए दरवाजे बंद पाता है, वह अन्यत्र जाकर प्रतिक्रिया में उस धर्म के विनाश के लिए ही आजीवन काम करेगा।”
नदिया (प. बंगाल) के एक ब्राह्मण काला पहाड़ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उसे हिंदू पंडितों ने मुस्लिम लड़की से विवाह की अनुमति नहीं दी और उसे मुसलमान बनना पड़ा।
बाद में काला पहाड़ ने प्रतिक्रिया में हिंदू धर्म को ही उजाड़ने की ठान ली और कहा कि जो धर्म हमारी रक्षा नहीं कर सकता उसका रहना जरूरी नहीं. महंत जी ने कहा कि काला पहाड़ ने उड़ीसा, बंगाल के एक से एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया।
अगर हिंदू समाज से अपमानित होकर एक सवर्ण हिंदू समाज को इतना नुकसान पहुंचा सकता है तो सदियों से उपेक्षित उत्पीड़ित लोग अगर काला पहाड़ बन जाएं तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है।
महंत अवैद्यनाथ ने कहा कि आज कश्मीर घाटी से जिस बड़े पैमाने पर हिंदू पंडितों को निकलना पड़ रहा है, उसके लिए वे भी दोषी हैं। कर्णसिंह के पितामह महाराजा गुलाब सिंह ने वहां मुसलमानों को हिंदू बनाने के प्रयास में सफलता पाई थी। बहुत से लोग तैयार हो गए थे, पर तब कश्मीरी पंडितों ने ही प्रतिवाद किया और कहा कि अगर उनको हिंदू धर्म में लिया गया तो कश्मीरी पंडित झेलम नदी में कूदकर आत्महत्या कर लेंगे और महाराजा को ब्रह्महत्या का पाप लगेगा।
अगर तब महाराजा गुलाब सिंह की बात मान ली गई होती तो कश्मीर में आज वह नहीं होता जो हो रहा है। और आज भी हम इतिहास से सबक नहीं लेकर दलितों को उद्वेलित करने में लगे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रजातंत्र में संख्या ही भाग्य-निर्माता होती है। जो जाति अपनी ही जनसंख्या की उपेक्षा करेगी यह जीवित नहीं रह सकती। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म उदार तो है पर संकीर्णताओं से घिरा है। अपने ही अंग को वह काट रहा है, जबकि अन्य लोग अपनी संख्या बढ़ाने में लगे हैं।
हिंदू समाज आज अल्पसंख्यक बन रहा है। दलित अभी भी मंदिर नहीं जा सकता क्यों? अगर आज दलित जातियां उद्वेलित हैं तो उसका उनके पास ठोस आधार है.
[स्रोत : अमर उजाला, मेरठ संस्करण,13 अप्रैल 1994]