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पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने के मामले में अदालत का फैसला सुरक्षित

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विजय शंकर सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री की वैधता को लेकर विवाद 2014 से ही है। जब वे वाराणसी से अपना नामांकन देने गए तो शिक्षा के कॉलम में एमए लिखा और तभी से उनकी डिग्री को लेकर विवाद उठने लगा। विवाद का कारण, उन्ही के कुछ इंटरव्यू थे जिसमे एक इंटरव्यू में जिसे राजीव शुक्ल ने लिया था, में कहा था कि, मैं कोई पढ़ा लिखा नहीं हूं। एक अन्य इंटरव्यू में, जो किसी दक्षिण भारतीय अखबार में छपा था, उन्होंने खुद, इंजीनियरिंग करने की बात कही है। पर तथ्य क्या है यह तब सामने आया जब अमित शाह और अरुण जेटली ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके नरेंद्र मोदी की डिग्री दिखाई, जिसमे उन्हे गुजरात यूनिवर्सिटी से एमए इन एंटायर पॉलिटिकल साइंस बताया। 

अब एक नया विवाद खड़ा हो गया। एंटायर पॉलिटिकल साइंस के नाम से कोई डिपार्टमेंट, गुजरात विश्वविद्यालय में नहीं है। गुजरात ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय में, एंटायर पॉलिटिकल साइंस के नाम से न तो कोई  विभाग है और न ही ऐसी कोई डिग्री है। राजनीति शास्त्र यानी पॉलिटिकल साइंस, एक मान्य विषय है और दुनिया भर में इसकी पढ़ाई होती है। जब अमित शाह और अरुण जेटली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के मोदी जी की डिग्री सार्वजनिक की तो उस पर कई सवाल उठे। एक सवाल कंप्यूटर से डिग्री छापने का भी उठा और सबसे हैरानी की बात है, एक सामान्य सी जानकारी, जो गुजरात ओर दिल्ली यूनिवर्सिटी दोनो ही सूचना के अधिकार के अंतर्गत आरटीआई प्रार्थनापत्र के उत्तर में उपलब्ध करा सकते है, पर कभी रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है तो कभी रिकार्ड खोज रहे हैं, कह कर वे इसे टालते रहे। 

अपील दर अपील पार करते हुए यह प्रकरण, सूचना आयुक्त तक पहुंचा और जब सूचना आयुक्त ने गुजरात विश्वविद्यालय को, डिग्री दिखाने के लिए आदेश दिया तो गुजरात विश्वविद्यालय ने इसकी अपील अहमदाबाद हाइकोर्ट में कर दी। 9 फरवरी को इस मामले में बहस हुई और बहस के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। बहस के दौरान, विश्वविद्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने तर्क दिया कि, “छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है, विश्वविद्यालय को सूचना का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।”

एक तरफ यह कहा जा रहा है कि छुपाने के लिए कुछ नहीं है, पर विश्वविद्यालय को खुलासा करने के लिए मजबूर नही किया जा सकता। लेकिन, डिग्री का खुलासा तो, प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमित शाह और अरुण जेटली पहले ही कर चुके है। डिग्री गूगल पर अभी भी उपलब्ध है। यदि डिग्री वास्तविक है और इसमें कोई फर्जीवाड़ा नहीं है तो, उसे सार्वजनिक करने से यूनिवर्सिटी परहेज क्यों कर रही है ? आरटीआई कानून, सरकार या संबंधित विभाग को सूचना देने के लिए, बाध्य करने के लिए बना हैं। फिर मजबूर नहीं किया जा सकता क्या अर्थ है?

गुजरात विश्वविद्यालय ने गुरुवार को गुजरात उच्च न्यायालय को बताया कि, “सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई अधिनियम) के तहत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिग्री प्रमाण पत्र की प्रतियां प्रस्तुत करने का केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का निर्देश पीएम की निजता को प्रभावित करता है।”

आज सुनवाई के दौरान विश्वविद्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने तर्क दिया कि छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है, इसलिए विश्वविद्यालय को जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। एसजी तुषार मेहता ने कहा, “इससे तक प्रधानमंत्री की निजता भी प्रभावित होगी।”

अब यह एक नया और हास्यास्पद तर्क है कि, किसी भी व्यक्ति की शैक्षणिक डिग्री का सार्वजनिक करना, उसकी निजता का उल्लंघन है। शैक्षणिक डिग्रियां गर्व करने की चीज होती है। यदि डिग्री में कोई फर्जीवाड़ा नहीं है तो उसे लोग अपनी उपलब्धि के रूप में बताते थे। कुछ लोग उसे फ्रेम कराकर अपने ड्राइंग रूम और दफ्तर में टांगते भी हैं। डिग्री लेते हुए फोटो और उसका विवरण, अखबारों में छपवाते भी हैं। हर उस जगह, यह डिग्रियां मांगी जाती है, जहां शैक्षणिक योग्यता का कॉलम होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव नामांकन में शैक्षणिक योग्यता का कॉलम था और उन्होंने उसमे इसका उल्लेख किया है। आज यही तो सूचना मांगी जा रही है कि, उनकी शैक्षणिक योग्यता की डिग्री कहां है। 

सीआईसी का विरोध करते हुए एसजी ने कहा, “लोकतंत्र में, कोई फर्क नहीं पड़ता कि पद पर आसीन व्यक्ति डॉक्टरेट है या अनपढ़। साथ ही, इस मुद्दे में कोई सार्वजनिक हित शामिल नहीं है। यहां तक ​​कि उनकी निजता भी प्रभावित होती है।”  

यह बात बिलकुल सही है कि, संविधान में पीएम के पद के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं है, लेकिन यहां मामला शैक्षणिक योग्यता की अर्हता का है ही नही, बल्कि डिग्री की वैधता का है। यदि नरेंद्र मोदी ने एमए किया है तो उसकी डिग्री सार्वजनिक की जाय, यदि नही किया है तो उन्होंने मिथ्या शपथपत्र दिया है। 

एसजी तुषार मेहता ने तर्क दिया कि “मांगी गई जानकारी का सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में पीएम की भूमिका से कोई लेना-देना नहीं है।

हमें किसी की बचकानी और गैर-जिम्मेदार जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए जानकारी प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। साथ ही, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि मांगी गई जानकारी का सार्वजनिक शख्सियत के रूप में उनकी (नरेंद्र मोदी की) भूमिका से कोई लेना-देना नहीं है।”

इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि “लोकतंत्र में कोई फर्क नहीं पड़ता कि पद धारण करने वाला व्यक्ति डॉक्टरेट धारक है या एक अनपढ़ व्यक्ति है और इसमें कोई सार्वजनिक हित शामिल नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, “उदाहरण के लिए, यदि कोई आरटीआई के तहत जानकारी मांगता है कि भारत के राष्ट्रपति की ऊंचाई, बैंक बैलेंस आदि क्या है, तो क्या यह तार्किक होगा? क्या इसका कोई सार्वजनिक हित है? आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मांगी गई जानकारी सार्वजनिक गतिविधि से संबंधित होनी चाहिए, एसजी ने रेखांकित किया। उदाहरण के लिए, वे यह नहीं पूछ सकते कि मैंने कौन सा नाश्ता किया लेकिन हाँ नाश्ते के लिए कितनी राशि खर्च की गई।”

यहां भी एसजी, शैक्षणिक योग्यता और बैंक बैलेंस को एक समान मान कर देख रहे हैं। बैंक बैलेंस न तो कोई पूछता है और न ही बैंक बिना किसी अधिकृत संस्थान, जैसे आयकर, ईडी या पुलिस जो उससे जुड़े किसी मामले की जांच कर रहा है, को छोड़ कर, किसी को देता है। पर डिग्री, बैंक बैलेंस नहीं है। और यह शैक्षणिक योग्यता सार्वजनिक है जो निर्वाचन आयोग के कागज़ों और लोकसभा सचिवालय के दफ्तरों में और वेबसाइट पर उपलब्ध है। गुजरात यूनिवर्सिटी को केवल इस बात की दस्तावेजों के साथ पुष्टि करनी है। 

दूसरी ओर, अरविंद केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पर्सी कविना ने एसजी की दलीलों का खंडन करते हुए कहा कि इसमें कोई बचकानी और गैरजिम्मेदाराना जिज्ञासा नहीं थी। कविना ने कहा, “यदि आप नामांकन फॉर्म (चुनाव के दौरान दाखिल) को देखते हैं तो उसकी शैक्षिक योग्यता का उल्लेख होता है। इसलिए, हम डिग्री प्रमाणपत्र मांग रहे हैं न कि उसकी मार्कशीट।”

कविना ने कहा, “उनका (मोदी का) एक राजीव शुक्ला के साथ साक्षात्कार नेट पर उपलब्ध है न कि डिग्री पर। इसलिए हमने डिग्री की प्रति मांगी।”

अहमदाबाद हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव ने दोनो पक्ष को सुनने के बाद याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीआईसी के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) और गुजरात विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के पीआईओ को मोदी की स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। नरेंद्र मोदी के अनुसार, उन्होंने 1978 में, दिल्ली  विश्वविद्यालय से स्नातक और 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। 

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