शशिकांत गुप्ते
इनादिनों सियासत में एक मनोरजंक खेल चल रहा है।
एक दूसरे पर शाब्दिक
आरोप-प्रत्यारोप लगता से समय अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया जा रहा है।
दोनो ओर के सियासतदान मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी के यह शेर पढ़ते हैं।
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के सियासतदानों का उक्त आचरण क्या दर्शाता है?
इसे मनोरंजक खेल नहीं तो और क्या कहना?
एक दूसरे पर अमर्यादित भाषा का प्रयोग दोनों ओर के लोग आहत हो जातें हैं।
एक दूसरे से माफी मांगने लगते है।
इस माहौल को देख सुन कर इस सूक्ति का स्मरण क्षमा वीरस्य भूषणम् अर्थतात
क्षमा वीरों का आभूषण होता है।
इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है,जो अपशब्द बोलने वाले से माफी मांगकर उसे वीर कहना उचित होगा?
ज्ञानी कहते हैं यदि तुम कीचड़ में पत्थर फेंकोगे तो तुम्हारे धवल वस्त्र कीचड़ में लिप्त होकर मलिन हो जाएंगे
धवल वस्त्र की चिंता करने वाले ज्ञानी को क्या मालूम था कि सियासत में कीचड़ का भी महत्व हो जाएगा।
इनदिनों सियासत में कीचड़ के साथ झाड़ू का भी महत्व हो गया है। झाड़ू सिर्फ कचरा सोर सकती है,कीचड़ साफ नहीं कर सकती है?
झाड़ू हाथों में थाम कर दूसरों पर आरोप लगाना और माफ़ी मांगकर स्वयं को वीर समझना भी एक मनोरंजक कला है।
इस संदर्भ में शायर महेश जानिब का यह शेर सटीक है।
तिरी बेबाकियाँ ‘जानिब’ यही तस्दीक़ करती हैं
हर इक इंसान को दुनिया में हुश्यारी नहीं आती
यहाँ होशियारी से मतलब है,स्वयं को जरूरत से ज्यादा आंकना?
जो सच में समझदार हैं। उनके लिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलामजी के द्वारा कही गई सूक्ति स्मरणीय है।
यह सोच कर दुःखी ना हो कि,लोग आपको क्या समझते हैं,क्योंकि तराजू से सिर्फ वजन को मापा जाता है,गुणवत्ता को नहीं
आरोप- प्रत्यारोप करने के पहले स्वयं के जहन में झांक कर देखो।
दूसरों से माफी मांगने के पूर्व अपना मन साफ करो।
सियासतदानों के उपर्युक्त आचरण से आमजन क्या उम्मीद करें इसीलिए इसे सिर्फ और सिर्फ मज़ाक समझना ही समझदारी है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर