अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेअसर:सरकार के चुने आयुक्त ही कराएंगे 2024 का लोकसभा चुनाव

Share

‘अच्छे लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया की स्पष्टता बनाए रखना बेहद जरूरी है। नहीं तो इसके अच्छे रिजल्ट नहीं होंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त की सीधी नियुक्ति गलत है। हमें अपने दिमाग में एक ठोस और उदार लोकतंत्र का हॉलमार्क लेकर चलना होगा। वोट की ताकत सुप्रीम है। इससे मजबूत पार्टियां भी सत्ता गंवा सकती हैं। इसलिए चुनाव आयोग का स्वतंत्र होना जरूरी है।’

सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ के अध्यक्ष जस्टिस केएम जोसेफ ने गुरुवार को चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर फैसला सुनाते हुए यह बात कही। कोर्ट ने आदेश दिया कि PM, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और CJI का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। अब तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की पूरी प्रोसेस केंद्र सरकार के हाथ में थी।

सुनने में यह फैसला काफी सख्त और बड़ा बदलाव लाने वाला लगता है, लेकिन जमीनी सच इससे काफी अलग है।

दरअसल, चुनाव आयुक्तों पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 2024 के लोकसभा चुनाव तक बेअसर रहेगा। वहीं, फैसला लागू होने के बावजूद घुमा-फिराकर केंद्र सरकार के पसंदीदा अफसर ही चुनाव आयुक्त बनेंगे।

चुनाव आयुक्तों के कामकाज और उनकी नियुक्ति में पारदर्शिता का यह मामला 2018 से सुप्रीम कोर्ट में था। कई याचिकाएं थीं। पांच जजों की संविधान पीठ 17 नवंबर 2022 से सुनवाई शुरू की।

अगली सुनवाई से पहले ही 18 नवंबर को भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव अरुण गोयल को VRS मिल गया और अगले ही दिन यानी 19 नवंबर को PM की सिफारिश पर अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बना दिया गया।

23 नवंबर को हुई अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के बीच नियुक्ति नहीं होनी चाहिए थी। खासकर जबकि ये पद 15 मई 2022 से खाली है। पीठ ने नियुक्ति से जुड़े दस्तावेजों की जांच करने की बात कही। अटॉर्नी जनरल से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया बताने को भी कहा।

इसके बाद कई सुनवाई के बाद 2 मार्च 2023 को जब संविधान पीठ का फैसला आया तो उसमें चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति को लेकर कोई आदेश नहीं था। मतलब यह कि मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त और दो में से एक चुनाव आयुक्त 2024 के लोकसभा चुनाव तक अपने पदों पर बने रहेंगे।

साफ है 2024 के आम चुनाव मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की अगुआई में ही होंगे। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मौजूदा नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के समय ही लागू होगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी नामों की सिफारिश सरकार ही करेगी

किसे मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना है और किसे आयुक्त बनाना है, इसके लिए पहले नाम सुझाए जाते हैं। आगे भी ऐसा ही होगा। कानून मंत्रालय नाम सुझाएगा। फिर उन्हीं नामों में से किसी एक को प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का पैनल फाइनल करेगा।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं कि यहां पर भी जो नाम सरकार की तरफ से दिए जाएंगे, उनमें से ही कोई एक नाम चुना जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शायद कोई इस तरह के आरोप नहीं लगा पाएगा कि फलां मुख्य चुनाव आयुक्त मोदी ने बनाया है या सोनिया गांधी का करीबी है। मैं खुद भी दो दशक से इसी बदलाव की मांग उठाता रहा हूं।

क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे सकती है?

फिलहाल तो यह थोड़ा मुश्किल लगता है, क्योंकि 5 जजों की संविधान पीठ ने एकमत होकर फैसला सुनाया है। जब भी संविधान पीठ का फैसला एकमत रहा है, उसके खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा चुनौती दिए जाने के मामले नजर नहीं आते। हालांकि संसद अगर चाहे तो कोर्ट के इस फैसले को बदल सकती है। सरकार ने अब तक स्थिति साफ नहीं की है।

आखिर कोर्ट का आदेश कब तक अमल में रहेगा?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि यह प्रोसेस तब तक लागू रहेगा, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती।

अब जानिए चुनाव आयोग में कितने आयुक्त हो सकते हैं?

चुनाव आयुक्त कितने हो सकते हैं, इसे लेकर संविधान में कोई संख्या फिक्स नहीं की गई है। संविधान का अनुच्छेद 324 (2) कहता है कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। यह राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि इनकी संख्या कितनी होगी। आजादी के बाद देश में चुनाव आयोग में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त होते थे।

16 अक्टूबर 1989 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की। इससे चुनाव आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय बन गया। ये नियुक्तियां 9वें आम चुनाव से पहली की गईं थीं। उस वक्त कहा गया कि यह मुख्य चुनाव आयुक्त आरवीएस पेरी शास्त्री के पर कतरने के लिए की गईं थीं।

2 जनवरी 1990 को वीपी सिंह सरकार ने नियमों में संशोधन किया और चुनाव आयोग को फिर से एक सदस्यीय निकाय बना दिया। एक अक्टूबर 1993 को पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने फिर अध्यादेश के जरिए दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को मंजूरी दी। तब से चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो चुनाव आयुक्त होते हैं।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें