आरती शर्मा
स्त्रियां पहनती हैं
अपने पक्के प्रेम के लिए
कच्चे कांच की चूड़ियाँ
इन को पहनने उतारने में
कितनी ही बार
उनके हाथ ज़ख्मी भी हो जाते हैं
मगर फ़िर भी
बेहद खुशी से खरीदती हैं
वो रंग बिरंगी
कच्चे कांच की चूड़ियाँ
जो बेहद ज़रूरी हैं
उनके प्रेम को
साबित करने के लिये
पत्नियां पहनती हैं
अपनी निष्ठा
साबित करने के लिये
मंगलसूत्र
भरती हैं सिर के
अंतिम छोर तक
लाल चटख
सिंदूर की रेखा
जो साबित करता है कि
जितनी लंबी ये
लाल रेखा होगी
पति पत्नी का साथ भी
उतनी दूर तक जाएगा
मेंहदी भी काढ़ती है
हथेली पर
तो उसके बूटों में भी
कही लिखवा लेती है
पति का पूरा नाम
देह पर गुदवा लेती है
पति के नाम का गुदना
जो साबित करता है
कि अब ये बपौती है
अपने पति की
जिसकी देह पर पति का
मालिकाना हक़ है
पायल ,बिछुआ,महावर
चटख लिबास ,
ये सब साबित करते हैं
पत्नी के अगाध प्रेम को
इस पर भी वो रखती है
ढेरों व्रत उपवास
बांधती हैं मन्नतों के धागे
सर पटकती है पीर फकीर
की चौखटों पर
सिर्फ अपने पक्के प्रेम की
विश्वसनीयता को
साबित करने के लिए
पूरी ज़िंदगी निकल जाती है
इस दैहिक पवित्रता को
साबित करने में
मगर फिर भी
हार जाती हैं
मगर फिर भी
आरोपित होती हैं
क्योंकि सारे दैहिक प्रमाण
दैहिक पवित्रता को
साबित करने के लिए है
पर मन की पवित्रता को
साबित करने का
कोई प्रमाण नही होता
क्योंकि
प्रेम साबित करने का नही
महसूस करने का विषय है
और इसीलिए प्रेमिकाए
नही पहनती
कच्चे कांच की चूड़ियां
नही खींचती सिर के
आखिरी छोर तक
कोई लाल रेखा
नही रखती कोई
व्रत उपवास
नही साबित करती
अपनी दैहिक पवित्रता
बस आह भर कर
हौले से कहती है
कि मैं तुमसे बहुत
प्रेम करती हूँ
और प्रेमी उस प्रेम को
उसके कहने से ज्यादा
उसकी काजल से
भरी आंखों में
महसूस कर
उसे चिपका लेता है
अपने सीने से
और दोनों महसूस करते हैं
उस अद्भुत प्रेम को
जिसे प्रमाण की
कोई आवश्यकता
नहीं होती..!!