नई दिल्ली। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र देश का दर्ज दिया गया है। अर्थात भारत पूरी तरह से स्वतंत्र देश नहीं है, बल्की यहां सिर्फ आंशिक स्वतंत्रता है। अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित थिंक-टैंक ‘फ्रीडम हाउस’ द्वारा किए गए आकलन में यह कहा गया है। भारत को वर्ष 2022 में फ्रीडम के मामले में 100 में से 66 अंक दिया गया है। पिछले वर्ष की तुलना में भारत के समग्र स्कोर में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
अमेरिकी थिंकटैंक फ्रीडम हाउस ने कहा कि ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ का 2023 संस्करण वार्षिक तुलनात्मक रिपोर्ट की इस श्रृंखला में 50वां है। रिपोर्ट में समान मापदंडों पर 195 देशों को रैंक दी गई है- और भारत को 100 में से 66 अंक मिले हैं। मूल्यांकन के मापदंडों में चुनावी प्रक्रियाएं, राजनीतिक बहुलवाद एवं भागीदारी, सरकार की कार्यपद्धति, अभिव्यक्ति एवं मत की स्वतंत्रता, संस्थागत व संगठनात्मक अधिकार, कानून का शासन और व्यक्तिगत स्वायत्तता एवं व्यक्तिगत अधिकार शामिल थे।
भारत ने चुनावी प्रक्रियाओं के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया और 4/4 अंक हासिल किए। इसमें अन्य कारकों के साथ-साथ स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना शामिल था। रिपोर्ट कहती है कि भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक अधिकार को खतरा बना हुआ है। इसने कई पर्यवेक्षकों के हवाले से नागरिकता संशोधन अधिनियम और मुस्लिम मतदाताओं को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित किए जाने की संभावना जताई है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि आबादी के अधिकारहीन तबकों को पूर्ण राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए व्यावहारिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। मुस्लिम उम्मीदवारों ने 2019 के लोकसभा चुनावों में पिछली बार की 22 सीट से बढ़कर 545 में से 27 सीट जीतीं। हालांकि, यह केवल सदन की 5% सीटों के बराबर है, जबकि 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में मुसलमानों की आबादी 14.2 फीसदी है।
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के बारे में रिपोर्ट कहती है कि हालांकि इसका इस्तेमाल भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए किया गया है, लेकिन विभिन्न कारणों से यह कमजोर हुआ है। रिपोर्ट कहती है कि आरटीआई आवेदकों को शासन संबंधी महत्वपूर्ण सवालों पर कोई जवाब नहीं मिल रहा है, जवाब नहीं देने के लिए आरटीआई अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले मोदी सरकार के तहत नाटकीय रूप से बढ़ गए हैं और हाल के वर्षों में रिपोर्टिंग काफी कम महत्वाकांक्षी हो गई है। मीडिया की आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के लिए अफसर-अधिकारियों/अधिकरणों द्वारा सुरक्षा व्यवस्था, मानहानि, राजद्रोह और हेट स्पीच कानून के साथ-साथ अदालत की अवमानना के आरोपों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पत्रकारों के खिलाफ हिंसा करने वालों को शायद ही कभी सजा मिलती है।
रिपोर्ट में आगे स्वतंत्र न्यूज आउटलेट्स पर छापों का उल्लेख किया गया है। इसमें ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी, आर्टिकल-14 वेबसाइट के पत्रकारों का उत्पीड़न और पिछले साल द वायर के तीन संपादकों व स्टाफ के कार्यालय एवं घरों पर छापेमारी के उदाहरण दिए गए हैं। रिपोर्ट कहती है कि न केवल प्रेस की स्वतंत्रता, बल्कि शैक्षणिक स्वतंत्रता भी पिछले कुछ वर्षों में काफी कमजोर हुई है. विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा बढ़ गई है और यहां तक कि प्रोफेसरों पर भी हमले किए गए हैं। रिपोर्ट में भाजपा से निष्कासित नुपूर शर्मा के पैगंबर मुहम्मद पर दिए बयान से पनपी हिंसा और देश के विभिन्न हिस्सों में मुसलमानों के घरों पर चलाए गए बुलडोजर का भी जिक्र किया गया है।