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बंगाल के बाहर दीदी फेल…2024 के लिए ममता ने रखा 40 सीटों का टारगेट

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कोलकाता

वो साल 1997 था। महीना था, दिसंबर। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल ममता बनर्जी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें ऐलान किया कि वो और उनके समर्थक ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ेंगे। ममता की प्रेस कॉन्फ्रेंस चल ही रही थी कि खबर आई कि उन्हें कांग्रेस से 6 साल के लिए बाहर कर दिया गया है। शायद पार्टी के इस फैसले का अंदाजा ममता को पहले ही हो चुका था।

राजीव गांधी तक पहुंच रखने वालीं ममता को निकालने का फैसला तुरंत नहीं लिया गया था, बल्कि उनके और कांग्रेस के बीच कई साल से वैचारिक मतभेद चल रहे थे। पार्टी में उनके सबसे बड़े विरोधी उस वक्त के बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष सोमेंद्र नाथ मित्रा थे। ममता मित्रा को तरबूज कहकर बुलाती थीं, क्योंकि तरबूज अंदर से लाल होता है और वामपंथियों का रंग भी लाल है।

ममता को लगता था कि मित्रा वामपंथियों के समर्थक हैं, और ममता वामपंथियों की सबसे बड़ी बड़ी दुश्मन थीं। बाद में ममता की सोनिया से भी कई मुद्दों पर असहमति रही और उन्होंने 1 जनवरी 1998 को नई पार्टी बना ली। तब से अब तक TMC को 25 साल हो चुके हैं, लेकिन पार्टी पश्चिम बंगाल के बाहर कहीं भी सरकार नहीं बना सकी।

बंगाल के बाहर दीदी फेल
सरकार बनाना तो दूर की बात है TMC बंगाल के बाहर किसी भी राज्य में अपने दम पर दहाई के आंकड़े पर भी नहीं पहुंच पाई हैं। 2021 में मेघालय में जरूर TMC के 12 विधायक हो गए थे, लेकिन वो सभी कांग्रेस से TMC में आए थे। TMC के टिकट पर जीते हुए विधायक नहीं थे।

TMC 2001 में असम, 2005 में यूपी, 2009 में अरुणाचल प्रदेश, 2009 में केरल, 2012 में मेघालय-मणिपुर, 2014 में तमिलनाडु, 2017 में पंजाब, 2018 में त्रिपुरा, 2021 में हरियाणा, 2021 में बिहार, 2022 में गोवा पहुंची। कहीं चुनाव लड़ा, तो कहीं पार्टी ने एक्टिविटी शुरू कीं, लेकिन इनमें से किसी भी राज्य में पार्टी सरकार नहीं बना सकी।मेघालय के थोड़े से वक्त को छोड़ दिया जाए तो कहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं बन पाई। सिर्फ बंगाल में ही ममता लगातार तीन बार जीती हैं।हाल में बंगाल की सागरदिघी सीट के उपचुनाव में हुई हार के बाद TMC के लिए बंगाल भी लोकसभा चुनाव में एकतरफा होते नहीं दिख रहा। 2019 में ही BJP ने बंगाल की 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीती हैं।

46 सीटों के साथ देवगौड़ा PM बन सकते हैं तो ममता क्यों नहीं…
ममता बनर्जी ने 2024 का चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है। सागरदिघी में 23 हजार वोटों से हार पर उन्होंने कहा कि ऐसा BJP, CPM और कांग्रेस के एकसाथ होने से हुआ। TMC की ताकत के बारे में बताते हुए उसके स्टेट वॉइस प्रेसिडेंट जयप्रकाश मजूमदार कहते हैं कि ‘TMC लोकसभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। राज्यसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। भारत में सबसे ज्यादा विधायकों वाली तीसरे नंबर की पार्टी है। यूपी और महाराष्ट्र के बाद पश्चिम बंगाल से ही सबसे ज्यादा (42) सांसद संसद पहुंचते हैं।

ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि बंगाल में क्लीन स्वीप करने पर विपक्षी पार्टियों के बीच बड़ा रोल निभा सकती है। मजूमदार के मुताबिक, ‘पार्टी ने 40 लोकसभा सीटें जीतने का टारगेट रखा है। बंगाल के बाहर उन सीटों पर ही कैंडिडेट्स उतारे जाएंगे, जहां पार्टी का बेस अच्छा है। TMC नेताओं को लगता है कि अगर 1996 में 46 सीटों के साथ जनता दल के देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो फिर 2024 में ममता ऐसा क्यों नहीं कर सकतीं।’

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त्रिपुरा में 60% आबादी बांग्ला बोलने वाली, पर TMC को 1% वोट भी नहीं मिले
ममता बनर्जी की त्रिपुरा में पुरजोर ताकत लगाने की एक बड़ी वजह ये थी कि राज्य में 60% लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं। मेघालय और गोवा में भी पार्टी इसलिए गई थी कि उसे लग रहा था कि ये छोटे राज्य हैं और यहां का कल्चर बंगाल से मिलता-जुलता है। ऐसे में हो सकता है उसे कामयाबी मिल जाए। तीनों ही राज्यों के नतीजों ने TMC को बुरी तरह निराश किया है।

TMC ने त्रिपुरा की 60 में से 28 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी। वोटिंग परसेंटेज 1% से भी कम रहा। TMC ने 2021 में मेघालय में कांग्रेस पार्टी में सेंधमारी कर दी और दो बार के CM मुकुल संगमा अपने 11 साथी विधायकों के साथ TMC में आ गए। इसके बाद TMC मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। ऐसे में उसे पूरी उम्मीद थी कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी सत्ता में आ सकती है, पर मेघालय में पार्टी को महज 5 सीटें मिलीं। यानि कांग्रेस से जो 12 विधायक TMC में शामिल हुए थे, उतनी संख्या तक भी TMC नहीं पहुंच सकी।

मैंने TMC के स्टेट वाइस प्रेसिडेंट जयप्रकाश मजूमदार से पूछा कि, बंगाल के बाहर आप हर जगह हार रहे हैं और दावा BJP को सत्ता से हटाने का करते हैं? इस पर वे बोले, ‘किसी दूसरे राज्य में जाकर पार्टी का एक्सपेंशन करना दुकान खोलने जैसा नहीं है कि गए और बिजनेस चालू हो गया। इलेक्टोरल सिस्टम है। इसमें लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और पैठ बनाने में वक्त लगता है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘मेघालय में हम BJP से तीन सीटें ज्यादा जीते और कांग्रेस के बराबर सीटें लाए। जबकि पहली बार चुनाव लड़े थे। त्रिपुरा में लोकल इलेक्शन में हमें जीत मिली थी। 20% वोट मिले थे, लेकिन विधानसभा चुनाव BJP बनाम कांग्रेस-CPM हो गया था। त्रिपुरा में हिल्स में तो BJP को भी कामयाबी नहीं मिली। वो मैदानी इलाकों में ही जीत पाए। आने वाले टाइम में हम त्रिपुरा-मेघालय में जरूर चुनाव जीतेंगे।

क्या बंगाल के मुस्लिम भी ममता बनर्जी से नाराज हैं
2021 में हुए विधानसभा चुनाव में सागरदिघी सीट TMC के सुब्रत साहा ने 50 हजार वोटों से जीती थी, लेकिन 22 महीने बाद ही यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। कांग्रेस कैंडिडेट की जीत का मार्जिन भी 23 हजार वोटों का रहा। सागरदिघी में 64% मुस्लिम पॉपुलेशन है। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं क्या बंगाल का मुस्लिम भी दीदी से नाराज चल रहा है।

पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की आबादी 27% है और चुनाव जीतने में ये तबका बड़ा रोल प्ले करता है। अब तक मुस्लिम ममता बनर्जी को एकतरफा जिताते आए हैं। लोकसभा चुनाव के पहले ममता को मिल रहे संकेत ठीक नहीं लग रहे। पश्चिम बंगाल में बड़े लेवल पर करप्शन के मामले सामने आए हैं।

टीचर्स रिक्रूटमेंट में हजारों टीचर्स सड़क पर बैठे। हाईकोर्ट ने भी हायरिंग प्रॉसेस में करप्शन होने की बात कही। बीरभूम में जो हिंसा हुई, उसमें माइनॉरिटी कम्युनिटी के लोग ही मारे गए। ममता सरकार में नंबर दो रहे मंत्री से लेकर उनके खास अनुब्रत मंडल तक सलाखों के पीछे हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि ममता के लिए बंगाल को बचाना ही अभी चुनौती हो गया है।

कांग्रेस कभी लेफ्ट के साथ, कभी खिलाफ, यकीन कैसे करें
मजूमदार कहते हैं, मौजूदा भारतीय राजनीति में शरद पवार को छोड़ दिया जाए तो ममता बनर्जी के बराबर सीनियर और अनुभवी नेता कोई नहीं है। PM मोदी भी उनसे जूनियर हैं, क्योंकि ममता इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के दौर से राजनीति कर रही हैं और नरसिम्हा राव सरकार में भी मंत्री रहीं।

वे आगे कहते हैं, ‘मौजूदा दौर में कांग्रेस बिना किसी नीति के राजनीति कर रही है। वो केरल में वामपंथियों के खिलाफ लड़ते हैं। उनके नेता राहुल गांधी वहां से वामपंथियों को हराकर चुनाव जीतते हैं, लेकिन बंगाल में वामपंथियों के साथ मिलकर TMC के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में कांग्रेस पर कैसे भरोसा किया जाए। हां, यदि कांग्रेस अपनी दम पर 140 तक सीटें लाती है तो अपने आप उसकी जगह बड़ी हो जाएगी। 40-50 सीटें जीतकर आप खुद को बड़ा बाबू समझेंगे तो कैसे काम चलेगा।’

लोकसभा चुनाव में 40 सीटों का टारगेट
TMC ने लोकसभा में 40 सीटें जीतने का टारगेट रखा है। नई स्ट्रैटजी से काम शुरू कर दिया है। मजूमदार कहते हैं कि, BJP आज इतनी मजबूत सिर्फ कांग्रेस की वजह से हुई है। कांग्रेस अपना काम सही तरीके से करती तो लोकसभा में स्थिति अलग होती है। अब हम देख रहे हैं कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक में कांग्रेस किस तरह से चुनाव लड़ती है। इसके काफी कुछ साफ हो जाएगा।


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