भोपाल। भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी विचारधारा पर अडिग रहती है और भाजपा संगठन अपने कार्यकर्ताओं को देवतुल्य कार्यकर्ता मानने के दावे में भी पीछे नही रहती है , लेकिन अब इसी भाजपा की प्रदेश सरकार में दलबदलू नेताओं की मौज बनी हुई है। यही नहीं अब पार्टी के मूल कार्यकर्ता जहां किनारे होने के दर्द का सामना कर रहे हैं तो दूसरे दलों से आने वाले नेता और कार्यकर्ताओं की जमकर बल्ले-बल्ले हो रही है। खास बात यह है कि इसकी वजह से अब चुनावी साल में भी प्रदेश भाजपा में अंदरुनी अंर्तद्वंद की स्थिति बनी हुई है। इसकी वजह भी वहीं नेता हैं जो दूसरे दलों से आकर सत्ता का भरपूर सुख उठा रहे हैं और मूल कार्यकर्ता अब भी पार्टी की सत्ता होने के अहसास के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। अगर प्रदेश मंत्रिमंडल से लेकर निगम मंडलों की बात की जाए तो उसमें लगभग एक चौथाई ऐसे नेता हैं ,जो दूसरे दलों से आकर मंत्री पद पाकर सत्ता सुख भोग रहे हैं। इसी तरह से विभिन्न निगम मंडलों और प्राधिकरणों में ऐसे ही नेताओं को जलबा है।
उधर, अब सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में भी लंबे समय से राजनैतिक पुर्नवास का इंतजार कर रहे नेताओं को फिर निराश होना पड़ सकता है, इसकी वजह है फिलहाल निगम मंडलों की नियुक्तियों को होल्ड कर प्राधिकरणों में नेताओं को एडजस्ट करने की तैयारी को अंतिम रूप दिया जाना। माना जा रहा है कि विधानसभा का बजट सत्र खत्म होते ही प्राधिकरणों में नियुक्त होने वाले अध्यक्ष, उपाध्यक्षों और सदस्यों की सूची जारी कर दी जाएगी।
हाल ही में भोपाल विकास प्राधिकरण में कृष्णमोहन सोनी को अध्यक्ष और सुनील पांडे, अनिल अग्रवाल लिली को उपाध्यक्ष बनाया गया है। वहीं इंदौर विकास प्राधिकरण में भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री जयपाल सिंह चावड़ा को अध्यक्ष और पिछले महीने राकेश गोलू शुक्ला को उपाध्यक्ष बनाया गया है। वहीं मप्र मेला प्राधिकरण में माखन सिंह चौहान को अध्यक्ष बनाया जा चुका है। मध्यप्रदेश सरकार ने अब तक 46 नेताओं को निगम, मंडल, बोर्ड, आयोग और प्राधिकरणों में नियुक्त किया है। इनमें से एक चौथाई ऐसे नेता हैं जो गैर भाजपाई हैं, यानि दूसरे दलों से आने के बाद भाजपा सरकार में मंत्री पद का दर्जा पा चुके हैं। इन नियुक्तियों की वजह से भाजपा के पुराने नेता खफा चल रहे हैं। इनमें से प्रभावशाली नेताओं को भी सत्ता में एडजस्ट करने के लिए माथापच्ची की जा रही है। मध्यप्रदेश के भोपाल, इंदौर, उज्जैन, देवास, जबलपुर, सिंगरौली, कटनी, अमरकंटक और रतलाम में विकास प्राधिकरण है। जबकि पांच शहर पचमढ़ी, ग्वालियर, खजुराहो, ओरछा, महेश्वर- मंडलेश्वर स्पेशल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी में शामिल हैं। इनमें अभी नियुक्ति की कवायद सत्ता व संगठन स्तर पर की जा रही है। हद तो यह है कि दमोह से 2018 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने राहुल सिंह लोधी ने 2020 में भाजपा में शामिल हुए। श्रीमंत समर्थक विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद होने वाले उपचुनावों के ठीक आठ दिन पहले राहुल लोधी ने दलबदल कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद हुए उपचुनाव में उन्हें अपनी ही सीट पर हार का सामना करना पड़ा। दलबदल के बाद राहुल को बीजेपी ने मध्यप्रदेश वेयर हाउसिंग एवं लॉजिस्टिक्स कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा देकर उपकृत कर दिया था , जबकि दमोह में लंबे समय से बीजेपी के प्रभावशाली नेता रहे जयंत मलैया का अब तक पुर्नवास नहीं किया गया है। छतरपुर जिले की बड़ामलहरा सीट से 2018 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते प्रद्युम्न सिंह लोधी के भी भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें मप्र स्टेट सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा थमा दिया गया था। इसके बाद बड़ामलहरा के उपचुनाव में प्रद्युम्न 17 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए। इसके उलट बड़ामलहरा से भाजपा की विधायक रहीं रेखा यादव और 2018 में भाजपा की उम्मीदवार रहीं ललिता यादव अब भी राजनैतिक वनवास झेल रहीं हैं। हालांकि इन दोनों पूर्व विधायक महिला नेताओं ने विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए लॉबिंग अभी से शुरू कर दी है। बालाघाट जिले की वारासिवनी सीट से तीन बार कांग्रेस के विधायक रहे प्रदीप जायसवाल ने 2018 में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की।
बाद में उन्हें कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में खनिज विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। इसके बाद भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें खनिज विकास निगम का अध्यक्ष बना दिया गया। इसी तरह से श्रीमंत के साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुई इमरती देवी ग्वालियर जिले की डबरा सीट से उपचुनाव हार गई थीं। इमरती को फिलहाल शिवराज सरकार ने लघु उद्योग निगम का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया हुआ है। मुरैना जिले की दिमनी सीट से 2018 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते गिर्राज दंडौतिया भी श्रीमंत के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। वे भी दिमनी में हुए विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रविन्द्र सिंह तोमर भिडौसा से चुनाव हार गए थे। गिर्राज दंडौतिया को मप्र सरकार ने ऊर्जा विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा थमा दिया। इसी तरह से मुरैना की सुमावली सीट से चार बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते ऐदल सिंह कंसाना ने साल 2020 में श्रीमंत के साथ भाजपा में शामिल हुए थे। उपचुनाव में उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था, वे भी अब सत्ता का सुख भोग रहे हैं।
काश मूल भाजपा नेताओं के मामले में दिखती सक्रियता
जिस तरह से प्रदेश सरकार ने दलबदलुओं और पूर्व नौकरशाहों को उपकृत करने में जल्दबाजी दिखाई है , काश इसी तरह की सक्रियता अपने मूल कार्यकर्ताओं को उपकृत करने में दिखाई होती तो पार्टी को कार्यकर्ताओं में व्याप्त असंतोष को दूर करने का प्रयास नहीं करना होता। इस असंतोष का असर निकाय चुनावों में सात नगर निगमों में हार के रुप में भी सामने नहीं आता। इसके बाद भी सरकार व संगठन उतनी सक्रियता नहीं दिखा पा रहा है , जैसी कल्पना कार्यकर्ता कर रहे हैं।