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निरंकुश शासन का पुरज़ोर तरीके से विरोध करना है डॉ. लोहिया की सप्त क्रांति का आशय

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डॉ. राजेंद्र शर्मा

डॉ. राम मनोहर लोहिया जी आधुनिक भारत के ओजस्वी विचारक थे, जिन्हें उनके सामाजिक समता, लिंगभेद की समाप्ति एवं जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था की समाप्ति हेतु किए गए संघर्षों के लिए सदैव याद किया जाता रहेगा।

डॉ. लोहिया ने कभी अपना जन्म दिवस नहीं मनाया, क्योंकि इसी दिन  भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को फांसी दी गई थी , भारत माता की आजादी के लिए अपना बलिदान दिया था।

राष्ट्र की समृद्धि हेतु उन्होंने निरंकुश सरकार को बदलकर उसकी जगह जनहितकारी योजनाओं को निर्मित करने वाली सरकार की वकालात की। उनका सीधा वक्तव्य था कि जो सरकार निरंकुश हो जाए, उसका विरोध करना समाज के लिए नितांत आवश्यक है। साथ ही एक स्वस्थ लोकतंत्र हेतु उनका मानना था कि जिस प्रकार से रोटी को अच्छे से पकाने हेतु पलटना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार से समय-समय पर सरकार को भी पलटते रहना चाहिए यानी कि बदलते रहना चाहिए।

 डॉ. लोहिया कहते थे कि आपके विकास हेतु जो असली बाधक तत्व है, उनकी पहचान करना तथा उन तत्वों का डटकर सामना करने पर ही एक ऐसे समाज का निर्माण सम्भव हो सकेगा, जहाँ किसी प्रकार का वर्गभेद, जातिभेद नहीं होगा, अपितु कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था होगी। जहाँ व्यक्ति अपने स्वभाव अनुसार कार्य करने को स्वतंत्र होगा।

डॉ. लोहिया बाहरी निरंकुश सत्ता का विरोध करना तो आवश्यक मानते ही थे, साथ ही साथ समाज या राष्ट्र के भीतर भी जो निरंकुश सत्ता व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के विकास को बाधित करती है, के भी पुरजोर विरोध की बात करते हैं। डॉ. लोहिया की सप्त क्रांति का आशय बराबरी के साथ बाहरी और भीतरी दोनों सत्ताओं के निरंकुश शासन का पुरज़ोर तरीके से विरोध करना है।

डॉ. लोहिया जातिप्रथा की समाप्ति की बात करते थे, क्योंकि यह जातिप्रथा हमें मिल-जुलकर रहने तथा विरोध के प्रति आवाज उठाने से रोकती है। जातिप्रथा के वशीभूत होकर हम समाज और राष्ट्र से पहले स्वयं को देखने के क्रम में असली दुश्मन को भूलकर आपस में लड़ना ही श्रेयस्कर मानने लग जाते हैं।

डॉ. लोहिया भारतीयों से किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने हेतु लगातार प्रयास की बात करते थे, क्योंकि सफ़लता के लिये लगातार प्रयास करना अतिआवश्यक होता है। हमें यह बात स्पष्ट तौर पर हमारे मन-मस्तिष्क में बिठा लेनी है कि सफलता लगातार किए गए प्रयासों का ही प्रतिफ़ल है।

डॉ. लोहिया का दर्शन एक दिशा तक ही सिमटता नही है, बल्कि यह जीवन के विविध आयामों, समाज के विभिन्न प्रतिमानों तथा राष्ट्र की समृद्धि के लिए आवश्यक समस्त प्रतिमानों का समावेश करता हुआ अतिआवश्यक दर्शन है। जिसे हम कितनी ही बार क्यों न पढ़ लें, हर बार एक नई व्याख्या हमारे समक्ष उपस्थित हो जाती है, जो पुनः हमारे संकीर्ण जातिगत विचारों पर आघात करके हमें समाज तथा राष्ट्रहित के लिए सोचने पर मजबूर करती है।

साथियों! आज इन महामानव के जन्मदिवस पर अन्याय के विरुद्ध सतत संघर्ष का संकल्प ही डॉक्टर लोहिया का पुण्य स्मरण होगा .

डॉ. राजेंद्र शर्मा

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