टेंडर जारी 2019, एलओए 2020, दो साल तक लेटर को दबाया, 2022 में किया अपलोड
इंदौर,। नगर निगम (Nagar Nigam) द्वारा शहर में होर्डिंग्स लगाए जाने के ठेके में निगम के नेता-अफसरों की मिलीभगत से निगम को 22 करोड़ का चूना लगाया गया। हाल ही में ग्वालियर (Gwalior) और जबलपुर (Jabalpur) की जिन दो कंपनियों ने बीच चौराहे और बीच सडक़ (Road) पर केवल बाहुबल से ही होर्डिंग नहीं ठोंके, बल्कि तीन साल पहले 2019 में जारी किए गए टेंडर को बिना बीते वर्षों की ठेका राशि जमा किए 2022 में जीवित कर लिया और निगम को 22 करोड़ से ज्यादा का नुकसान पहुंचाया, अब वही कंपनियां शहर के प्रमुख क्षेत्रों में अवैध रूप से होर्डिंग लगाकर करोड़ों कमाने की योजना बना रही हैं।
इसी घोटाले में कैसे निगम से वेतन लेने वाले अधिकारियों ने निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाया उसका खुलासा करने जा रहे हैं। नगर निगम ने शहर में विज्ञापन के होर्डिंग्स, यूनिपोल लगाने के लिए 13 अगस्त 2019 को टेंडर निकाले थे। इसमें शहर को कुल सात भागों में बांटते हुए हर क्षेत्र का अलग से टेंडर था। 6 सितंबर 2019 को टेंडर की टेक्निकल बीड और 7 को फाइनेंशियल बीड खोल गई। जोन 1 को छोडक़र बाकी सभी जोन के लिए सबसे ऊंची बोली लगाने वाली कंपनियों को यह टेंडर दिए गए। इसमें जोन 4 और 7 का टेंडर ग्वालियर की दीपक एडवरटाइजर्स ने (इंदौर से संबंधित नहीं) करीब 4 करोड़ में और जोन 2, 3, 5 और 6 का टेंडर जबलपुर की एसएस एडवरटाइजिंग को करीब 3.5 करोड़ में दिया गया। टेंडर में साफ लिखा था कि 15 दिन में चुनी गई कंपनी को एग्रीमेंट करते हुए ठेके की एक वर्ष की राशि और सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा करना था और एग्रीमेंट की तारीख से 100 दिनों के अंदर सारे यूनिपोल लगाना थे। इस तरह 7 सितंबर को खोले गए टेंडर के आधार पर दोनों कंपनियों के साथ इसी माह एग्रीमेंट करने के साथ ही राशि जमा करवाई जाना चाहिए थी, लेकिन इसके विपरीत निगम के अधिकारियों ने कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर होने के एक साल बाद 14 अगस्त को 2020 को दोनों कंपनियों को लेटर ऑफ एक्सेपटेंस जारी किया और उसके बाद 2022 तक लेटर दबाए रखने के बाद टेंडर को उसी राशि पर बिना पूर्व राशि का भुगतान कराए जीवित कर दिया।
शर्तों के अनुसार निरस्त हो चुके टेंडर को जीवित कर डाला
इंदौरी व्यापारी-व्यवसायियों के यहां ताले… परदेसी ठेकेदारों के बोलबाले
एक अधिकारी की कारगुजारी… उपायुक्त ने दो साल दबाया लेटर और अपनी ही डिजिटल साइन से बिना भुगतान जमा कराए नियमित कर डाला
13 अगस्त 2019 को जारी टेंडर को उसी वर्ष उसी महीने से लागू किया जाना था, लेकिन एक साल बाद मंजूरी दी गई और तीन साल बाद होर्डिंग अवधि शुरू की गई और इस दौरान का कोई शुल्क नहीं लिया गया। एक अधिकारी की कारगुजारी से निगम को लगे 22 करोड़ के चूने की कहानी यह है कि टेंडर के हिसाब से निगम को 2019 में ही टेंडर की अधिकतम बोली के आधार पर दोनों कंपनियों से 7.5 करोड़ से ज्यादा की राशि प्रतिवर्ष मिलना शुरू होना थी, लेकिन अधिकारियों ने कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए उनके साथ समय पर एग्रीमेंट ही नहीं किया। ‘अग्निबाण’ द्वारा की गई जांच में सामने आया कि कुछ दबाव के चलते अधिकारियों ने 14 अगस्त 2020 को कंपनियों को लेटर ऑफ एक्सेपटेंस, यानी मंजूरी तो जारी कर दी, लेकिन कंपनियों के दबाव या खुद के लालच में इस लेटर को भी अधिकारी अपने पास दबाए बैठे रहे और 6 दिसंबर 2022 को इसे डिजिटल साइन के साथ अपलोड किया गया। यानी जो लेटर अगस्त 2020 में साइन हो चुका था उसे सिस्टम पर अपलोड करने में दो साल का समय लग गया और इसके आधार पर ही कंपनियों के ठेके का जो समय 2019 से शुरू होना था वह 2022 से शुरू हुआ। जब ये लेटर साइन हुए थे, तब से भी अगर यह टेंडर अवधि मान्य की जाती और राशि जमा करवाई जाती तो निगम को सिर्फ एक साल के राजस्व की ही हानि होती। 2020 में इस लेटर पर साइन भी निगम के बाजार विभाग के डिप्टी कमिश्नर लोकेंद्रसिंह सोलंकी ने की थी और दो साल बाद 2022 में उनकी ही डिजिटल साइन से यह लेटर अपलोड भी किया गया था।
टेंडर की शर्त… 15 दिन में एग्रीमेंट कर एक साल की टेंडर राशि जमा कराएं
कोरोना का बहाना, लेकिन जब टेंडर हुए तब कोरोना का नाम भी नहीं था
इस मामले में कई नेता-अफसर कोरोना काल का बहाना बना रहे हैं कि टेंडर के समय कोरोना आ जाने के कारण इसे रोक दिया गया था, लेकिन तारीखों को देखें तो सारा झूठ सामने आ जाता है। कोरोना मार्च 2020 में देश में आया था और लॉकडाउन लगाया गया था, जबकि टेंडर 7 सितंबर 2019 को ही फाइनल हो चुके थे। इसी माह एग्रीमेंट होना था और 100 दिन में यूनिपोल लग जाना थे। इस तरह टेंडर शर्तों के हिसाब से जनवरी 2020 से पहले ही सारा काम हो जाना चाहिए था, तब देश में कोरोना का नामोनिशान तक नहीं था। वहीं एक और खास बात यह है कि अगर कोरोना के कारण टेंडर रोक दिए गए थे तो 2022 में नए सिरे से टेंडर क्यों जारी नहीं किए गए, क्योंकि अगर ऐसा किया जाता तो टेंडर की दरें 2019 की अपेक्षा ज्यादा ऊंची होतीं और निगम को ज्यादा लाभ मिलता।
यदि टेंडर निरस्त कर दोबारा कराते तो ज्यादा राशि के टेंडर आते
इस मामले में नियमानुसार सितंबर 2019 से टेंडर की राशि लेते हर साल की 7.5 करोड़ की राशि के हिसाब से तीन साल के 22 करोड़ रुपए निगम के खजाने में पहुंचते और नियम अनुसार टेंडर की शर्तों का पालन न करने पर टेंडर निरस्त किए जाते और दोबारा टेंडर किए जाते तो निगम को और बढ़ी हुई राशि के टेंडर आते, क्योंकि बीते तीन वर्षों में इंदौर की छवि दुनियाभर में निखरी है और निश्चित रूप से उसका लाभ निगम को मिलता।