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नास्तिक और आस्तिक : दो खेमों में बँंटा समाज

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 सुधा सिंह

*नास्तिक :*

     नास्तिक उन्हें कहा जाता है जो अपने चारों ओर व्यक्त और अव्यक्त रूप से विद्यमान इस अनन्त सृष्टि के मालिक,संचालक व नियन्त्रक,जिसे पारब्रह्म परमेश्वर या अन्य नामों से जाना जाता है, उस पर कोई विश्वास और श्रद्धा नहीं रखते। 

     साथ ही ऐसी किसी शक्ति के अस्तित्व पर श्रद्धा व विश्वास रखने वालों,उसकी पूजा अर्चना उपासना करने वालों तथा उसकी महिमा का गुणगान करने वाले तथा उसकी प्राप्ति में सहयोग करने वाले साहित्य (ग्रन्थों/पुस्तकों), मूर्तियों, अवतारों, संतों, सदगुरुओं आदि का विरोध करते हुए, उनका मजाक उड़ाया करते हैं और उन्हें समाज के विकास में बाधक माना करते हैं।

     नास्तिकों का  सारा जीवनचक्र मुख्य रूप से  “सात” बातों में ही घूमा करता है :

काम.

दाम.

धाम.

नाम.

कोहराम.

विश्राम.

शाम.

*आस्तिक :*

    आस्तिक उन्हें कहा जाता है जो यह विश्वास करते हैं कि इस अनन्त सृष्टि का कोई न कोई  मालिक, संचालक व नियन्त्रक अवश्य है, जिसे पारब्रह्म परमेश्वर कहते हैं और जो अनेकानेक नामों से भी जाना जाता है। 

इसलिए उस महान शक्ति के अस्तित्व पर विश्वास करते हुए उसके एक या अनेक, नाम, रूपों का आधार लेकर वे उसकी विविध प्रकार से, विविध उद्देश्यों को लेकर बड़ी श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना या उपासना किया करते हैं। 

    आस्तिकों  के जीवनचक्र में, नास्तिकों के जीवनचक्र की सात बातें हो भी सकती हैं और कुछ नहीं भी. लेकिन उनके अंदर एक और बात अवश्य हुआ करती है. वह है भगवान. 

      भगवान उस महान चैतन्य सत्ता का नाम है जो – समस्त सृष्टि तथा सृष्टि के समस्त प्राणियों व पदार्थों का रूप,रंग, आकृति, शरीर की संरचना, जीवनचर्या तथा जीवन अवधि निर्धारित करती है। फिर उनका सृजन करती, उनमें विद्यमान (रमी) रहती,एक व्यवस्थित विधि से उनका पालन पोषण करती, उनका संचालन, नियन्त्रण करती, उनमें रूपांतरण, परिवर्तन कर सबको एक निर्धारित जीवन के उपरांत समाप्त करती और इस क्रम को वह निरंतर चलाती रहती है। 

    उसी महान चैतन्य सत्ता के अनेकानेक नाम हैं, जैसे- ईश्वर, गॉड, खुदा, ब्रह्म, शिव, कृष्ण, राम, परमेश्वर, परमात्मा, पारब्रह्म, दृर्गा, भगवती, परमेश्वरी, महाशक्ति, राधारानी आदि.

   आस्तिक लोग ऐसी महान शक्ति पर पूर्ण आस्था, विश्वास व श्रद्धा रखते हैं, जबकि नास्तिक ऐसी किसी शक्ति के अस्तित्व को नकारते हैं अब जब किसी व्यक्ति या वस्तु के अस्तित्व को ही नकारा जायेगा तो भला उसका लाभ कैसे कोई प्राप्त कर सकेगा? 

      जैसे कोई कहे “मिठाई” नाम की कोई चीज होती ही नहीं है तो वह उसे देखने, समझने, खाने व उसके स्वाद का लाभ कैसे ले सकेगा?

    आस्तिक लोग ऐसी महान शक्ति के अस्तित्व पर विश्वास और श्रद्धा रखते हैं, इसीलिए वे उस महान शक्ति के अनगिनत लाभों का अनमोल सुख प्राप्त करते रहते हैं जब कि नास्तिक इससे वंचित रहते हैं।

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