–सुसंस्कृति परिहार
जी हां अप्रैल फूल भी पहले हमारे देश में उत्सव जैसा मनता रहा है। जिसमें झूठ को सलीके से बोलने की तैयारी पहले से इस तरह कर ली जाती थी कि सम्बंधित उसे समझ नहीं पाता था और बन जाता था अप्रेल फूल।यह सिर्फ एक दिन चलता था किंतु इसकी चर्चा गाहे बगाहे होती थी और परेशान व्यक्ति का मित्रवर लुत्फ लिया करते थे। अप्रैल फूल बना व्यक्ति तब ये मानसिक तैयारी में रहता था कि आगामी साल वह फूल नहीं बनेगा किसी को ज़रुर बनाएगा किंतु जीवन की आपाधापी में यह विस्मरण अमूनन हो जाता रहा।धीरे धीरे लोगों की सजगता से ये मज़े जाते रहे।वे दिन शायद ही कभी लौटें जिसमें एक अजीबोगरीब आनंद की अनुभूति होती थी। लोगों की सावधानी के बावजूद।वह दिन गया नहीं वह हर दिन में बदल गया है नए स्वरुप में।बाकायदा एक फूल ने इसमें शामिल होकर इसे इतना विस्तार दिया है जो बराबर जारी है।
धन्य है हमारा देश जिसमें यह फूल बनना बनाना इतना विस्तार ले लेगा इसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। राजनीति के क्षेत्र में छोटी मोटी फूल बनाने की हरकत अमूनन सभी दल करते रहते हैं किंतु अप्रेल फूल की जगह कीचड़ में उगने वाला एक फूल जनता को इस तरह फूल बनाएगा कि हिंदुस्तान का पूरा राज काज हथिया लेगा।यह एक दिवसीय फूल बनाने का सिलसिला पूरे नौ साल से चल रहा है मज़ाल ये कि लोग कुछ कह भी कह सकें। इसमें गल्ती उनकी ही है क्योंकि उन्होंने कीचड़ वाले फूल को अपने आनंद और अच्छे दिन के लिए चुना। फिलहाल एक साल और इस फूल पर रहम अता फरमाएं यह हमारा लोकतांत्रिक कर्तव्य है।
इधर अप्रेल फूल अपनी ना कद्री देखकर गुम होता जा रहा है सोचिए इस एक दिवसीय झूठ जो सिर्फ हल्के फुल्के मनोरंजन के लिए था कीचड़ वाले फूल ने इसे इतना फलीभूत कर किया है कि देश में झूठ का साम्राज्य कायम हो गया और बेचारा अप्रेल फूल अब अंतिम सांसें ले रहा है। इल्तज़ा है कि इस कीचड़ के फूल को उसकी औकात समझा दी जाए जिसके व्यापक झूठ ने देश में झूठ और चोर चपाटों की फौज खड़ी कर दी है जो सिर्फ अपने मनोरंजन और तरक्की के लिए झूठ के हिमालय पर खड़े हैं। अप्रैल फूल तुम घबराओ नहीं। गर्म हवाएं चलने लगी है वे दल दल सूखेंगे जहां ये फूल खिल रहा है। आमीन।