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भारत के लिहाज से देखा जाए रूस-यूक्रेन युद्ध के कुछ बड़े सबक

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हर्ष वी पंत

यूक्रेन के शहर बखमुत में रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लंबी खूनी लड़ाई ने एक बार फिर इस सच का अहसास कराया है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में युद्ध ही निर्णायक होता है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति युद्ध के साये में ही आकार लेती है। इसीलिए सैन्य शक्ति इसका व्यावहारिक औजार बनी हुई है।

भारत के लिहाज से देखा जाए रूस-यूक्रेन युद्ध के कुछ बड़े सबक हैं:

  • पहला, रूस-यूक्रेन युद्ध के लिहाज से देखा जाए तो बखमुत में हार-जीत किसी भी पक्ष के लिए रणनीतिक तौर पर बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती। इसके बावजूद दोनों ही पक्ष करीब सात महीनों से वहां जीतने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। इससे यह भी पता चलता है कि युद्ध में किसी खास इलाके पर कब्जा करना या उसे बनाए रखना कितना अहम होता है।
  • दूसरा, जमीनी लड़ाई में कौन भारी पड़ सकता है, यह बात महत्वपूर्ण है। भारत को इसे समझना चाहे क्योंकि देश की सुरक्षा के लिहाज से यह बात अहम है। इस पर चाहे जो भी खर्च आए, अपनी जमीन की रक्षा करने वाली मजबूत फौज के रूप में सैन्य शक्ति की कमी किसी भी देश के लिए हार का कारण बन सकती है। आखिर इंसान जमीन पर ही रहते हैं और युद्ध का फैसला भी जमीन पर ही होता है। इसलिए युद्ध में बख्तरबंद गाड़ियों, तोपखाना और उनके साथ तकनीक के जानकार इंजीनियरों की काफी अहमियत है। इसकी भरपाई साइबर, स्पेस और ऐसी दूसरी क्षमताओं से नहीं की जा सकती। साइबर या इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक स्पेक्ट्रम जैसी क्षमताएं युद्ध में सहायक भूमिका में होती हैं, लेकिन इन्हें आमने-सामने की लड़ाई का विकल्प नहीं माना जा सकता।
  • तीसरा, रूस-यूक्रेन युद्ध ने दिखाया है कि समुद्री ताकत को सस्ती मिसाइलों के सहारे कितनी आसानी से बेअसर या नष्ट किया जा सकता है। इसीलिए रूसी नौसेना का ब्लैक सी बेड़ा युद्ध में बड़ी भूमिका नहीं निभा पाया है। वह यूक्रेन की मिसाइलों से सुरक्षित दूरी बनाए रखने को मजबूर है। यह अकारण नहीं है कि चीन ने अमेरिकी और मित्र राष्ट्रों के नौसैनिक बेड़ों को अपनी सीमा से दूर रखने के लिए एंटीशिप बैलिस्टिक मिसाइलों (ASBMs) और एंटीशिप क्रूज मिसाइलों (ASCMs) की पूरी रेंज बना रखी है। यहां भी भारत यूक्रेन और चीन से सीख लेते हुए भू-आधारित बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों की रेंज तैयार कर सकता है।
  • चौथा, रोटरी या फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट के सहारे दुश्मन के इलाकों में दूर तक घुसकर मार करने की रणनीति इस युद्ध में कारगर नहीं रही है। अगर अपाचे जैसे रोटरी विंग एयरक्राफ्ट का ही उदाहरण लें, जिनका भारत ऐसे मिशन में इस्तेमाल करता है, तो 2003 के दूसरे खाड़ी युद्ध में भी ये इराक की ग्राउंड बेस्ड एयर डिफेंस आर्टिलरी के सामने खास असरदार साबित नहीं हुए थे। ऐसे में चीन या पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय अपाचे की कोई भूमिका अगर हो सकती है तो शायद वह टोह लेने, निगरानी करने या जमीनी टुकड़ियों को मदद देने की ही होगी। रूसी फिक्स्ड विंग और रोटरी विंग एयरक्राफ्टों के खिलाफ यूक्रेनी सेना ने शॉर्ट रेंज एंटी एयरक्राफ्ट वेपंस या तुलनात्मक रूप से छोटे हथियारों से गोलाबारी का प्रभावी इस्तेमाल किया है। दूसरी तरफ यूक्रेनी सेना भी दुश्मन के इलाके में दूर तक मार करने के मामले में खास सफल नहीं रही। उसे हवाई क्षमता का इस्तेमाल जमीन पर लड़ रहीं टुकड़ियों की मदद के लिए करना था। नतीजा यह कि कोई भी पक्ष हवाई लड़ाई में किसी पर भारी नहीं पड़ा। ऐसे में, भारत के लिए भी दूर तक मार करने की क्षमता विकसित करने में ऊर्जा लगाने के बजाय काउंटर अनमैंड एरियल सिस्टम (CUAS) विकसित करना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।
  • पांचवीं बात ध्यान में रखने की यह है कि हवाई या एंफिबियस मिशन आसानी से दुश्मन की नजरों में आ जाते हैं। यूक्रेन युद्ध से ही नहीं, अतीत के अनुभवों से भी इस बात की पुष्टि होती है। यूक्रेन पर हमले के आरंभिक चरणों में एयरपोर्ट पर कब्जा करने की कोशिशों में रूसी वायु सेना को भारी नुकसान झेलना पड़ा था। इसका मतलब यह नहीं कि ये अतीत की चीज हो गए हैं, लेकिन यह जरूर है कि इनका इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर और खास मिशन में ही करने की जरूरत है।

AI की भूमिका

  • आखिर में, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) ने इस युद्ध में तो अहम भूमिका निभाई है, आगे भी इसकी यह भूमिका बनी रहने वाली है। यूक्रेनी फौज ने बखमुत में मोर्चे पर लड़ाकू टुकड़ियों के साथ ही सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को भी तैनात किया है। इनकी मदद से यूक्रेन के कमांडर रूसी सेना के ठिकानों का सटीक ढंग से पता लगा पाते हैं, जिससे फौज की मारक क्षमता बढ़ जाती है। यूक्रेन, रूसी फौज के खिलाफ हमलों को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए सैटलाइट इंटेलिजेंस से आए डेटा के साथ ही AI से मिले डेटा का भी इस्तेमाल कर रहा है। AI ने निश्चित रूप से रूसी हमलों के बरक्स यूक्रेनी फौज के टिके रहने की क्षमता बढ़ा दी है।

कुल मिलाकर, निष्कर्ष यही है कि भारतीय सेना को बख्तरबंद गाड़ियों, मिसाइलों और तोपखानों की क्षमता बढ़ाने में ही पूरी ऊर्जा लगाने के बजाय उभरती टेक्नॉलजी को अपनाने पर ध्यान देना चाहिए, इनके विकल्प के तौर पर नहीं बल्कि इन्हें ज्यादा सक्षम और ज्यादा कारगर बनाने वाले उपाय के रूप में।

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